मुंबई: तिब्बती आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा ने सोमवार को कहा कि भारत और चीन एक दूसरे को हरा नहीं सकते और दोनों देशों को पड़ोसी की तरह साथ रहना होगा. उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘‘हिंदी-चीनी भाई भाई’’ की भावना आगे बढ़ाने का एकमात्र रास्ता है.
दलाई लामा ने कहा, ‘‘मौजूदा सीमा स्थिति में ना तो भारत और ना ही चीन एक दूसरे को हरा सकते हैं. दोनों देश सैन्य शक्ति सम्पन्न हैं.’’ उन्होंने कहा कि दोनों देशों को पड़ोसी की तरह साथ रहना होगा. उन्होंने कहा, ‘‘सीमा पार गोलीबारी की कुछ घटनाएं हो सकती हैं. यह कोई मायने नहीं रखता.’’ दलाई लामा ने एक कार्यक्रम के दौरा यह बात कही.
आध्यात्मिक गुरू ने कहा, ‘‘साल 1951 में स्थानीय तिब्बत सरकार और पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच तिब्बत की आजादी के लिए 17सूत्री एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था. आज चीन बदल रहा है और वह सबसे अधिक बौद्ध आबादी वाला देश बन गया है. भारत और चीन को ‘‘हिंदी-चीनी भाई भाई’’ की दिशा में एक बार फिर लौटना चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि चीन में कम्युनिस्ट सरकार है लेकिन बौद्ध धर्म को भी व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है.
14वें दलाई लामा ने कहा, ‘‘इससे पहले तिब्बत में दलाई लामा आध्यात्मिक और राजनीतिक गतिविधियों की अगुआई करते थे लेकिन साल 2011 से मैंने पूर्ण रूप से राजनीति से संन्यास ले लिया. यह संस्थानों का लोकतंत्रीकरण करने का एक तरीका था, क्योंकि उनमें कुछ सामंती तत्व भी थे.’’ उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को ‘‘बौद्ध धर्म मानने वाले चीनी लोगों के लिये तीर्थस्थान का विकास करना चाहिए’’.
आध्यात्मिक नेता ने कहा, ‘‘हमें निश्चित रूप से चीन में बौद्ध धर्म के अनुयायियों को समझना चाहिए जो वास्तव में नालंदा और संस्कृत से आए भारतीय बौद्ध धर्म की धारा को मानते हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत को बौद्ध धर्म मानने वाले चीनी लोगों के लिये तीर्थस्थल का विकास करना चाहिए. ये लोग बोध गया जैसी जगहों पर आ सकते हैं और भावनात्मक रूप से भी भारत के करीब आ सकते हैं.’’