Nikitin Seamount: हिंद महासागर में पानी के नीचे स्थित अफानसे निकितिन सीमाउंट पहाड़ को लेकर श्रीलंका और भारत के बीच तनाव बढ़ गया है. भारत जल्दबाजी में इस पहाड़ पर उत्खनन शुरू करने के लिए अधिकार हासिल चाहता था, लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी. भारत ने इसके लिए जमैका स्थित इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी से दावा किया था. लेकिन सीबेड ने इस भारत के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि इस समुद्री इलाके पर श्रीलंका भी दावा कर रहा है. 


भारत इस पहाड़ पर कब्जा हासिल करने के लिए 5 लाख डॉलर की फीस खर्च कर चुका है. भारत को सबसे बड़ खतरा श्रीलंका नहीं बल्कि चीन से लग रहा है, क्योंकि चीन भी इस पहाड़ पर नजर गड़ाकर बैठा है और श्रीलंका की मदद से इसपर अपना अधिकार हासिल करना चाहता है. इस पहाड़ में भारी मात्रा में कोबाल्ट होने का अनुमान है. अफानसे निकितिन सीमाउंट मध्‍य हिंद महासागर मौजूद है और यह तीन हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है. 


भारत की हड़बड़ी की क्या है वजह?
कोबाल्ट का प्रयोग आज दुनियाभर में मोबाइल से लेकर इलेक्ट्रिक ह्वीकल में हो रहा है. इसकी मदद से हथियार भी बनाए जा रहे हैं. भारत 15 साल के लिए इस पहाड़ का सर्वेक्षण करना चाहता है. भारत ने इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी से सर्वेक्षण को लेकर मंजूरी मांगी थी. इस संस्था को संयुक्‍त राष्‍ट्र के नियमों के तहत बनाया गया है. भारत के अलावा श्रीलंका भी इस खनिज पर अपना दावा करता है. भारत की हड़बड़ी की वजह चीन है, क्योंकि चीन भी हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है. 


कोबाल्ट व्यापार के मामले में चीन का दुनियाभर में दबदबा है, क्योंकि दुनियाभर के 70 फीसदी कोबाल्ट पर चीन का कब्जा है. समुद्री मामलों के एक भारतीय विशेषज्ञ ने अलजजीरा को बताया कि 'भारत का उद्देश्य तत्काल खनन करना नहीं है, बल्कि उस क्षेत्र पर अपना अधिकार हासिल करना है, क्योंकि चीन के आने से पहले भारत उस स्थान पर अपना दावा स्थापित करना चाहता है.'


भारत के लिए कोबाल्ट है कितना जरूरी
एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि अफानसे निकितिन सीमाउंट पर भारत का दावा काफी मजबूत है, क्योंकि अभी तक निकितिन सीमाउंट किसी भी देश के आर्थिक क्षेत्र से बाहर है. विशेषज्ञों ने बताया कि भारत समुद्र के नीचे अपनी खनन क्षमताओं को बढ़ा रहा है. साल 2021 में भारत ने डीप ओसीन मिशन शुरू किया थ, जिससे कि समुद्र के अंदर रिसर्च किया जा सके. भारत की नजर समुद्र के नीचे छिपे कोबाल्ट समेत अन्य खनिजों पर है, क्योंकि भारत साल 2070 तक देश को कॉर्बन उत्सर्जन से मुक्ति दिलाना चाहता है. ऐसे में भारत के लिए कोबाल्ट की बड़ी भूमिका है. 


इस बीच श्रीलंकाई मीडिया ने खुलासा किया है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कथित रूप से भारत को उत्खनन का अधिकार देने के लिए सहमत हो गए हैं. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत के अडानी ग्रुप और ताइवानी कंपनी यूमीकोर ने कोबाल्‍ट उत्‍खनन के लिए हाथ मिलाया है. भारत और ताइवान मिलकर इस क्षेत्र से चीन को दूर करना चाहते हैं. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत के विदेश मंत्री श्रीलंका आ रहे हैं और इस मसले पर चर्चा हो सकती है. 


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