Israel Hamas War: इजरायल पर सात अक्टूबर को हमास की ओर से किए गए हमलों के बाद उसके लड़ाकों ने 240 लोगों को बंधक बना लिया था. इनमें 32 बच्चे भी शामिल हैं. बंधक बनाए गए बच्चों में सबसे कम उम्र का बच्चा केफिर बिबास 9 महीने का था, अब उसकी उम्र 10 महीने है. 


केफिर दक्षिणी इजरायल के किबुत्ज में अपने माता-पिता और 4 साल के भाई के साथ रहता था. उसने अभी-अभी घुटने के बल चलना शुरू किया था. उसके दादा को उम्मीद है कि केफिर और माता-पिता को जल्द से जल्द रिहा कर दिया जाएगा. 


'परिवार को वापस लाना जिंदगी का मकसद'


केफिर के दादा एली बिबास ने ताजपिट प्रेस सर्विस को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "अब मेरी जिंदगी का मकसद है अपने परिवार को वापस लाना." एली बताते हैं कि 7 अक्टूबर को उन्हें अपने परिवार से मिलने के लिए किबुत्ज जाना था, लेकिन हवाई हमले के सायरन की वजह से वह अपने परिवार से मिल नहीं पाए. 


एली बताते हैं कि 7 अक्टूबर को उन्हें अपने परिवार से मिलने के लिए किबुत्ज जाना था, लेकिन हवाई हमले के सायरन की वजह से वह अपने परिवार से मिल नहीं पाए. एली ने कहा, "मेरा बेटा यार्डन अपने परिवार के साथ घर के भीतर एक कमरे में छिपा हुआ था. उसने सुबह में अपनी बहन ओफ्री को मैसेज किया था और बता रहा था कि वहां क्या हो रहा है."


एली ने बताया कि उनके बेटे यार्डन ने सुबह 9.20 मिनट पर आई लव यू लिखकर मैसेज भेजा. उसने यही मैसेज अपनी मां और अपनी बहन को भी भेजा था. 


भाई के लिए मानवाधिकार परिषद में बहन ने उठाई आवाज


एली बताते हैं कि उनकी बेटी ओफ्री आए दिन हमास के हमलों से तंग आकर 2 महीने पहले किबुत्ज छोड़कर गोलान हाइट्स इलाके में रहने चली गई थी. यार्डन भी किबुत्ज छोड़ने की योजना बना रहा था. उसने एक हैंडगन खरीदी थी. 


7 अक्टूबर को हमले के बाद यार्डन ने अपनी बहन को बताया कि उसके घर के बाहर काफी शोर हो रहा है. वह चाहता था कि वह अपने हैंडगन का इस्तेमाल करे लेकिन हमास के लड़ाकों के पास ऑटोमेटिक बंदूकें थी, इस वजह वह डर गया. 


एली ने कहा, "मेरी बेटी ओफ्री तेल अवीव में अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस के साथ एक बेनतीजा बैठक के बाद अपने भाई के परिवार और कई दूसरे बंधकों के लिए आवाज उठाने के लिए लंदन और साइप्रस गई थी." एली बिबास ने कहा, "संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में बोलने के लिए ओफ्री जिनेवा गई है."


(इनपुट- एएनआई)


ये भी पढ़ें:


अल शिफा अस्पताल में प्रीमैच्योर बच्चों की खतरे में जिंदगी, संसाधनों के अभाव में जान का खतरा