Israel Gaza Attack: हमास के साथ चल रही इजरायल की इस जंग में भारत समेत दुनिया के तमाम देश इजरायल और उसके प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं.


अरब देशों को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा मुल्क है, जो इजरायल के साथ न हो, लेकिन मुसीबत ये है कि इजरायल के लोग ही अपने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ पूरी तरह से खड़े नहीं हैं और अगर नेतन्याहू आने वाले दिनों में हमास के खिलाफ जंग जीत भी जाते हैं तो उन्हें अपने घर में ही इतनी बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ेगी कि शायद उन्हें अपने पद से भी इस्तीफा देना पड़ जाए और वो दूसरों से जंग जीतकर भी अपनों से हार जाएंगे.


फलस्तीन का दोस्त रहा भारत भी इजरायल के साथ खड़ा
यूं तो इजरायल और फलस्तीन का झगड़ा बेहद पुराना है, लेकिन इस बार लड़ाई इन दोनों की नहीं बल्कि गाजा पट्टी पर कब्जा जमाए बैठे चरमपंथी संगठन हमास की है. लिहाजा फलस्तीन का पुराना दोस्त रहा भारत भी इजरायल के ही साथ खड़ा है, लेकिन इस पूरी लड़ाई में बेंजामिन नेतन्याहू अपने ही देश में अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं.


वो भी तब जब बेंजामिन नेतन्याहू वो नेता हैं, जो पिछले करीब 30 साल से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर इजरायल की राजनीति कर रहे हैं. कुछ लोग उन्हें जादूगर कहते हैं, क्योंकि वो हार के मुंह से जीत छीन लाते हैं. कुछ लोग उन्हें किंग बीबी कहते हैं, क्योंकि वो किसी भी दूसरे नेता की तुलना में ज्यादा लंबे समय से इजरायल की राजनीति में हैं. कुछ उन्हें सिर्फ बीबी कहते हैं तो एक बड़ा तबका है, जो बेंजामिन नेतन्याहू को मिस्टर सिक्योरिटी कहता है.


नेतन्याहू की छवि को लगा बड़ा धक्का
हालांकि, इस बार हमास ने जिस तैयारी से हमला किया है, उसने बेंजामिन नेतन्याहू की पूरी छवि को ही ध्वस्त कर दिया है. अगर हिटलर के यहूदी नरसंहार को छोड़ दें, जिसमें एक गैस चैंबर में यहूदियों को बंदकर उनकी हत्या कर दी गई थी तो एक दिन में इतने यहूदियों की मौत कभी नहीं हुई थी, जितनी हमास के हमले में हुई है.


इसके लिए अब इजरायल के विपक्षी नेता से लेकर आम लोग और मीडिया तक बेंजामिन नेतन्याहू को ही दोषी ठहरा रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि हमास का हमला नेतन्याहू और उनकी खुफिया एजेंसी मोसाद का फेल्योर है.


जिसने संकट से उबारा, उसे ही देना पड़ा इस्तीफा
इजरायल का इतिहास भी यही कहता है कि जिस भी प्रधानमंत्री ने देश को बड़े संकट से उबारा है, संकट बीतने के बाद उसे इस्तीफा ही देना पड़ा है. उदाहरण के तौर पर 1973 में हुआ योम किप्पुर युद्ध, जिसमें तब के इजरायली प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर को लगता था कि तीन-तीन लड़ाइयां हार चुका अरब लीग हमला नहीं करेगा, लेकिन हमला हो गया.


अभी जिस तरह से 7 सितंबर को हमास ने अचानक से इजरायल पर हमला किया, ठीक वैसा ही हमला 50 साल पहले अरब देशों ने किया था, जिसमें इजरायल को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. हालांकि इजरायल ने अमेरिकी मदद से वो भी जंग जीत ली, लेकिन उस जंग में इजरायल का इतना नुकसान हुआ कि लोगों ने गोल्डा मेयर को कभी माफ नहीं किया और 1974 में हुए चुनाव में उनकी कुर्सी चली गई.


