35 एकड़ जमीन... यहूदी, मुस्लिम और ईसाइयों के लिए क्यों है खास, जानें अल अक्सा कंपाउंड का धार्मिक महत्व और इतिहास
अल अक्सा परिसर को लेकर यहूदियों और अरब लोगों के बीच झगड़ा कई साल पुराना है. 1967 के युद्ध में इजरायल ने पूर्वी यरूशलम पर कब्जा कर लिया और अल अक्सा उसके अधिकार क्षेत्र में आ गया.
इजरायल और हमास इस वक्त एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुए हैं, जिसकी वजह है धार्मिक स्थल अल अक्सा कंपाउंड. 7 अक्टूबर, 2023 को जब मिलिटेंट ग्रुप हमास ने इजरायल पर ताबड़तोड़ गोले बरसाए तो उसके अधिकारियों ने यहूदियों और अरब लोगों के बीच चले आ रहे तनाव को जिम्मेदार ठहराया. इसमें अल अक्सा से जुड़ा पुराना विवाद भी शामिल है. अल अक्सा परिसर में ऐसा क्या है कि फलस्तीन और इजरायल के बीच इतना झगड़ा है, इसे लेकर क्या धार्मिक मान्यताएं, इसका इतिहास क्या है, किसका इस पर नियंत्रण है, किसको जाने की इजाजत है किसको नहीं है, अल अक्सा परिसर से जुड़े और भी कई सवाल हैं, जिनका जवाब यहां मौजूद है.
कहां स्थित है अल अक्सा?
अल अक्सा परिसर पूर्वी यरूशलम में स्थित है. यह इलाका इजरायल के अंतर्गत आता है. इस परिसर की ईसाइयों, यहूदियों और मुसलमानों में काफी मान्यता है. यह परिसर 35 एकड़ में फैला है, जिसमें ईसाइयों, यहूदियों और मुसलमानों से जुड़ी पवित्र इमारत हैं. इस परिसर के अंदर मुख्य रूप से 6 पवित्र स्थल हैं. अल अक्सा मस्जिद, डॉम ऑफ द रॉक और डोम ऑफ द चेन को मुसलमान अपना पवित्र स्थल मानते हैं. वेस्टर्न वॉल, टेंपल माउंट और होली ऑफ द होलीज यहूदियों के पवित्र स्थान हैं.
अल अक्सा कम्पाउंड का इतिहास क्या है
प्रथम विश्व युद्ध से पहले गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक, अल अक्सा परिसर, इजरायल, ये सभी ऑटोमन साम्राज्य के अंतर्गत आते थे. तब तक इजरायल अस्तित्व में नहीं आया था, लेकिन यहां यहूदी रहते थे. फर्स्ट वर्ल्ड वॉर खत्म हुई ऑटोमन साम्राज्य खत्म हुआ और इस पूरे हिस्से पर ब्रिटेन ने कब्जा कर लिया. कब्जा करने के बाद ब्रिटेन ने यहूदियों के लिए अलग निवास का दवाब डाला और 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव पारित कर दिया. मई, 1948 को इजरायल अलग देश बन गया और अरब लोगों को फलस्तीन की 45, जबकि यहूदियों को 55 फीसदी जमीन दी गई. ब्रिटेन भी फलस्तीन से अपना कब्जा छोड़कर चला गया. इजरायल बनने के अगले ही दिन फलस्तीन के साथ मिस्त्र, लेबनान ऑर जॉर्डन जैसे अरब देशों ने इजरायल पर हमला कर दिया. इस हमले में इजरायल ने 72 फीसदी जमीन पर कब्जा कर लिया. यरूशलम के पश्चिमी हिस्से पर इजरायल और पूर्वी हिस्से पर जॉर्डन का कब्जा हो गया. इसके बाद खाड़ी देशों के साथ 1967 के युद्ध में इजरायल ने पूर्वी यरूशलम और वेस्ट बैंक पर भी कब्जा कर लिया. इस तरह, अल अक्सा परिसर उसके अंतर्गत आ गया. इस युद्ध से पहले जॉर्डन का अल अक्सा परिसर पर कब्जा था. 1967 के कब्जे के बाद ऐसी व्यवस्था बनाई गई कि अल अक्सा प्रबंधन का काम जॉर्डन देखेगा और सुरक्षा की जिम्मेदारी इजरायल की होगी. मस्जिद में इबादत सिर्फ मुसलमान कर पाएंगे. हालांकि, यहूदियों को जाने की इजाजत होगी.
