लंदन में भारतीय मूल की ब्रिटिश जासूस नूर इनायत खान का सम्मान, दूसरे विश्व युद्ध में दिया था अहम योगदान
लंदन में कई दशकों से देश के इतिहास में योगदान देने वाली हस्तियों के रहने या उनके काम करने की जगह पर ये ब्लू प्लाक लगाई जाती है, जो उस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है.
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लदंनः भारतीय मूल की महिला नूर इनायत खान उन चुनिंदा ऐतिहासिक हस्तियों में शामिल हो गई हैं, जिनके नाम पर ब्रिटेन की राजधानी लंदन के घर में नीली तख्ती (Blue Plaque) लगाई गई है. नूर इनायत खान ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश हुकूमत की मदद की थी और जर्मनी के कब्जे में रहे फ्रांस में जाकर नाजियों की जासूसी की थी.
ऐतिहासिक व्यक्तियों से जुड़ी इमारतों पर लगती है Blue Plaque
लंदन में कई दशकों से देश के इतिहास में योगदान देने वाली हस्तियों के रहने या उनके काम करने की जगह पर ये ब्लू प्लाक लगाई जाती है, जो उस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, लंदन में फिलहाल ऐसी 950 बड़ी-छोटी इमारतें हैं जहां उनसे जुड़ी शख्सियतों के सम्मान में ये नीली तख्तियां लगाई गई हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, एक ऑनलाइन इवेंट में लंदन के ब्लूम्सबरी में टेविटन स्ट्रीट (Taviton Street) में मौजूद एक घर के बाहर इस ब्लू प्लाक का अनावरण किया गया.
Today her remarkable life is honoured with a blue plaque at her family home in Bloomsbury, London. The home that she left for Nazi-occupied France in 1943 as an undercover radio operator. pic.twitter.com/yNiQkuG6p2
— English Heritage (@EnglishHeritage) August 28, 2020
दूसरे विश्व युद्ध में फ्रांस में की थी जासूसी
इस मौके पर नूर इनायत खान की जीवनी लिखने वाली शरबनी बासु और नूर के भतीजे जिया इनायत खान भी मौजूद थे. नूर को याद करते हुए शरबनी ने कहा, “नूर इनायत खान टीपू सुल्तान की वंशज थीं, जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में एक खूफिया एजेंट बन गई थीं. वह पहली महिला रेडियो ऑपरेटर थी, जिन्होंने 1943 में फ्रांस में घुसपैठ की थी और मेडेलिन के कोड नाम के साथ काम किया था.”
नूर के पिता भारतीय और उनकी मां अमेरिकी थीं. उनका जन्म सोवियत संघ में हुआ था. 1940 में तत्कालीन ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल ने एक खुफिया टीम की शुरुआत की थी, जिसका हिस्सा नूर भी बनी थीं. इसी दौरान वह नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में घुसी थीं और जासूसी को अंजाम दिया था.
हालांकि, फ्रांस के दचॉ (Dachau) में एक कैंप में बंदी बनाकर रखी गईं नूर की 1944 में मौत हो गई और 3 साल बाद 1949 में ब्रिटिश हुकूमत ने उनके योगदान को याद करते हुए नूर को मरणोप्रांत जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया था.
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