निशाना- इजराइल, दो लड़ाके संगठन- हमास और फतह, फिर भी दोनों में है बड़ा अंतर, जानें इन संगठनों से जुड़ी हर बात
Hamas And Fatah: फिलिस्तीन में इजराइल के खिलाफ हिंसक आंदोलन के लिए दो गुट रहे हैं. इनमें फतह और अब हमास हावी है. दोनों में बड़ा अंतर है.
Israel Attack Hamas: इजराइल पर फिलिस्तीन के हमास लड़ाकों ने शनिवार (7 अक्टूबर 2023) को चौतरफा हमला कर कई ठिकानों पर कब्जा कर लिया. एकाएक कम से कम 7000 रॉकेट दागने के बाद हमास के लड़ाके गाजा पट्टी की सीमा पार कर इजराइल में घुस गए.
हमास के कुछ लड़ाके गाजा पट्टी की सीमा से फायरिंग करते हुए दाखिल हुए तो कुछ स्काई डाइविंग के जरिए इजराइल की सीमा में उतर गए. इसके अलावा गाजा पट्टी से सटी नदी के रास्ते से भी हमास के लड़ाके इजराइल की सीमा में घुसे और हमले किए.
अचानक हुए इस हमले से इजराइल को भारी नुकसान हुआ है जिसके बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी है. लंबे समय से इजराइल और फिलीस्तीन के बीच हिंसक संघर्ष होते रहे हैं. इसमें हमास का नाम हमेशा इजराइल में हिंसक हमलों के लिए सामने आता रहा है. फिलिस्तीन में हमास की तरह ही एक और लड़ाका संगठन है जिसका नाम 'फतह' है. इसका अर्थ होता है 'जीत'. इसने भी अपनी स्थापना के बाद से 40 सालों तक इजराइल से जंग की लेकिन जीत नहीं सका.
आइये जानते हैं कि फिलिस्तीन के इन दोनों गुटों में क्या अंतर है. भले ही इन दोनों का मकसद इजराइल के विवादित क्षेत्र पर दोबारा कब्जे को लेकर एक रहा है, लेकिन दोनों में मूलभूत अंतर है.
सीमा पर विवादित क्षेत्र को लेकर होती है जंग
हमास और फतह दोनों ही गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और येरुशलम के उस इलाके को दोबारा फिलिस्तीन के राज्य के रूप में शामिल करना चाहते हैं जिस पर इजराइल ने 1967 में कब्जा कर लिया था. हालांकि हमास बातचीत के बजाय युद्ध के जरिए इजराइल से यह हिस्सा छीनना चाहता है, जबकि फतह करीब 40 सालों (1950-1990) की हिंसक लड़ाई के बाद बातचीत में भरोसा रखने वाला संगठन बन गया है.
हमास और फतह में है बड़ा फर्क
हमास कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है जबकि फतह धर्मनिरपेक्षता को प्राथमिकता देता है. इजराइल के प्रति रणनीति की बात करें तो हमास सशस्त्र युद्ध का पक्षधर है जबकि फतह बातचीत के जरिए विवादित हिस्से पर दोबारा शासन स्थापित करना चाहता है. फतह एक अरबी शब्द है जिसका अंग्रेजी में नाम नेशनल लिबरेशन मूवमेंट है और इसका अर्थ होता है "जीतना".
कुवैत में हुई फतह की स्थापना
कुवैत में प्रवासी फिलिस्तीनियों ने 1950 में फतह की स्थापना की थी. इसकी स्थापना में फिलिस्तीन अथॉरिटी के दिवंगत प्रेसिडेंट यासिर अराफात, खलील अल वजीर, सलाह खलाफ और महमूद अब्बास का हाथ था. अब्बास फिलहाल फिलिस्तीनी अथॉरिटी के अध्यक्ष हैं. स्थापना के वक्त इसका मकसद इजराइल के खिलाफ सशस्त्र लड़ाई था. तब इसकी सेना का नाम अलशिफा था, जिसका मतलब 'स्टॉर्म' यानी आंधी होता है.
