पहले पेजर, फिर वॉकी-टॉकी, उसके बाद रेडियो सेट और फिर सोलर पैनल में धमाके करने के बाद इजरायल ने इतने बम मारे हैं कि पूरा लेबनान धुंआ-धुंआ हो गया है. लेबनान में जो हेजबुल्लाह है उसके करीब 500 लड़ाके मारे गए हैं और 1600 से ज्यादा ठिकाने नेस्तनाबूद हो गए हैं. फिलिस्तीन में हमास के खिलाफ इजरायल की हालिया जंग करीब एक साल से चल ही रही है. यमन में हूतियों के खिलाफ इजरायल लगातार हमले कर ही रहा है. अभी महीने भर से भी कम का वक्त हुआ है जब इजरायल ने सीरिया के मसयफ और हामा इलाके में भयानक बम दागे और वहां से ईरान के कई वैज्ञानिकों को अगवा कर लिया. ईरान की राजधानी तेहरान जाकर इजरायल की खुफिया एजेंसी हमास के मुखिया इस्माइल हनिया की हत्या कर ही चुकी है...तो फिर बचा कौन.


एक देश और इतने सारे दुश्मन. आखिर क्यों. आखिर क्यों मिडिल ईस्ट के हर देश का इकलौता दुश्मन इ़जरायल ही है. आखिर क्यों फिलिस्तीन से लेकर लेबनान, यमन, ईरान और सीरिया तक इजरायल के ऐसे दुश्मन बन गए हैं कि इजरायल हर रोज उनसे लड़ता रहता है. बाकी हमला करे न करे, लेकिन इराक, मिस्र और जॉर्डन भी इजरायल के दोस्त तो नहीं ही हैं. तो क्या ये मसला सिर्फ इस्लाम बनाम यहूदी का है. या फिर ये पूरी जंग खुद को मिडिल ईस्ट में बनाए और बचाए रखने की है. या फिर इजरायल की इस पूरी दुश्मनी के पीछे है तेल का खेल, जिसका खिलाड़ी इजरायल न होकर अमेरिका है.


16 मुस्लिम मुल्कों में इकलौता यहूदी देश
मिडिल ईस्ट के नक्शे पर आपको जो देश दिखते हैं उनमें एक तरफ इजरायल तो है ही, बाकी बहरीन, ईरान, इराक, फिलिस्तीन, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, ओमान, कतर, सऊदी अरब, सीरिया, यूएई और यमन हैं. कुल 14 देश. बाकी दो और देशों तुर्की और लीबिया को भी मिडिल ईस्ट का ही हिस्सा माना जाता है. तो हो गए कुल 16 देश. और इन 16 देशों में से 15 देश तो मुस्लिम हैं, जबकि इकलौता यहूदी देश है इजरायल. और इस इजरायल के बनने का जो इतिहास है, वही झगड़े की सबसे बड़ी जड़ है.


एक टुकड़े के पीछे शुरू हुई लड़ाई
इसकी शुरुआत होती है दूसरे विश्वयुद्ध के खात्मे के बाद. जब दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो ब्रिटेन ने भी अपने उपनिवेश समेटने शुरू किए. और तब अरब लोगों को मुक्ति मिली. उन्हें अपने लिए नया देश चाहिए था. वहीं दुनिया में यहूदियों पर भी अत्याचार हुए थे. विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद उन्हें भी देश चाहिए था ताकि वो शांति से रह सकें. मुसीबत तब शुरू हुई, जब दोनों ही समुदायों यानी कि मुस्लिमों और यहूदियों ने ब्रिटेन से आजाद हुए जमीन के उस बड़े टुकड़े को अपने देश के तौर पर बनाना शुरू किया. और यहीं से मुस्लिमों और यहूदियों के बीच बड़ा झगड़ा शुरू हो गया.


