(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
मौत से चंद दिनों पहले भारत को बड़ा तोहफा दे गए ईरान के राष्ट्रपति रईसी, खोद गए चीन के लिए खाई
साल 2003 में भारत ने ईरान को चाबहार पोर्ट को विकसित करने का ऑफर दिया था और 2015 में आधिराकि तौर पर डील हुई. यह डील भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच हुई थी.
ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी मौत से चंद दिन पहले भारत को ऐसा तोहफा देकर गए हैं, जो हमेशा उनकी याद दिलाता रहेगा. राष्ट्रपति रईसी को भारत और ईरान के बीच मजबूत होते रिश्तों की अहम कड़ी माना जाता था. इसी महीने उन्होंने भारत को चाबहार पोर्ट के रूप में बड़ा तोहफा दिया था. इस डील के तहत भारत ईरान के चाबहार में शाहिद बेहशती बंदरगाह टर्मिनल का मैनेजमेंट देखेगा. इस डील के जरिए भारत को मिडिल ईस्ट देशों के साथ व्यापार बढ़ाने का मौका मिलेगा और यह डील 10 सालों तक वैलिड रहेगी.
लोकसभा चुनाव के बीच केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ईरान की राजधानी तेहरान गए और डील साइन की. उन्हें जाने के लिए इलेक्शन कमीशन से परमिशन लेनी पड़ी, जिससे पता चलता है कि यह डील भारत के लिए कितनी अहम है. पोर्ट के लिए भारत 12 करोड़ डॉलर का निवेश करेगा, जबकि इंफ्रास्ट्रक्चर अग्रेडेशन के लिए 25 करोड़ डॉलर अलग से खर्च किए जाएंगे. इस तरह डील पर में कुल 37 करोड़ डॉलर खर्च किए जाएंगे. यह पहला मौका है जब भारत ने विदेश में स्थित किसी बंदरहाग का मैनेजमेंट अपने हाथ में लिया है.
13 मई को डील का आधिकारिक तौर पर ऐलान किया गया था. यह समझौता इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और ईरानी कंपनी मैरिटाइम ऑर्गेनाइजेशन के बीच हुआ है. डील का मकसद अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के लिए वैकल्पिक रास्ता तैयार करना है. केंद्रीय मंत्री सोनोवाल ने कहा कि डील पर हस्ताक्षर के साथ सरकार ने चाबहार में भारत की लंबे समय तक जारी रहने वाली भागीदारी की नींव रख दी है. साथ ही डील से बंदरगाह की क्षमता में कई गुना विस्तार देखने को मिलेगा.
कैसे पड़ी चाबहार पोर्ट डील की नींव?
साल 2003 में भारत ने ईरान के सामने पोर्ट को विकसित करने का ऑफर रखा था. हालांकि, इस पर आधिकारिक तौर पर मुहर 2015 में लगी. 2004 में ही पाकिस्तान और चीन के बीच 24.8 करोड़ डॉलर में ग्वादर पोर्ट बनाने की डील हुई थी. 2016 में भी भारत और ईरान के बीच पोर्ट के संचालन का समझौता हुआ था. ताजा डील को 2016 के समझौते का ही नया रूप माना जा रहा है, लेकिन अब डील को हर साल रिन्यू करने की आवश्यकता नहीं होगी.
2016 में ईरान गए थे पीएम मोदी
साल 2015 में डील फाइनल हुई और 2016 में इसको तेजी मिली. डील के लिए 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान गए और वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति हसन रुहानी और अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ एक डील पर हस्ताक्षर किए. डील के तहत एक गलियारा बनाने पर सहमति बनी, जो तीनों देशों के इस्तेमाल के लिए होगा और उसका केंद्र चाबहार पोर्ट को बनाया गया. इस प्रोजेक्ट के लिए भारत की तरफ से 50 करोड़ डॉलर का इनवेस्टमेंट किया जाना था.
ईरान ने 2018 में चाबहार पोर्ट कर दिया था लीज आउट
चाबहार प्रोजेक्ट में दो पोर्ट को शामिल किया गया- शाहिद बेहशती और शाहिद कालंतारी. हालांकि, भारत ने सिर्फ शाहिद बेहशती पोर्ट के लिए ही डील की थी. साल 2017 में इस रूट का पहली बार इस्तेमाल किया गया और अफगानिस्तान को यहां से भारत ने गेहूं भेजा. पिछले साल भी यहां से 20,000 टन गेहूं अफगानिस्तान भेजा गया था, जबकि 2021 में भारत ने ईरान को पेस्टीसाइड भेजा था. इसके अगले साल ईरान ने इसको लीज आउट कर दिया, यानी हर 18 महीने में यह पोर्ट पट्टे पर दिया जाने लगा. बंदरगाह का काम चार चरण में पूरा होना है और इसके जरिए 8.2 करोड़ टन सामान लाने-ले जाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा.
चाबहार पोर्ट प्रस्तावित इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का हिस्सा है. INSTC भारत, ईरान, अफगानिस्तान, अर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल-ढुलाई के लिए 7,200 किलोमीटर लंबी बहुस्तरीय परिवहन परियोजना है.
गुजरात और मुंबई से करीब है चाबहार पोर्ट
चाबहार पोर्ट समझौता देश के राष्ट्र हितों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दुनिया भर के आकर्षक बाजारों के लिए रास्ता खोलता है. साथ ही चाबहार की लोकेशन भारत के लिए बेहद खास है. इसे भारत के लिए अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोपीय क्षेत्रों जोड़ने के लिए बड़ी कनेक्टिविटी के तौर देखा जा रहा है. इसकी मदद से भारत को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट और चीन की बेल्ट एंड रोड पर नजर बनाए रखने में भी मदद मिलेगी. यह पोर्ट गुजरात के कांदला पोर्ट से 550 मील दूर है. साथ ही मंबई से भी करीब है. इसके अलावा, अफगानिस्तान, मध्य एशियाई देशों और यूरोप से रास्ता प्रदान करता है.
चाबहार पोर्ट से चीन की हरकतों पर नजर रख सकेगा भारत
नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजरी बोर्ड के चेयरमैन पीएस राघवन ने बताया कि चाबहार पोर्ट के जरिए अफगानिस्तान को सामान पहुंचाना पाकिस्तानी जमीन की तुलना में ज्यादा आसान है. उनका कहना है कि पाकिस्तानी जमीन से होकर जाना ज्यादा जोखिम भरा है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक, सुरक्षा और भौगोलिक कारणों से भारत के लिए पाकिस्तानी जमीन से होकर जाने वाले रूट बंद हैं. ऐसे में चाबहार पोर्ट अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोपीय देशों तक पहुंचने के लिए बेहतर जरिया है. उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट से इन देशों के साथ भारत को व्यापारिक संबंध बढ़ाने में मदद मिलेगी.
विदेश मंत्री डॉ.एस. जयशंकर ने भी इस पर जोर दिया कि चाबहार और यूरेशियन क्षेत्रों से कनेक्टिविटी सिर्फ ईरान के साथ ही नहीं बल्कि दूसरे देशों के साथ भी रणनीतिक और आर्थिक अवसर प्रदान करती है. चाबहार के जरिए भारत की परसियन गल्फ में भी मौजूदगी बढ़ जाएगी और इस तरह चीन की हरकतों पर नजर रखने में भी आसानी होगी. बिजनेसमैन गौतम अडानी का अडानी ग्रुप पहले से ही इजरायल में हायफा पोर्ट को ऑपरेट कर रहा है.
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