Israel Palestine Conflict: हमास इजरायल युद्ध के बीच अमेरिका खुले तौर पर इजरायल का समर्थन कर रहा है. इसके बाद कूटनीतिक जानकारों के बीच एक आम राय ये बन रही है कि इससे अमेरिका अरब देशों के साथ अपने संबंधों को जोखिम में डाल रहा है. अरब देशों ने इस युद्ध की मध्यस्थता से अमेरिका को सांकेतिक तौर पर किनारे कर दिया है.


बीते हफ्ते जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इजरायल का दौरा किया तब उनका जॉर्डन और फिलिस्तीन प्राधिकरण के नेताओं के बैठक तय थी, लेकिन इजरायल को अमेरिकी समर्थन मिलता देख दोनों नेताओं ने बैठक रद्द कर दी. इसके बाद अमेरिका की साख पर सवाल उठने लगे.


इजरायल को बिना किसी शर्त के अमेरिकी समर्थन मिलता देख अरब देशों में खलबली मच गई है. इन देशों का कहना है कि अमेरिका दोहरा मापदंड अपनाता है. अल जजीरा ने मिडिल ईस्ट काउंसिल ऑन ग्लोबल अफेयर्स अनुसंधान संस्थान के एक फेलो उमर रहमान से बात की है, उन्होंने कहा, “पश्चिम से आने वाले दोहरे मानकों और पाखंड का स्तर पहले की तुलना में ज्यादा बुनियादी स्तर पर घर कर रहा है."


अमेरिका की प्रतिष्ठा में आ रही कमी?


मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मिस्र के विदेश मंत्री समेह शौकरी ने भी इजरायल के कारनामों पर पश्चिमी "दोहरे मानकों" की आलोचना करते हुए कहा कि फिलिस्तीनी नागरिकों को जो पीड़ा हो रही है, वह "आत्मरक्षा" नहीं है. इस बीच, सऊदी विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद ने सुरक्षा परिषद से कहा कि दुनिया को "सैन्य अभियानों को खत्म करने के लिए कड़ा रुख अपनाना चाहिए."


कई देशों के हालिया रुख से अंदाजा लगाया जा रहा है कि अमेरिका जैसी महाशक्ति की प्रतिष्ठा में गिरावट आ रही है, जबकि चीन सरीखे कई देश अरब देशों के साथ अच्छे तालमेल स्थापित कर रहे हैं. अमेरिका ने चीन से बीते हफ्ते अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मध्य-पूर्व देशों को स्थिर रहने की गुजारिश की थी.


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