कब बना इजरायल और फिलिस्तीन?
तब तक दुनिया के देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए यूनाइटेड नेशंस बन चुका था. उसने 1947 में प्रस्ताव दिया कि जमीन के उस बड़े टुकड़े को दो हिस्सों में बांट दिया जाए. 1948 में यूएन की पहल पर बंटवारा हो गया और एक नया देश बना इजरायल. यहूदियों का देश. दुनिया का इकलौता यहूदी मुल्क. जो गैर यहूदी थे, वो दूसरे टुकड़े की तरफ आ गए. उनकी आबादी थी करीब 13 लाख. उसे फिलिस्तीन कहा गया, लेकिन तब कुछ मुस्लिम देशों को इजरायल का बनना रास नहीं आया. शुरुआत में इजरायल के विरोधी इजिप्ट यानी कि मिस्त्र, जॉर्डन, इराक और सीरिया ही थे. बाकी फिलिस्तीन तो था ही.


सिक्स डे वॉर
इजरायल के बनने के साथ ही इजिप्ट, जॉर्डन, इराक और सीरिया ने मिलकर इजरायल पर हमला कर दिया. तर्क देने वाले तर्क देते हैं कि हमला इसलिए हुआ था, क्योंकि इजरायल ने मुस्लिमों पर अत्याचार किया था और उन्हें भागने पर मजबूर किया था. दूसरा तर्क ये भी आता है कि इजरायल को ये सभी मुस्लिम देश विदेशी शासन का नमूना मानते थे, इसलिए हमला किया था. तर्क खैर जो भी सही हो, लेकिन नतीजा ये हुआ कि सारे देश मिलकर भी इजरायल का कुछ बिगाड़ नहीं सके. लेकिन अब वो नए बने देश इजरायल के घोषित दुश्मन बन चुके थे. और गाहे-बगाहे इन देशों के साथ इजरायल की लड़ाई चलती ही रहती थी, जो कभी-कभी बहुत बड़ी हो जाया करती थी. 1967 के सिक्स डे वॉर के दौरान इजरायल के खिलाफ हमले में यमन भी शामिल था. तो वो भी इजरायल का दुश्मन हो गया.

ईरान से कैसे शुरू हुई दुश्मनी
इस दुश्मनी में तब भी न तो ईरान था, न लेबनान, न इराक और न ही तुर्की. तब भी ये इजरायल के भले ही दोस्त नहीं थे, लेकिन दुश्मन भी नहीं थे. इनकी दुश्मनी की शुरुआत होती है ईरान की क्रांति से. 1979 में ईरान में शाह रजा पहलवी का शासन खत्म हुआ और 1 फरवरी, 1979 को अयातोल्लाह ख़मेनेई ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता के तौर पर देश वापस लौटे. उनके स्वागत के लिए तेहरान की सड़कों पर 50 लाख से भी ज्यादा लोग इकट्ठा हो गए. अयातोल्लाह ख़मेनेई के लौटने के बाद ईरान में जनमत संग्रह हुआ और फिर ईरान को इस्लामिक देश घोषित कर दिया गया. इस्लामिक मुल्क घोषित होने के साथ ही अयातुल्लाह खमेनेई ने इजरायल के अस्तित्व पर सवाल उठा दिए. इजरायल से संबंध तोड़ लिए. उसके पासपोर्ट को खारिज कर दिया और तेहरान में इजरायल के दूतावास को ज़ब्त कर कहा कि देश सिर्फ फिलिस्तीन है इजरायल नहीं. तब खमेनेई ने कहा कि इजरायल मुस्लिमों के लिए छोटा शैतान है जबकि बड़ा शैतान अमेरिका है.

इजरायल कैसे बना इराक का दुश्मन?
इस तरह से इजरायल को एक और दुश्मन देश मिल गया ईरान. लेकिन ईरान की दुश्मनी से इजरायल को नुकसान था. और नुकसान ये था कि ईरान इजरायल से बड़े पैमाने पर हथियार खरीदता था. इससे ईरान को हथियार मिलते थे और इजरायल को पैसे. लेकिन दुश्मनी शुरू हुई तो दोनों ही देशों को नुकसान होना शुरू हो गया. इस बीच सद्दान हुसैन के नेतृत्व वाले इराक को लगा कि इस्लामिक क्रांति की वजह से ईरान कमजोर हुआ है, तो हमला करके उसके एक हिस्से पर इराक अपना कब्जा कर सकता है. तो इराक ने ईरान पर हमला कर दिया. ऐसे में ईरान ने फिर से इजरायल से मदद मांगी. और इजरायल को भी हथियार बेचकर पैसे कमाने थे. तो इजरायल ने ईरान को हथियार बेचे जो उसने इराक के खिलाफ इस्तेमाल किया. अब ईरान चूंकि हथियार खरीद रहा था, पैसे दे रहा था. तो इजरायल ने ईरान की थोड़ी और मदद की. और इजरायल की एयरफोर्स ने इराक के इकलौते परमाणु संयंत्र को बमबारी करके तबाह कर दिया. इस तरह से इजरायल ने इराक को भी अपना दुश्मन बना लिया.


