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Israel-Hamas War: क्या अल-अहली हॉस्पिटल अटैक को कहा जाएगा- 'वॉर क्राइम'? जानें युद्ध के दौरान अस्पतालों-स्कूलों पर हमले के लिए क्या है अंतरराष्ट्रीय कानून

मंगलवार की रात को गाजा सिटी के अल-अहली अस्पताल पर हुए हमले में करीब 500 लोगों की जान गई है. सैकड़ों लोग यहां भर्ती थे और मेडिकल स्टाफ उनका इलाज कर रहा था. यहां कुछ शरणार्थी भी थे.

इजरायल और हमास के बीच चल रही जंग गुरुवार (19 अक्टूबर, 2023) को 13वें दिन में प्रवेश कर चुकी है. इस बीच, मंगलवार की रात को गाजा पट्टी के अल अहली अस्पताल पर हमला हुआ, जिसमें कम से कम 500 बेगुनाहों की जान चली गई. पहले तो इजरायल और हमास हमले के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे थे, लेकिन बाद में इजरायली रक्षा सेना (IDF) ने दावा किया कि हमले के पीछे इस्लामिक जिहाद संगठन है. आईडीएफ ने अपने दावे को पुख्ता करने के लिए एक वीडियो भी जारी किया और कहा कि इस्लामिक जिहाद ने रॉकेट दागा था, जो लॉन्चिंग के वक्त मिसफायर हो गया और अस्पताल पर जा गिरा.   

वीडियो जारी कर इजरायल ने साफ किया कि इसमें उसका हाथ नहीं है. अल अहली अस्पताल में सैकड़ों का इलाज चल रहा था, बड़ी संख्या में मेडिकल स्टाफ काम कर रहा था और कई लोगों ने यहां शरण ली हुई थी. इस घटना की सभी देश निंदा कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने भी हमले की कड़ी निंदा की है और मरने वालों और घायलों के लिए दुख जताया है. उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान अस्पताल और मेडिकल स्टाफ अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत सुरक्षित हैं. आईए जानतें हैं कि युद्धकाल में अस्पतालों और स्कूलों को लेकर संयुक्त राष्ट्र का चार्टर या अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून क्या कहता है-

क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून
अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून युद्ध के दौरान आम नागरिकों या उन लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है, जो युद्ध में शामिल नहीं है. अगर इन्हें युद्ध में निशाना बनाया जाता है तो यह अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन है. युद्ध के दौरान नागरिकों, बस्तियों और मानवीय कार्यकर्ताओं पर हमले, जब हमले की जरूरत न हो तो संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, यौन हिंसा और गैरकानूनी निर्वासन को अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून अपराध मानता है. स्कूलों और अस्पतालों पर किसी भी तरह किया गया हमला संयुक्त राष्ट्र द्वारा चिन्हित गंभीर उल्लंघनों में से एक है. 

यह कानून युद्ध के दौरान आम नागरिकों और खासतौर से बच्चों को सुरक्षा प्रदान करता है. यूएन के मुताबिक, जब दो देशों या दो गुटों के बीच युद्ध होता है और उस दौरान इस तरह के हमले किए जाते हैं, तो उसे अपराध या वॉर क्राइम कहा जाता है, जो जेनेवा कन्वेंशन और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन है. इसके लिए जो नियम हैं उनको 'लॉ ऑफ वॉर' कहा जाता है. अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून युद्धों को प्रतिबंधित करता है, लेकिन देशों को आत्मरक्षा का अधिकार भी देता है.

चौथा जेनेवा कन्वेंशन
अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून युद्ध के दौरान जेनेवा कन्वेंशन द्वारा निर्धारित होता है, जिसे इजरायल भी मानता है. चौथा जेनेवा कन्वेंशन साल 1949 में बनाया गया था, यह उन लोगों को रक्षा प्रदान करने वाला पहला कन्वेंशन था, जो युद्ध में शामिल नहीं हैं. इसके चार कन्वेंशन 1864 से 1949 के बीच हुईं संधियों की श्रंखला से तैयार किए गए थे, जो कहते हैं कि युद्धकाल में नागरिकों, घायलों और कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए. इसका आर्टिकल 14 और आर्टिकल 18 युद्ध के दौरान अस्पतालों की सुरक्षा की बात करते हैं. आर्टिकल 14 कहता है कि ऐसे समय में बीमार, घायल और गर्भवती महिलाओं के लिए अस्पताल और सेफ्टी जोन बनाए जाने चाहिए. वहीं, आर्टिकल 18 अस्पतालों, मरीजों और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है. 

एडिशनल प्रोटोकॉल वन
जेनेवा कन्वेंशन के अंतर्गत एडिशनल प्रोटोकॉल वन ये कहता है कि मेडिकल यूनिट्स को युद्ध के दौरान पूरे टाइम सुरक्षा दी जानी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि युद्ध के दौरान किसी हमले का शिकार न बनें. 

रोम स्टेच्यू 
रोम स्टेच्यू एक संधि है, जिसके अंतर्गत इंटरनेशनल क्रीमिनल कोर्ट (ICC) की स्थापना हुई. युद्ध के दौरान अगर अस्पतालों या सांस्कृतिक इमारतों पर किए गए हमले जेनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन करते हैं तो ऐसे मामलों की जांच और मुकदमा चलाए जाने की जिम्मेदारी इंटरनेशनल क्रीमिनल कोर्ट के पास होती है.

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