Indonesia School Timing: इंडोनेशिया (Indonesia)के एक शहर में हर सुबह नींद में डूबे बच्चें सुबह में ही स्कूल जाने को मजबूर है. वो सुबह में जब अंधेरा होता है तब ही स्कूल जाते नजर आते हैं. ये कोई सांइस-फिक्शन वाली फिल्म की बात नहीं है, बल्कि के ये हकिकत है.
आज कल इंडोनेशिया के र्वी नुसा तेंगारा प्रांत ( East Nusa Tenggara province) की राजधानी कुपांग में पायलट प्रोजेक्ट नाम का एक प्रयोग शुरू किया गया है. इसमें दिन की शुरूआत बहुत जल्दी करनी होती है. खासकर वैसे लोगों को, जिन्हें स्कूल जाना होता है.
प्रयोग को विवादास्पद करार दिया गया
इंडोनेशिया में बच्चों के साथ किए जा रहे प्रयोग को विवादास्पद करार दिया गया है. कुपांग के स्थानीय प्रशासन ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत 10 हाई स्कूलों में बारहवीं क्लास के स्टूडेंट को सुबह 5:30 बजे से क्लासेस शुरू करने का आदेश दिया गया है. कुपांग में अधिकारियों का कहना है कि इस योजना की घोषणा पिछले महीने गवर्नर विक्टर लाईस्कोदत ने की थी, जिसका उद्देश्य बच्चों के अनुशासन को मजबूत करना है.
वहीं इस अजीबो-गरीब घोषणा के बाद बच्चों के माता-पिता का कहना है कि जब तक वे घर आते हैं, तब तक उनके बच्चे थक जाते है. हालांकि, इंडोनेशिया में स्कूल आमतौर पर सुबह 7:00 से 8:00 बजे के बीच शुरू होते हैं. वहीं इस योजना के लागू होने के बाद स्कूल ड्रेस पहन कर बच्चे अब सुबह के वक्त अंधेरी सड़कों पर समय पर स्कूल जाने के लिए मोटरसाइकिल टैक्सी का इंतजार करते नजर आ रहें हैं.
नींद की कमी स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकती है
र्वी नुसा तेंगारा प्रांत की राजधानी कुपांग में एक माता-पिता ने एएफपी को जानकारी देते हुए बताया कि यह बच्चों के लिए बेहद मुश्किल है. उन्हें उस वक्त स्कूल जाने के लिए घर से निकलना पड़ता है, जब घोर अंधेरा रहता है. हम इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे है. सुबह के अंधेरे में स्कूल जाना उनके सुरक्षा के लिए बिलकुल सही बात नहीं है.
वहीं एक 16 वर्षीये लड़की की मां ने बताया की उनकी बेटी यूरेका को अब तैयार होने और मोटरबाइक से स्कूल जाने के लिए सुबह 4:00 बजे उठना पड़ता है. उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि अब हर बार जब वह घर आती है तो थक जाती है और तुरंत सो जाती है क्योंकि उसे नींद आ रही होती है.
इस योजना पर नुसा सेंदाना यूनिवर्सिटी के शिक्षा विशेषज्ञ मार्सेल रोबोट ने एएफपी को बताया कि इसका पढ़ाई की क्वावलिटी में सुधार करने की कोशिशों से कोई संबंध नहीं है. स्टूडेंट में लंबे समय तक नींद की कमी स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकती है और व्यवहार में बदलाव का कारण बन सकती है.