लेबनान से दुश्मनी का इतिहास
ये वही दौर था, जब फिलिस्तीन भी अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था. और इस लड़ाई में फिलिस्तीन को लेबनान का भी साथ मिल गया था, क्योंकि इजरायल के गठन के दौरान जब लाखों फिलिस्तीनियों को विस्थापित होना पड़ा था, तो उनमें कई लोग भागकर लेबनान में भी शरण लिए हुए थे. उनमें इजरायल के खिलाफ गुस्सा था. और उस गुस्से को निकालने के लिए उन्हें किसी का साथ चाहिए था. तो फिलिस्तीन ने लेबनान के उन शरणार्थियों का साथ दिया. बाकी ईरान तो था ही. क्योंकि भले ही उसने इराक के खिलाफ जंग के लिए इजरायल से हथियार खरीदे थे लेकिन था तो वो इजरायल का दुश्मन ही. और ऐसे में 1982 में ईरान की सेना के करीब 1500 लड़ाकों के साथ मिलकर लेबनान के उन शरणार्थियों ने एक फौज बनाई और इसे नाम दिया हेजबुल्लाह. तो इस तरह से लेबनान और हेजबुल्लाह इजरायल के दुश्मन बन गए. और वही दुश्मनी आज तक कायम है. अब रही बात तुर्की की, तो उसे आज भी इजरायल का न तो दोस्त कह सकते हैं और न ही दुश्मन.

तेल के लिए लड़ाई
बाकी इजरायल के जितने भी दुश्मन देश हैं, वहां पर तेल का भंडार है. कच्चे तेल का भंडार.और सबसे ज्यादा तेल है ईरान और इराक के पास. तो इस तेल भंडार पर दुनिया का हर देश कब्जा करना चाहता है. वो बात चाहे अमेरिका की हो या फिर किसी और की. लिहाजा हमको-आपको भले ही ये दिखता हो कि इजरायल अपने सभी दु्श्मनों से अकेला लड़ रहा है, लेकिन ऐसा है नहीं. इस लड़ाई में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस समेत दुनिया के हर वो देश इजरायल के साथ खड़े हैं, जिन्हें तेल चाहिए. लिहाजा कहने वाले कहते रहें कि यहूदी मुल्क इजरायल इस्लामिक मुल्कों से अकेले लड़ाई लड़ रहा है लेकिन असल में खेल इस्लाम बनाम यहूदी का नहीं बल्कि तेल का है. और तेल के खेल में दुनिया तबाह हो रही है. क्योंकि अगर लड़ाई सिर्फ इस्लाम बनाम यहूदी की होती तो दुनिया की करीब 13 फीसदी इस्लामिक आबादी वाला इंडोनेशिया भी इजरायल का दुश्मन होता और करीब 9 फीसदी आबादी वाला बांग्लादेश भी.


पूरी दुनिया की तकरीबन 10 फीसदी मुस्लिम आबादी भारत में भी है, लेकिन वो न तो इजरायल का दुश्मन है और न ही फिलिस्तीन का. और रही बात ईरान, इराक, लेबनान, यमन, मिस्र और दूसरे इजरायल के दुश्मनों की, तो वो सिर्फ इजरायल के ही दुश्मन नहीं हैं बल्कि अमेरिका के भी दुश्मन हैं. और अमेरिका से उनकी दुश्मनी की वजह इजरायल नहीं बल्कि उनके पास का वो अकूत तेल भंडार है, जिसपर अमेरिका की नजर है.


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