Israel Iran Fight: ईरान के टॉप लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई ने लगभग पांच सालों में पहली बार दिए अपने उपदेश के लिए ऐतिहासिक इमाम खुमैनी मस्जिद को चुना, जिसमें उन्होंने जोर देकर कहा कि इजरायल लंबे समय तक नहीं टिकेगा और तेल अवीव पर ईरान के हमलों का बचाव किया. जिस जगह से खामेनेई ने ये उपदेश दिया वो जगह भी खास है.


ईरान की ऐतिहासिक खुमैनी मस्जिद ने 1979 की इस्लामी क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और यहां से खामेनेई ने हजारों ईरानियों को संबोधित किया. इमाम खुमैनी मस्जिद को पहले शाह मस्जिद के नाम से जाना जाता था. ये ईरान के सबसे ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण वास्तुशिल्प अजूबों में से एक है. 18वीं शताब्दी में फतह-अली शाह कजर के शासनकाल के दौरान इस मस्जिद का निर्माण किया गया. यह मस्जिद कजर युग की बची हुई इमारतों में से एक है.


क्रांति से पहले ईरान पर किसका था शासन


क्रांति से पहले ईरान पर शाह मोहम्मद रजा पहलवी का शासन था और उन्हें पश्चिमी देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन मिला हुआ था. हालांकि, 1963 में 'श्वेत क्रांति' शुरू करने के बाद शाह बेहद अलोकप्रिय हो गए थे. इस क्रांति में महिलाओं के लिए मतदान के अधिकार सहित कई सुधार शामिल थे.


ईरान में कई लोगों ने इन सुधारों की सराहना की जबकि इस्लामी नेताओं ने इसे ईरान के पश्चिमीकरण के रूप में देखा. इसके बाद शिया धर्मगुरु रूहोल्लाह खुमैनी और उनके अनुयायी अयातुल्ला अली खामेनेई के नेतृत्व में इस वर्ग ने शाह को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया.


1964 में खोमैनी को निर्वासित कर दिया गया और सीमा पार इराक में बसाया गया. अली खामेनेई शाह के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में भी शामिल थे और कई बार जेल भी गए.


और फिर खुमैनी मस्जिद बन गई महत्वपूर्ण स्थल


शाह के शासन में सामाजिक अशांति और आर्थिक असंतोष बढ़ने के बाद खुमैनी मस्जिद से विरोध प्रदर्शन और हड़ताल शुरू की गई. तेहरान के केंद्रीय चौक में इसका रणनीतिक स्थान इस्लामी विद्वानों, छात्रों और कार्यकर्ताओं के लिए एक स्वाभाविक सभा स्थल बन गया. मस्जिद में दिए जाने वाले उपदेशों में धार्मिक शिक्षाओं के साथ शाह के शासन की राजनीतिक आलोचना का मिश्रण था, जो समाज के व्यापक वर्ग में गूंजता था.


इसके अलावा, निर्वासित खोमैनी के संदेश भी मस्जिद से साझा किए गए थे. इससे सरकारी दमन के बावजूद उनके समर्थकों के बीच गति बनाए रखने में मदद मिली. इसने अलग-अलग विपक्षी समूहों के लिए समन्वय केंद्र के रूप में भी काम किया, जिससे इस्लामी राष्ट्रवाद के बैनर तले गुटों को एकजुट करने में मदद मिली. 1979 में शाह के सत्ता से बेदखल होने के बाद मस्जिद का नाम बदलकर इमाम खुमैनी मस्जिद कर दिया गया.


इमाम खुमैनी मस्जिद ने समकालीन ईरान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखा और क्रांति के शहीदों की याद में एक स्थल बन गया. आज, यह धार्मिक और राजनीतिक समारोहों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल बना हुआ है.


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