परिसर में मुसलमानों के कौन-कौन से पवित्र स्थल हैं
अल अक्सा मस्जिद और डॉम ऑफ द रॉक- कुब्बतुस सखरा, मुसलमानों के मुख्यरूप से यहां स्थित पवित्र स्थल हैं. लोग अक्सर तस्वीरों में नजर आने वाले गोलाकार सुनहरे रंग के गुंबद को अल अक्सा मस्जिद समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. अल अक्सा मस्जिद कंपाउंड के अंदर ही इसी सुनहरे रंग के गुंबद से थोड़ी सी दूरी पर बनी एक बिल्डिंग है. यहीं पर मोहम्मद पैगंबर ने अपनी रात्रि यात्रा के दौरान नमाज पढ़ी थी. सुनहरे रंग के स्ट्रक्चर को डॉम ऑफ द रॉक कहा जाता है. ब्रिटेनिका के मुताबिक, इस गुंबद के अंदर एक काले रंग का पत्थर या फिर एक चट्टान है. ऐसा माना जाता है कि इस चट्टान पर चढ़कर मोहम्मद पैगंबर जन्नत की यात्रा पर गए थे. पैगंबर एक घोड़े पर चढ़कर स्वर्ग गए थे, जिसका नाम बुराक था. इस घोड़े ने इसी चट्टान से स्वर्ग के लिए उड़ान भरी थी. डॉम ऑफ द रॉक के पास ही उसी से मिलता-जुलता एक और स्ट्रक्चर है, जिसे लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं. एक धारणा ये है कि जब डॉम ऑफ द रॉक बन रहा था तो उसकी लेबर के आराम के लिए इसे बनाया गया. इस्लाम को मानने वाले कुछ लोगों का कहना है कि यहीं से सारे मुसलमानों को स्वर्ग का लाइसेंस मिलेगा, जो चेन को क्रॉस कर सकेंगे वो स्वर्ग जाएंगे और बाकी खारिज हो जाएंगे. यरूशलम से करीब तीस किलोमीटर की दूरी पर एक और पवित्र स्थल-हेब्रोन है, जो मुसलमान, ईसाई और यहूदी तीनों के लिए ही पवित्र है. यहां पर हजरत इब्राहिम, उनके बेटे, पोते और तीनों पत्नियों का मकबरा है.
यहूदी के लिए कौन-कौन से पवित्र स्थल
यहूदियों के लिए यहां दो महत्वपूर्ण स्थल हैं, एक टेंपल माउंट और दूसरा है होली ऑफ द होलीज. अल अक्सा कंपाउंड के चारों ओर बने चबूतरे को ही टेंपल माउंट कहा है. टेंपल माउंट में ही एक हिस्सा है, जिसे वेस्ट वॉल या वेलिंग वॉल कहा जाता है. यहूदियों का ऐसा मानना है कि उनके इतिहास के फर्स्ट और सेकेंड दो मंदिर थे. फर्स्ट को बेबीलोन के लोगों और दूसरे को रोमनों ने तोड़ दिया था. दूसरे टेंपल की एक दीवार आज भी मौजूद है, जिसे वेस्टर्न वॉल कहा जाता है. इस दीवार की यहूदी पूजा करते हैं. इसी के पीछे होली ऑफ द होलीज है. यहूदी दीवार के पास खड़े होकर पूजा करते हैं. वे इसके अंदर नहीं जाते क्योंकि वे इस जगह को अति पवित्र मानते हैं और उनको डर रहता है कि कहीं ये अपवित्र न हो जाए. वेस्टर्न वॉल को लेकर मुसलमान ये मानते हैं कि मोहम्मद पैगंबर ने अपना बुराक घोड़ा यहां पर बांधा था इसलिए वह इस दीवार को बुराक वॉल कहते हैं.