मेनाकेम बिगिन भी हुए थे सत्ता से बाहर
यही हाल मेनाकेम बिगिन का भी हुआ. 1982 में जब मेनाकेम बिगिन के प्रधानमंत्री रहते हुए इजरायली डिफेंस फोर्स ने दक्षिणी लेबनान में हमला किया तो उस जंग में भी इजरायल को खासा नुकसान उठाना पड़ा. इस लड़ाई में इजरायल के करीब 700 लोग मारे गए, जिसमें इजरायली डिफेंस फोर्स के ब्रिगेडियर जनरल के साथ ही कर्नल, लेफ्टिनेंट कर्नल, मेजर, कैप्टन, लेफ्टिनेंट और सार्जेंट तक शामिल थे.


इस जंग में जीत भले ही इजरायल की ही हुई, लेकिन अगले साल हुए चुनाव में मेनाकेम बिगिन प्रधानमंत्री नहीं बन पाए. जीत भले ही उनकी ही पार्टी हेरूत की हुई, लेकिन बिगिन की जगह येजहाक शामिर ने ले ली थी.


34 दिनों की लड़ाई के बाद भी हुआ ओलमर्ट का इस्तीफा
साल 2006 में दूसरे लेबनान युद्ध के दौरान इहुद ओलमर्ट के साथ भी यही हुआ. इहुद ओलमर्ट के प्रधानमंत्री रहने के दौरान लेबनान के चरमपंथी संगठन हिजबुल्लाह के साथ इजरायली डिफेंस फोर्स की जंग हुई. 34 दिनों तक चली ये लड़ाई तब खत्म हुई, जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने दखल दिया, लेकिन इस लड़ाई में भी इजरायल का इतना नुकसान हुआ कि लोगों ने अपने प्रधानमंत्री इहुद ओलमर्ट को कभी माफ नहीं किया और चुनाव में उनकी सत्ता बदल गई.


बेंजामिन नेतन्याहू ने इहुद ओलमर्ट की ही जगह ली थी. एक साल के नफ्ताली बेनेट और येर लिपिड के कार्यकाल को छोड़ दें तो बेंजामिन नेतन्याहू मार्च 2009 से ही इजरायल की सत्ता पर काबिज हैं.


हमास के हमले के लिए नेतन्याहू को दोषी मानती है जनता
अब इजरायल फिर से एक मुसीबत में फंसा है. हो सकता है कि नेतन्याहू इजरायल को इस मुसीबत से बचा लें, लेकिन इस जंग के खात्मे के बाद उनकी खुद की मुसीबत खत्म होने वाली नहीं है. अभी हाल ही में आई येरूशलम पोस्ट की एक रिपोर्ट कहती है कि इजरायल के करीब 94 फीसदी लोग इस बात में यकीन करते हैं कि हमास के हमले के लिए जिम्मेदार नेतन्याहू सरकार है, क्योंकि सरकार की नीतियों की वजह से ही हमास का आंकलन करने में गलती हुई है.


इसी रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि इजरायल के करीब 56 फीसदी लोग चाहते हैं कि ये संकट खत्म होने पर नेतन्याहू को इस्तीफा दे देना चाहिए, जबकि 28 फीसदी लोग तो चाहते हैं कि नेतन्याहू को तुरंत ही इस्तीफा देना चाहिए.


अब जंग तो अभी शुरू हुई है, लेकिन इस जंग के शुरू होने से पहले भी नेतन्याहू अपने ही देश में अपने ही लोगों का विरोध झेलते रहे हैं. चाहे वो बात सुप्रीम कोर्ट के पर कतरने की हो या फिर नेतन्याहू के खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मामले की हो या फिर उनकी खुद के स्वास्थ्य समस्याओं की, नेतन्याहू के सामने मुसीबतों का अंबार लगा है, जिसमें वो भले ही दुनिया का पुरजोर समर्थन हासिल कर लें, उनको अपने ही देश में अपने लिए समर्थन जुटाना मुश्किल हो जाएगा.


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