ईरान में इन दिनों पितृसत्ता की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. वहां लड़कियां न सिर्फ हिजाब को आग लगा रही हैं बल्कि उस सोशल कंडीशनिंग को भी जला कर भस्म कर रही हैं जो नैतिकता के नाम पर उनके लिए ड्रेस कोड तय करती है. सिर्फ सड़कों पर ही नहीं युवा लड़कियां कॉलेज कैंपस में भी हर उस ज़बरदस्ती के खिलाफ खड़ी हो गई हैं जिसे सालों से नियम बनाकर थोपा जा रहा है.
ईरान की महिलाएं एक बार फिर 70 के दशक जैसा मुल्क बनाने के लिए जंग लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं. उनका साफ कहना है कि हिजाब अगर विकल्प होता तो माहसा अमीनी को सिर न ढंकने के लिए गिरफ्तार नहीं किया जाता. यानी मकसद साफ है कि ईरान के छात्राओं ने फिर से महिलाओं के लिए 70 के दशक जैसा मुल्क बनाने के लिए जंग का ऐलान कर दिया है. ईरान की लड़कियों ने तय कर लिया है कि अब उन्हें फिर से अपनी मर्जी का सलवार-कुर्ता, जीन्स-टॉप या कोई अन्य ड्रेस पहनना है जैसा 70 के दशक में था.
वर्तमान में ईरान में हर तरफ सरकार के खिलाफ नारेबाजी हो रही है. सोशल मीडिया पर महिलाओं के बाल काटने का वीडियो सामने आ रहा है. तो कहीं वह सुरक्षाबलों के सामने अपने हिजाब उड़ा रहीं हैं. इन प्रदर्शनों की वजह 22 साल की महसा अमिनी हैं. महसा अमिनी अब इस दुनिया में नहीं हैं. 16 सितंबर को उनकी मौत हो गई. अमिनी का एकमात्र अपराध ये था कि उसने ठीक तरह से हिजाब नहीं पहना था.
हिजाब ठीक से नहीं पहनने के कारण ईरान की मोरल पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया और एक वैन में बेरहमी से पीटा, बुरी तरह से पीटे जाने के कारण अमिनी कोमा में चली गई, बाद में उनकी मृत्यु हो गई. हालांकि, पुलिस और सरकार ने उसके खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा के दावों से इनकार किया है. लेकिन यह पहली बार नहीं है जब ईरान में किसी महिला के साथ ठीक से हिजाब न पहनने पर मारपीट की गई हो. ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं. ईरान की महिलाएं अक्सर ही इस तरह की क्रूरता का विरोध करती रही हैं.
साल 2018 के अप्रैल महीने में एक महिला ने हिजाब को 'गलत तरीके से' बांधा था जिसके कारण महिला मोरल पुलिस अधिकारी ने सार्वजनिक तौर पर उसकी पिटाई कर दी थी. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर रातों रात वायरल हो गया था जिसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस घटना की निंदा की गई थी.
70 के दशक में क्या थी ईरान की स्थिति
इन प्रोटेस्ट्स के बीच सोशल मीडिया पर 70 के दशक की तस्वीरें भी एक बार फिर वायरल होने लगी हैं. ईरान में इस्लामिक क्रांति से पहले की तस्वीरों और वीडियो में महिलाओं के स्वतंत्र रूप से कपड़े पहनने का चित्रण मिलता है. आइए जानते हैं कि कैसे वहां के लोगों को इस्लामी परंपराओं के नाम पर सरकारी नियमों के मुताबिक कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता है.
ईरान में साल 1979 में हुई ईरानी क्रांति (जिसे इस्लामिक क्रांति के रूप में भी जाना जाता है) के बाद, महिलाओं के लिए शरिया द्वारा निर्धारित कपड़े पहनने के लिए एक कानून पारित किया गया था. इस कानून के बाद वहां की महिलाओं के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया गया. साथ ही वहां रहने वाली महिलाओं को सिर पर स्कार्फ या हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया. हालांकि इस्लामिक क्रांति से पहले, रज़ा शाह पहलवी के शासन में ईरान में कई सामाजिक सुधार हुए थे, जिन्होंने महिलाओं को काफी स्वतंत्रता दी थी.
रजा शाह पहलवी और ईरान का आधुनिकीकरण
19वीं सदी के अंत में ईरानी समाज पर जमींदारों, व्यापारियों, बुद्धिजीवियों और शिया मौलवियों का प्रभाव था. वे सभी संवैधानिक क्रांति में एक साथ आए लेकिन काजर राजवंश के शासन को उखाड़ फेंकने में विफल रहे. बता दें कि काजर राजवंश ने 1794 से 1925 तक ईरान पर शासन किया है.
हालांकि, जमींदारों, व्यापारियों, बुद्धिजीवियों और शिया मौलवियों के इस क्रांति के कारण कुलीन फारसी कोसैक ब्रिगेड (पहलवी राजवंश के संस्थापक) के कमांडर जनरल रजा खान का उदय हुआ. 1925 में, यूनाइटेड किंगडम की मदद से, वह सत्ता में आए और एक संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना की. रजा शाह यूके और यूएसए से काफी प्रभावित थे. ईरान में शासन करने के वर्षों बाद, उन्होंने कई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सुधारों की शुरुआत की. उन्होंने इस्लामी कानूनों को आधुनिक समय के पश्चिमी कानूनों से बदल दिया. उन्होंने उचित मानवाधिकार और एक प्रभावी लोकतंत्र की स्थापना के लिए भी आवाज उठाई.
पहलवी वंश के रेजा शाह को हिजाब और बुर्का पसंद नहीं था. उन्होंने इस पर बैन लगा दिया. जो महिलाएं हिजाब या बुर्का पहनती थीं, उन्हें परेशान किया जाने लगा. रजा शाह इन सुधारों को लेकर इतने गंभीर थे कि उन्होंने साल 1936 में कशफ-ए-हिजाब लागू किया. इस कानून के तहत कोई महिला हिजाब पहनती है तो वहां की पुलिस को उसे हटाने की अधिकार था. इन सभी बदलाव के पीछे रेजा शाह का प्रमुख उद्देश्य समाज में रूढ़िवादियों के प्रभाव को कमजोर करना था.
कौन थे मोहम्मद रजा शाह
मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी रज़ा शाह के पुत्र थे. उन्होंने 1941 में ईरान की गद्दी संभाली. मोहम्मद रज़ा अपने पिता की तरह ही पश्चिमी संस्कृति से बहुत ज्यादा प्रभावित थे. उन्होंने महिलाओं के लिए समान अधिकारों का समर्थन किया और उनकी स्थिति में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए.
देश के आधुनिकीकरण के लिए, उन्होंने साल 1963 में महिलाओं को वोट देने का अधिकार देते हुए 'श्वेत क्रांति' की शुरुआत की, जिसके परिणामस्वरूप महिलाएं भी संसद के लिए चुनी गईं. इसके अलावा 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किया गया जिसमें महिलाओं को समान अधिकार मिले. लड़कियों की शादी की उम्र भी 13 से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई और गर्भपात को भी कानूनी बना दिया गया. लड़कियों की पढ़ाई में भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया. 1970 के दशक तक, ईरान के विश्वविद्यालयों में लड़कियों की हिस्सेदारी 30% थी. हालांकि यह क्रांति 1978 में समाप्त हो गई.
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