नई दिल्ली: पूरी दुनिया की नजर इस वक्त ईरान और अमेरिका पर है. दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ बगावत की बिगुल फूंक रखा है. अमेरिका ने ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराया तो जवाब में बुधवार की सुबह अमेरिका के इराक स्थित सैन्य ठिकानों पर ईरान ने दर्जनों मिसाइल दागे. अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इन दोनों देशों के बीच युद्ध होगा.
अगर इन दोनों देशों के बीच युद्ध होगा तो सबसे ताकतवर कौन साबित होगा. आइए दोनों देशों के सैन्य ताकत से लेकर अन्य चीजों तक सभी कुछ पर एक नजर डालते हैं..
सैन्य बजट
वर्ष 2018 में ईरान ने 13.2 अरब डालर सेना पर खर्च किया तो वहीं स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रीसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक अमेरिका का सैन्य बजट 648.8 अरब डालर है. आंकड़ों से साफ है कि सैन्य बजट के मामले में ईरान अमेरिका के काफी पीछे है.
सेना
दोनों देशों के पास कितनी सेना है, अगर इस आधार पर दोनों की ताकत को आंके तो अमेरिका सरकार के मुताबिक ईरान के पास कुल 6 लाख सक्रिय सैनिक और पांच लाख रिजर्व सैनिक हैं. वहीं अमेरिका के पास 13 लाख सैनिक हैं.
किस देश के पास कितने टैंक और तोप
युद्ध लड़ने के लिए टैंक, युद्धक वाहन, तोप आदि की आवश्कता होती है. इस मामले में भी अमेरिका ईरान से काफी मजबूत है. बात अगर समुद्री ताकत की करें तो ईरान के पास नवल शिप, पनडुब्बी, माइन वारफेयर आदि मिलाकर कुल संख्या 398 है. अमेरिका के लिए यह संख्या 415 है. वहीं परमाणु हथियारों के मामले में भई अमेरिका ईरान से काफी आगे है. बता दें कि 90 प्रतिशत परमाणु हथियार सिर्फ रूस और यूएस के पास हैं. 2018 में अमेरिका के पास कुल 6450 परमाणु हथियार थे. वहीं माना जाता है कि ईरान के पास एक भी परमाणु हथियार नहीं है. हालांकि ईरान खतरनाक मिसाइल वाला देश है. उसके पास 2000 किमी तक मार करने वाली मिसाइल है.
क्या होगा अगर चीन और रूस देंगे ईरान का साथ
हर मामले में बेशक ईरान अमेरिका से कम ताकतवर दिख रहा हो लेकिन अगर दुनिया के दो सबसे ताकतवर देशों में शुमार रूस और चीन ईरान की मदद के लिए आगे आते हैं तो मामला उलटा पड़ जाएगा. वर्तमान स्थिति को देखते हुए साफ है कि चीन और रूस ईरान का ही साथ देंगे क्योंकि सुलेमानी की हत्या के बाद मंगलवार को रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन सीरिया पहुंचे थे जो ईरान का सहयोगी देश है. वहीं चीन के विदेश मंत्रालय ने भी सुलेमानी की हत्या की कड़ी आलोचना की थी.इसके अलावा अमेरिका की बात करें तो उसे सऊदी अरब, यूएई, कुवैत, कतर और इजरायल जैसे देश समर्थन दे सकते हैं क्योंकि ईरान शिया बहुल देश है और सऊदी अरब, यूएई, कुवैत, कतर और इजरायल सुन्नी बहुल देश..