नई दिल्ली- शराबी फिल्म में आपने वो डायलॉग सुना होगा, “मूंछ हो तो नत्थूलाल जैसी”. उस फिल्म का डायलॉग रीयल की दुनिया में इतना मशहूर हुआ कि बड़ी-बड़ी मूंछ वाले व्यक्ति के बारे में अमिताभ बच्चन के बोल दोहराये जाने लगे. खैर, ये तो हुई फिल्म की बात. अब हम जानते हैं ऐसे धर्म के बारे में जिसके पीछे मूंछ रखने की धार्मिक मान्यता है. उस धर्म के अनुयायी पूरी उम्र मूंछ को नहीं काटते.


जानिए यारसान धर्म के बारे में
ईरान के प्राचीन धर्मों में से ‘यारसान’ भी एक अलग धर्म है. इसकी मान्यताएं, परंपराएं, भक्ति के तरीके और पूजा स्थल अन्य धर्मों से थोड़ा जुदा हैं. यारसान धर्म में कई बातें दूसरे धर्मों से ली गई हैं. इसके अनुयायियों को ‘अहले हक’ यानी हक वाले कहा जाता है.  इस धर्म के संस्थापक का नाम सुल्तान सहाक था जिन्होंने 14वीं सदी में इसकी बुनियाद रखी.


यारसान समुदाय के लोग सुल्तान सहाक को खुदा की सात निशानियों में से एक मानते हैं. इस धर्म के अनुयायी हिंदू धर्म की तरह पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं. इनका विश्वास है कि आत्मा का चक्र हजार शक्लों में चलता रहता है. उसके बाद ये पवित्रता हासिल कर ईश्वर से जा मिलती है. यारसानी सूर्य और आग को पवित्र मानते हैं. इनके धर्म में धार्मिक अनुष्ठान और समारोहों को गुप्त तरीके से अंजाम देने की परंपरा है.


यारसानी एक खास तरह का वाद्य यंत्र बजाते हैं जिसे ‘तंबूर’ कहा जाता है. ईश्वर से अपने जुड़ाव को प्रदर्शित करने के लिए यारसानी अक्तूबर और नवंबर महीने में तीन दिन का उपवास रखते हैं. इस दौरान अपने अपने इलाकों में सूरज ढलने के बाद एक साथ व्रत तोड़ते हैं.


यारसानी विशेष प्रकार की बनी रोटी से अपना उपवास खत्म करते हैं. फल में यारसानी अनार को पवित्र मानते हैं. जिसका धार्मिक समारोहों में बड़ी आस्था के साथ इस्तेमाल होता है. उनके प्रार्थना स्थल को ‘जाम खाना’ कहा जाता है. जहां हर महीने इकट्ठा होकर ईश्वर की उपासना की जाती है.


जामखाना में जाने से पहले यारसानियों को सर पर खास तरह की टोपी पहननी पड़ती है. यारसान धर्म के मर्द अनुयायी अपनी मूंछों को कभी नहीं कटाते. उनके धर्म में मूंछ पवित्र निशानी मानी जाती है.


यारसानियों की संख्या के बारे में बताना मुश्किल है. लेकिन माना जाता है कि इनकी जनसंख्या 10 लाख के करीब है. यारसानियों की ज्यादातर आबादी कुर्द बहुल्य इलाके पश्चिमी ईरान में रहती है. हुकूमत ईरान के नजदीक उनकी पहचान सूफी मत में यकीन रखनेवाले शिया मुसलमान के तौर पर है.