Israel Gaza Attack: इजरायल पर हमास के हमलों के लेकर मुस्लिम देश दो गुटों मे बंट गए हैं. एक तरफ यूएई, सऊदी अरब इजरायल को समर्थन कर रहे हैं तो एक ओर ईरान, कतर, लेबनान समेत कई मुस्लिम देशों ने खुलकर हमास के हमलों का समर्थन किया. पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवर उल हक़ काकड़ ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स क जरिए हमास के हमले पर पहली प्रतिक्रिया दी. उन्होंने 'फलस्तीनी सवाल' के समाधान पर जोर दिया.
उन्होंने लिखा, "हम संयम बरतने और आम नागरिकों की सुरक्षा की गुजारिश करते हैं. मध्य पूर्व में स्थायी शांति एक व्यवहार्य, संप्रभु फलस्तीन राज्य के साथ दो राज्य समाधान में निहित है, जिसकी स्थापना 1967 से पहले की सीमाओं पर की गई थी, जिसके केंद्र में अल कुद्स अल-शरीफ थे."
इसके साथ ही उन्होंने लिखा कि वह इजरायल की ओर से अवैध कब्जे को खत्म किए जाने की अपील करते हैं. हालांकि पाकिस्तानी कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने इजरायल की आलोचना नहीं की और ना ही हमास के हमलों का समर्थन किया.
पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर क्या है ट्रेंड?
पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर इजरायल पर हमास के हमलों के बाद फलस्तीन के लिए व्यापक समर्थन देखने को मिला है. रविवार और सोमवार को पाकिस्तान में एक्स पर फलस्तीन ट्रेंड करता दिखा. मसलन पाकिस्तानी आर स्टैंडिंग विद फलस्तीन, प्रेयर्स फॉर फलस्तीन, और फलस्तीन हैज राइट टू डिफेंड जैसे हैशटैग लगातार ट्रेंड कर रहे हैं.
अखबार क्या लिखता है ?
पाकिस्तान का प्रमुख अखबार 'डॉन' ने आठ अक्टूबर के अपने संपादकीय में हमास हमले के बाद फलस्तीनियों के बड़े नुकसान होने की आशंका जाहिर करते हुए एक लेख छापा है. अखबार ने लिखा कि इजरायल की ओर से मुस्लिम देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने की कोशिशों पर सवाल उठते दिख रहे हैं. अखबार लिखता है, "सभी पक्षों को संयम बरतना चाहिए. दोनों पक्षों को आम नागरिकों को नुकसान पहुंचाने से भी बचना चाहिए."
डॉन आगे लिखता है कि इजरायल के अतीत को देखकर लगता है कि फलस्तीन के लोग हमस के हमलों की बड़ी कीमत चुकाएंगे, इसमें गाजा के लोगों को सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
पाकिस्तान का एक और अखबार पाकिस्तान टुडे ने लिखा है कि इजरायल फलस्तीन के बीच समस्या का स्थाई समाधान आसान नहीं है, हालिया हमलों के बीच यह ठंडे बस्ते में चला गया है. अखबार लिखता है, "इजरायल फलस्तीन विवाद का स्थाई समाधान तब तक मुमकिन नहीं है जब फलस्तीनी नागरिकों को उनका वाजिब अधिकार नहीं मिल जाता और उनकी जमीन से अवैध (इजरायली) कब्जा खत्म नहीं हो जाता."
एक और अखबार डेली टाइम्स लिखता है, "लाखों लोगों को बचाने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता है कि जितना हो सके संयम बरतना चाहिए."
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