Iron Meteorite: स्वीडन में अंतरिक्ष से गिरे दुर्लभ उल्कापिंड, अब इसको लेकर क्यों हो रही लड़ाई
Iron Meteorite: उल्कापिंड के गिरने के कुछ दिन बाद ही भूविज्ञानी एंडर्स जेटेरक्विस्ट ने उस स्थान का पता लगाया था, जहां पर यह पिंड गिरा था.
Iron Meteorite in Sweden: स्वीडन में चार साल पहले गिरा एक दुर्लभ उल्कापिंड विवाद का विषय बन गया है. यह आयरन मीटियोराइट एक निजी संपत्ति पर गिरा था, जिसकी वजह से साल 2020 से ही कानूनी लड़ाई चल रही है. हाल में एक अपीलीय अदालत के आए फैसले ने वैज्ञानिकों को परेशानी में डाल दिया है. वैज्ञानिकों ने क्षेत्र में लगाए गए उल्कापिंडों की निगरानी करने वाले कैमरों की मदद से इस उल्कापिंड को पाया था.
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, इस मसले ने एक नया मोड़ तब ले लिया जब बीते गुरुवार को एक अपीलीय अदालत ने जमीन मालिक के पक्ष में फैसला सुना दिया. अपीलीय अदालत ने उस फैसले को पलट दिया, जिसमें इस उल्कापिंड को पाने वाले दो लोगों के पक्ष में फैसला दिया था. उल्कापिंड के गिरने के कुछ दिन बाद ही भूविज्ञानी एंडर्स जेटेरक्विस्ट ने उस स्थान का पता लगाया था, जहां पर यह पिंड गिरा था. काफी खोज के बाद काई से चिपके 30 पाउंड के आयरन मीटियोराइट के टुकड़े को वैज्ञानिक ने बरामद किया था.
लोहे का उल्कापिंड विश्व स्तर पर दुर्लभ
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्टॉकहोम के उत्तर में गिरने वाला उल्कापिंड दुनिया में गिरने वाले लोहे के उल्कापिंडों में से एक था. लोहे के उल्कापिंडों का गिरना विश्व स्तर पर दुर्लभ है. स्वीडन में अभी तक सिर्फ एक ही लोहे का उल्कापिंड गिरा है, जिसपर विवाद चल रहा है. बताया जाता है कि यह उल्कापिंड गिरने के दौरान जल जाते हैं.
जमीन मालिक ने दायर किया था केस
स्वीडन में यह उल्कापिंड नवंबर 2020 में गिरा था, वैज्ञानिकों द्वारा उल्कापिंड के पाए जाने की घोषणा करने के एक सप्ताह बाद जिस स्थान पर पिंड गिरा था उसके मालिक जोहान बेन्ज़ेलस्टिएरना वॉन एंजेस्ट्रोम ने संग्रहालय को पत्र भेजा था. जमीन के मालिक का कहना था कि यह पिंड उसका होना चाहिए क्योंकि उसके जमीन में गिरा था.
सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं वैज्ञानिक
दिसंबर 2022 में उप्साला जिला न्यायालय ने इस मामले में उल्कापिंड को चल संपत्ति मानते हुए वैज्ञानिकों के पक्ष में फैसला सुनाया था. लेकिन जमीन के मालिक द्वारा अपील करने के बाद न्यायालय ने अब जमीन मालिक के पक्ष में फैसला सुना दिया है. अब वैज्ञानिक इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जाना चाहते हैं.
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