Israel Hamas War: इजरायल-हमास युद्ध पर न विरोध और न ही चुप्पी, क्या है पाकिस्तान की मजबूरी, क्यों मौन है पाक
Israel and Hamas Conflict: इजरायल और हमास के बीच चल रहा युद्ध समय के साथ और आक्रमक होता जा राह है. इसमें हजारों बेगुनाह लोग मारे जा चुके हैं. इस मुद्दे पर कई देश इजरायल की आलोचना कर रहे हैं.
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Israel Hamas war News: इजरायल और हमास के बीच चल रहे युद्ध ने दुनिया को दो धरों में बांट दिया है. एक तरफ अधिकतर मुस्लिम देश हैं जो फिलिस्तीन के समर्थन में खड़े हैं और इजरायल के हमलों का विरोध कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ अमेरिका, ब्रिटेन और उसके सहयोगी देश हैं जो इजरायल के साथ खड़े हैं और उसके हमलों को सही बता रहे हैं.
भारत ने भी अपना स्टैंड क्लियर कर रखा है और वह इजरायल के समर्थन में है. हालांकि उसने पिछले दिनों फिलिस्तीनियों के लिए मदद सामग्री भेजकर आम लोगों का समर्थन किया. पर हर चीज में भारत के साथ होड़ लगाने वाला पाकिस्तान इस मामले में बैकफुट पर है. वह न तो इजरायल के साथ खड़ा हो पा रहा है और न ही फिलिस्तीन के साथ. वह चाहकर भी इस मुद्दे पर कुछ बात नहीं कर पा रहा है.
देश में होते प्रदर्शनों को देखकर दी प्रतिक्रिया
हाल ही में पाकिस्तान ने सधे हुए शब्दों में युद्ध को ख़त्म करने की अपील की है. विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान ने ऐसा इसलिए किया है ताकि वह अपने देश के लोगों को दिखा सके कि फ़िलिस्तीनियों के साथ है. दरअसल, पाकिस्तान में पिछले कुछ दिनों में फिलिस्तीनियों के समर्थन में कई जगह प्रदर्शन हुए हैं. ऐसे में लोगों को यह जताने की कोशिश की गई है कि सरकार भी इस पर चिंतित है.
पहली बार 'कब्जाई जमीन' शब्द का नहीं किया इस्तेमाल
पाकिस्तान ऐतिहासिक तौर पर हमेशा फिलिस्तीन के साथ ही रहा है. उसने अभी तक इजरायल के साथ राजनयिक रिश्ते स्थापित नहीं किए हैं. इसके बाद भी उसकी इस मामले में चुप्पी सारी हकीकत बयां करती है. 7 अक्टूबर को जब इजरायल ने हमास पर हमला शुरू किया तब पाकिस्तान ने बस 'अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत दो देशों की स्थापना वाले समाधान की वकालत की. यही नहीं, अपने बयान में उसने कहीं भी कब्जाई जमीन का इस्तेमाल नहीं किया.
एक तरफ जहां वह इजरायल का विरोध नहीं कर रहा है तो दूसरी तरफ फिलिस्तीनियों का विश्वास बनाए रखने के लिए उन्हें मानवीय सहायता पहुंचाने में कोशिश कर रहा है. 19 अक्टूबर को जब विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जाहरा बलोच से पूछा गया कि क्या पाकिस्तान फिलिस्तीन में सेना भेजागा, तब उन्होंने इससे इंकार कर दिया था.
इजरायल की नजरों में नहीं आना चाहता पाक
बीबीसी की एक रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार रसूल बख़्श रईस कहते हैं कि “इजसरायल-हमास संघर्ष के बीच पाकिस्तान का जवाब संयमित और सोचा-समझा है और आगे भी ऐसा ही रहने वाला है. भले ही कार्यवाहक सरकार हो, सेना हो या फिर मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां, सभी ने फ़िलिस्तीनियों के प्रति चिंता जताई, लेकिन इजरायल के खिलाफ ऐसा कुछ नहीं किया जिससे वह उसकी आंखों में आए."
अमेरिका और यूरोपीय देशों को नहीं करना चाहता नाराज
रसूल बख़्श रईस कहते हैं, "पाकिस्तान का फिलिस्तीनियों के साथ ऐतिहासिक और भावनात्मक नाता है लेकिन उसके रणनीतिक और आर्थिक हित अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य देशों से जुड़े हुए हैं. पाकिस्तान न सिर्फ़ इन देशों को निर्यात करता है बल्कि इनसे उसे आर्थिक सहायता भी मिलती है. ऐसे में पाकिस्तान आर्थिक संकट के बीच इनमें से किसी को नाराज़ करना नहीं चाहेगा."
सऊदी अरब को खुश करने की है मजबूरी
यही नहीं, पाकिस्तान इस मामले में सऊदी अरब के रास्ते भी चल रहा है. एक्सपर्ट कहते हैं कि सऊदी अरब पाकिस्तान का पुराना दोस्त है और उसने कई बार पाक को आर्थिक संकट से उबारा है. उसने कुछ महीने पहले पाक में खरबों डॉलर का निवेश करने की भी बात कही थी. सऊदी अरब मुस्लिम देश होने के बाद भी इस मामले मं इजरायल के खिलाफ आक्रमक नहीं है. ऐसे में पाकिस्तान आक्रमक होकर उसे क्रॉस नहीं करना चाहता.
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