नई दिल्ली: मोसुल में ना सिर्फ 39 भारतीयों की हत्या हुई बल्कि हत्यारे बगदादी ने एक शहर के तौर पर मोसुल की भी हत्या की है. बगदादी के कत्लेआम और फिर उसे हराने के लिए हुई आसमानी बमबारी ने मोसुल को बर्बाद कर दिया.


जून 2014 में इराक में आईएसआईएस दाखिल हुआ और सबसे पहले उत्तरी इराक के शहर मोसुल पर अपनी काली नजरें गड़ा दीं. राजधानी बगदाद से करीब 400 किलोमीटर दूर मोसुल शहर इराक का दूसरा सबसे बड़ा शहर था.


आईएसआईएस के महज 1500 लड़ाकों ने ही जंग की शुरूआत की लेकिन धीरे धीरे आईएस अपना दबदबा बढ़ाता गया. कुछ ही महीनों में आतंकियों की संख्या 30 हजार के पार पहुंच गई. उस वक्त इराकी फौज की तादाद आईएस से करीब 8 गुना ज्यादा थी, लेकिन फिर भी अपने खूंखार इरादों की वजह से आईएस इराकी फौज पर भारी पड़ा.


देखते ही देखते 30 लाख की आबादी वाले मोसुल पर आईएसआईएस का कब्जा हो गया. आईएसआईएस ने मोसुल पर कब्जे को अपनी बड़ी कामयाबी के तौर पर पेश किया. आईएसआईएस का प्रमुख अबु बकर अल बगदादी ने मोसुल की मस्जिद से खुद को खलीफा घोषित किया था.


मोसुल पर कब्जे के बाद वहां इराकी सेना के पांव पूरी तरह उखड़ गए और आईएसआईएस का साम्राज्य कायम हो गया. उसके अपने कायदे-कानून चलने लगे जिसके खिलाफ जाने पर वहां कत्लेआम होने लगे. उसने एक खुशहाल शहर को पूरी तरह बर्बाद कर दिया. मोसुल की तस्वीर बदल गई थी. एबीपी न्यूज जब पिछले साल मोसुल पहुंचा तो वहां हर जगह तबाही के निशान दिख रहे थेय.


मोसुल समेत इराक की 65 फीसदी जमीन पर बगदादी का कब्जा हो चुका था लेकिन अपने बड़े शहर मोसुल को बगदादी के कहर से बचाने और दोबारा अपने कब्जे में करने के लिए इराकी सेना ने भी लड़ाई लड़ी. तीन सालों तक संघर्ष चलता रहा. जमीनी सेना के अलावा इराकी वायुसैनिकों ने बगदादी के ठिकानों पर भारी बमबारी की. इसमें इराक को अमेरिका और नाटो सैनिकों का भी सहयोग मिला. हजारों बम बरसाने के बाद जब जुलाई 2017 में मोसुल पर इराकी सैनिकों को दोबारा कब्जा हो गया लेकिन उस वक्त तक मोसुल में शहर जैसा कुछ भी नहीं बचा था.