इजराइल से हार के बाद हथियार छोड़ने की घोषणा
इसके लड़ाके तब अरब के कई देशों के साथ ही वेस्ट बैंक और गाजा में भी थे. फतह ने 1965 में जॉर्डन और लेबनान से इजराइल के खिलाफ सशस्त्र युद्ध की शुरुआत की. 1967 के अरब इजराइल युद्ध के बाद फतह फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) का सबसे ताकतवर समूह बनकर उभरा था.
हालांकि युद्ध में इजराइल की जीत और अरब की हार के बाद फतह समूह को जॉर्डन और लेबनान से निकाल दिया गया जिसके बाद 1970 से 80 के दशक में इसने अपनी रणनीति बदली और इजराइल के साथ बातचीत के रास्ते पर आ गया. 1990 में फतह ने हथियार छोड़कर शांति से मुद्दे के समाधान की घोषणा की.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव था अहम
अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन की स्थापना 1964 में की गई थी ताकि फिलीस्तीन को आजाद कराया जा सके. उसमें फतह सहित कई संगठन थे. 1990 में यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल ने एक रेजोल्यूशन पास कर 1967 बॉर्डर के मुताबिक फिलिस्तीन राज्य बनाने की घोषणा की. इसके बाद ही फतह ने हथियार छोड़े. हालांकि, सिक्यॉरिटी काउंसिल के प्रस्ताव में इजराइल के अस्तित्व को भी माना गया.
अब बात करते हैं हमास की
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव से 3 साल पहले गाजा में 1987 में हमास की स्थापना इमाम शेख अहमद यासिर और अब्दुल अजीज अल रंतीसी ने की. स्थापना के साथ ही इसका मकसद इजराइल के खिलाफ सशस्त्र युद्ध रहा है.
यह आंदोलन मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा के रूप में शुरू हुआ और ऐतिहासिक फिलिस्तीन को आजाद कराने के उद्देश्य से इजराइल के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए इज़ अल-दीन अल-क़सम नाम से सैन्य ब्रिगेड बनाई. इसने इजराइली कब्जे के फिलिस्तीनी पीड़ितों को कई तरह से मदद करना शुरू किया.
इस्लाम के नाम पर एकजुटता को बनाया हथियार
हमास इस्लाम के नाम पर दुनियाभर में एकजुटता का आह्वान करता रहा है और अपने हिंसक युद्ध को इस्लाम के लिए जंग करार देता रहा है. शनिवार (7 अक्टूबर) को भी इजराइल पर हमले के बाद इसने वीडियो जारी कर ईरान, इराक, सीरिया समेत दुनियाभर के मुस्लिम देशों से इस्लाम के नाम पर एकजुट होकर मदद करने की अपील की है.
2017 में हमास ने एक राजनीतिक दस्तावेज जारी कर कहा था कि समुद्र, नदी और हर तरफ से फिलिस्तीन की पूर्ण आजादी ही उसकी एकमात्र मांग है. इसके साथ ही हमास ने इजराइल के अस्तित्व को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. यह 1990 में यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल के प्रस्ताव के विपरीत था.
चार बार इजराइल से हुई है जंग
2007 से लेकर अब तक इजराइल ने हमास के खिलाफ चार बड़े हमले किए हैं. अल जजीरा से खास बातचीत में रामल्ला के रहने वाले इस्लामी कार्यकर्ता हाजिम अबू हलाल कहते हैं, "हमास के पास एक बड़ा जनाधार है जो दुनियाभर में उसके काम के प्रचार-प्रसार के लिए काम करता है. उसकी आइडियोलॉजी के प्रचार के लिए भी काम होते हैं. हमास फिलिस्तीन में चुनाव जीतने वाला सबसे प्रभावी संगठन रहा है."
हलाल ने कहा, "आज के दौर में अगर कॉलेज के छात्रों से आप पूछेंगे तो शायद ही कोई फतह या उसके विचारों के बारे में जानता होगा लेकिन हमास और उसके लक्ष्य के बारे में लोग (फिलिस्तीन के) भली भांति जानते हैं."
उन्होंने इशारे-इशारे में बताया कि 1990 के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के बाद हमास मूल रूप से इजराइल के खिलाफ हिंसक प्रतिरोध को जारी रखने के लिए काम करता रहा है. जबकि फतह इस रास्ते से हट चुका है.
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