Arab-Israel Deal On Hold: इजरायल पर फलस्तीन के चरमपंथी समूह हमास के हमले के बाद इजरायली सैन्य बलों ने पिछले 7 दिनों से गाजा पट्टी पर भीषण पलटवार जारी रखा है. इसके खिलाफ दुनिया भर में लाम बंद होते मुस्लिम देशों की मुखर आवाज के बीच सऊदी अरब और इजरायल के संबंध सामान्य करने की अमेरिकी योजना पर बर्फ जमती नजर आ रही है. दोनों के बीच रिश्ते सामान्य करने की कोशिशें अब ठंडी बस्ते में पड़ सकती हैं.
इन प्रयासों को झटका इसलिए भी लगा है क्योंकि अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने हमास के हमले की निंदा करने के अमेरिकी अनुरोध को ठुकरा दिया है. इतना ही नहीं सलमान ने अमेरिका और इजरायल के कट्टर विरोधी ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रइसी से भी फोन पर पहली बार बात की.
सूत्रों ने बताया कि इजरायली कार्रवाई से अरब जगत के लोगों में जो गुस्सा पैदा हो रहा है उससे पूरे क्षेत्र में हिंसा फैलने की आशंका है. अरब से इस्लाम की शुरुआत मानी जाती है और दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय के दो सबसे पवित्र इबादतगाह यहां है. इसलिए इजरायल की कार्रवाई से जुड़ी इस्लामी भावनाओं को भी अरब दरकिनार नहीं कर पा रहा.
अरब फलस्तीन के अधिकारों की बात इजरायल से प्रमुखता से उठाएगा
न्यूज़ एजेंसी रायटर्स के सूत्रों ने बताया है कि फिलहाल इजरायल और अरब के बीच रिश्ते सामान्य करने के प्रयास को रोक दिया गया है. इतना ही नहीं जब शांति बहाल होगी तो अरब फलस्तीन के अधिकारों की बात इजरायल से प्रमुखता से करेगा. अरब और इजरायल के बीच संबंध सामान्य डिफेंस डील करवाने के अमेरिका के प्रयास के संबंध में रायटर्स से जुड़े दो सूत्रों ने इसके पुष्टि करते हुए बताया है कि अब इस डील को पूरी तरह से रोक दिया जाएगा.
सऊदी के विश्लेषक अजीज अल्घशियन ने कहा, "अरब और इजरायल के बीच रिश्तों को सामान्य करने के प्रयासों को पहले ही मुश्किल माना जा रहा था. अब इस जंग के बाद इस पर लगभग पूरी तरह से विराम लग सकता है."
अमेरिका का क्या है रुख
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने इस सप्ताह व्हाइट हाउस को ब्रीफिंग के बारे में बताया कि दोनों देशों के बिच सामान्यीकरण का प्रयास "होल्ड पर नहीं" है, लेकिन फिलहाल ध्यान अन्य चुनौतियों से मुकाबले पर है.
क्राउन प्रिंस के साथ रइसी के कॉल के बारे में पूछे जाने पर, अमेरिकी राज्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वाशिंगटन "सऊदी नेताओं के साथ लगातार संपर्क" में है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अपने सऊदी समकक्ष से भी इस बाबत कई बार बातचीत की है.
'फलस्तीनियों के हक में कोई बड़ा फैसला होने तक...'
विशेषज्ञ मानते हैं कि फलस्तीनियों के हक में कोई बड़ा फैसला होने तक सऊदी अरब के लिए अमेरिका की योजना पर बढ़ पाना अब संभव नहीं होगा. इजरायल के सख्त रुख के चलते अब सऊदी अरब के लिए फलस्तीन आंदोलन को तरजीह देने की भी मजबूरी खड़ी हो गई है. स्वतंत्र फलस्तीन राष्ट्र के लिए बीते 70 वर्षों से चल रहा आंदोलन अरब देशों का समर्थन घटने से हाल के वर्षों में कमजोर पड़ गया था.
इजरायल-अरब सम्बंध बिगाड़ने के लिए हमास का हमला
अमेरिकी विशेषज्ञों का दावा है कि सऊदी अरब और इजरायल के संबंध सामान्य होने पर फलस्तीनियों का अपने देश का सपना हमेशा के लिए खत्म हो जाता, इसलिए इस समझौते को रोकने के लिए ही हमास ने 7 अक्टूबर को इजरायल पर बड़े हमले को अंजाम दिया.
आपको बता दें कि फलस्तीन इजरायल को राष्ट्र नहीं मानता है और संयुक्त राष्ट्र की ओर से उसे मिले राष्ट्र की मान्यता को भी नकारता है. उसी की राह पर अरब भी है और इजरायल के अस्तित्व को अरब ने भी स्वीकार नहीं किया है. इस बीच इजरायल और अरब के संबंधों को सामान्य करने के अमेरिकी प्रयासों से सबसे अधिक नुकसान फलस्तीन को ही होने वाला था. बहरहाल अब अमेरिका के प्रयासों पर विराम लग जाने के बाद मिडिल ईस्ट में हालात और बिगाड़ सकते हैं.
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