तीनों धर्मों के स्थलों के बारे में मान्यता क्या हैं
इस स्थान का ईसाई, मुस्लिम और यहूदियों तीनों का ही बहुत महत्व है. इनके पैगंबरों अब्राहम/इब्राहिम, दाऊद/डेविड और सुलेमान/सोलेमन, इलियास, ईसा मसीह और पैगंबर मोहम्मद ने इस स्थान पर ने अलग-अलग समय पर इबादत की थी. ईसा मसीह और पैगंबर मोहम्मद को छोड़कर अन्य सभी पैगंबर- ईसाई, मुस्लिम और यहूदियों, तीनों के लिए पूजनीय हैं.
मुसलमानों के लिए क्या मान्यता है
बीबीसी न्यूज के मुताबिक, मुसलमानों का मानना है कि पैगंबर मोहम्मद ने बुराक घोड़े पर बैठकर एक रात में मक्का से यरूशलम तक का सफर किया था. यरूशलम में उन्हें रुहानी एहसास हुआ और उन्होंने यहां पर रात्रि यात्रा के दौरान नमाज पढ़ी थी. जहां पर उन्होंने नमाज पढ़ी उसे अल अक्सा मस्जिद कहते हैं. पैगंबर मोहम्मद ने यहीं पर आखिरी सांस ली थी और स्वर्ग तक का सफर तय किया.
यहूदियों की क्या मान्यता
यहूदी कहते हैं कि 1000 ईसा पूर्व राजा सोलेमन ने यहां मंदिर बनवाए थे, जो बाद में तोड़ दिए गए. अब सिर्फ एक दीवार बची है. उनका कहना है कि यहीं से दुनिया बनी और ईश्वर ने यहां पहला इंसान बनाया था. वह यह भी कहते हैं कि जब हजरत इब्राहिम को ईश्वर ने उनकी सबसे प्रिय चीज की बलि देने का आदेश दिया था तो वह अपने बेटे इसहाक की बलि देने के लिए यहीं लेकर आए थे. हालांकि, उनकी भक्ति से खुश होकर ईश्वर ने एक दूत भेजा और इब्राहिम तक यह पैगाम भिजवाया और बेटे कि जगह भेड़ की बलि देने को कहा.
ईसाइयों की क्या है मान्यता
ईसाई धर्म के लोग ऐसा मानते हैं कि अल अक्सा परिसर जिस यरूशलम शहर में स्थित है, वहां ईसा मसीह ने कभी अपना उपदेश दिया था. इसी शहर में उन्हें सूली पर चढ़ाया गया और उनका पुनर्जन्म भी यहीं पर हुआ था. इस वजह से दुनियाभर के ईसाई इस जगह को अति पवित्र मानते हैं.
अल अक्सा को अलग-अलग धर्मों में किन नामों से जाना जाता है
अल अक्सा को मुसलमान और यहूदी अलग-अलग नामों से पुकारते हैं. उनकी अपनी-अपनी मान्यताओं के कारण नाम भी अलग-अलग हैं. मुसलमान अल अक्सा को अल-हरम अल-शरीफ या नोबेल सैंचुरी कहते हैं. वहीं, यहूदी इस टेंपल माउंट कहते हैं. उनका मानना है कि उनको दोनों मंदिर फर्स्ट और सेकेंड टेंपल यहीं पर बनाए गए थे.
यह भी पढ़ें:-
हमास के एक रॉकेट को रोकने में कितना पैसा खर्च करता है इजरायल? कीमत जानकर उड़ जाएंगे होश