Israel Palestine Conflict: हमास-इजरायल के संघर्ष के बीच दक्षिणी गाजा में शिविर में रह रहे लोगों की तस्वीरें सामने आई हैं. शिविर फलस्तीनी शरणार्थियों के लिए राहत और मानव विकास कार्यक्रम चलाने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए (United Nations Relief and Works Agency) का है. UNRWA ने बुधवार (18 अक्टूबर) को दक्षिणी गाजा में अपने एक स्कूल के बगल में एक नया शिविर स्थापित किया था.
इस हफ्ते की शुरुआत में उत्तरी गाजा और गाजा सिटी में बमबारी के चलते घरों से भागे फिलिस्तीनियों के लिए खान यूनिस में लगभग 200 तंबुओं का शिविर स्थापित किया गया है. टेंट में रह रहे लोगों की आपबीती बेहद दर्दनाक है. कुछ फलस्तीनियों को नबका की कड़वी यादें सता रही हैं.
क्या है नकबा?
अरबी में नकबा का अर्थ तबाही या विनाश होता है. फलस्तीनी नकबा शब्द का इस्तेमाल 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के परिणामों से जोड़कर करते हैं जब भारी तबाही हुई थी और बड़ी आबादी (करीब सात लाख फलस्तीनियों) को अपने घर छोड़कर विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा था. 14 मई 1948 को इजरायल देश बना था. उसके अगले दिन अरब-इजरायल युद्ध शुरू हुआ था. कड़वी यादों को लिए फलस्तीनी हर वर्ष 15 मई को 'नकबा दिवस' भी मनाते हैं.
UN एजेंसी के टेंट में रहने वालों ने क्या कहा?
अलजजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शिविर में रह रहीं 34 वर्षीय एक मां अस्मा अल-उस्ताज ने कहा, ''हम बेहद थक गए हैं.'' अल-उस्ताज को अपने परिवार के 52 सदस्यों के साथ गाजा के उत्तर से पलायन करना पड़ा है. कुछ लोग नंगे पैर ही भागे थे. उन्होंने कहा, ''पहली दो रातें हम बिना किसी आश्रय और चीज के जमीन पर ही सोए थे, फिर यूएनआरडब्ल्यूए ने हमें तंबू दिए...''
शिविर में रह रही महिला बोली- टेंट नकबा का प्रतीक
अल-उस्ताज ने कहा कि ऐसा लगता है कि जैसे 1948 की तस्वीर याद आ रही है, जब जायनिस्ट अर्धसैनिकों ने 500 से ज्यादा गावों और कस्बों को तबाह कर दिया था, जिसकी वजह से इजरायल की स्थापना का रास्ता साफ हुआ था. उन्होंने कहा, ''टेंट निर्वासन, विनाश, उत्पीड़न, नकबा और नरसंहार का प्रतीक है. अल-उस्ताज ने कहा कि वह नहीं चाहतीं कि कोई संगठन दया करे, बस अपने अधिकार चाहिए और बच्चे दुनिया के अन्य बच्चों की तरह रहें.
उत्तरी जबालिया शरणार्थी शिविर में तीन छोटे बच्चों की मां फिदा यासेर जक्कौट ने कहा कि इजरायली बमबारी में उनके परिवार को छह लोग मारे गए. महिला ने कहा, ''ये नकबा जैसी ही तस्वीरें हैं... तब शरणार्थी तंबू में थे, हम अब तंबू में हैं. यह कोई जिंदगी नहीं है. दुनिया जानती है कि हमारे साथ क्या हो रहा है. क्या उन्हें कोई दया नहीं आती?''
'हमें तो अपनी खबर भी मालूम नहीं'
19 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्रा दोहा हामौदा ने अपनी परेशानियों के बारे में बताते हुए कहा, "लोगों को बमों के बारे में चेतावनी नहीं दी गई और वे घरों के अंदर ही मारे गए." उन्होंने कहा कि नया शिविर भी महफूज नहीं है. हामौदा ने कहा, ''हमें तो अपनी खबर भी मालूम नहीं है कि हमारे साथ क्या हो रहा है, दुनिया इस बारे में हमसे ज्यादा जानती है.''
गौरतलब है कि हमास के खिलाफ जमीनी अभियान को अंजाम देने की पृष्ठभूमि में 13 अक्टूबर को इजरायल ने उत्तरी गाजा के 10 लाख से ज्यादा लोगों को जगह खाली करके दक्षिण में चले जाने की चेतावनी दी थी. इसके बाद भारी संख्या लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में निकले थे. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, गाजा की आबादी के लगभग आधे यानी 10 लाख फलस्तीनी पिछले दो हफ्तों में विस्थापित हुए हैं.
बता दें कि हमास और इजरायल की जंग में दोनों पक्षों से मिलाकर अब तक साढ़े पांच हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं. गाजा में 4,137 फलस्तीनियों की मौत हुई है जबकि इजरायल में 1400 लोगों की जानें गई हैं. वहीं, 13,000 से ज्यादा फलस्तीनी घायल बताए जा रहे हैं.
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