रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से जहां तीसरे विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे हैं तो दूसरी इजरायल और ईरान के बीच भी अब तनाव चरम पर पहुंचने को तैयार है. दरअसल इजरायल के एक शीर्षस्थ सैन्य अधिकारी के बयान के बाद से इस बात की आशंका जताई जा रही है कि जल्द ही ईरान पर हमला हो सकता है.
बीते दिनों ही सीरिया में हुए एक हवाई हमले में ईरान के दो सैन्य सलाहकार मारे गए हैं. इसके बाद से सीरिया दो सबसे बड़े हवाई अड्डे बंद कर दिए गए हैं. माना जा रहा है कि इसके पीछे इजरायल का हाथ है और माना जा रहा है कि ऐसे हमले और भी हो सकते हैं. वहीं ईरान भी हमले का बदला लेने की तैयारी कर रहा है.
टाइम्स ऑफ इजराइल की एक रिपोर्ट में पश्चिमी खुफिया अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि ईरान की आईआरजीसी की एयरोस्पेस फोर्स फारस की खाड़ी और अरब सागर से गुजरने वाले जहाजों पर ड्रोन हमले शुरू करने की तैयारी कर रहा ही. आईआरजीसी से जुड़े एक ईरानी राजनीतिक रणनीतिकार ने टाइम्स ऑफ इजराइल अखबार को बताया कि इससे पहले भी सीरिया में हुए हमलों का बदला लेने योजना बनाई गई थी.
पुरानी है ईरान और इजराइल की दुश्मनी
ईरान और इजराइल के बीच दुश्मनी कोई नई नहीं है. साल 1979 में ईरान की क्रांति ने कट्टरपंथियों को सत्ता में आने का मौका दिया और तभी से ईरानी नेता इजराइल को मिटाने की बात करते रहे हैं.वहीं, इजराइल भी ईरान को खतरा मानता है. इजराइल ने हमेशा ईरान के परमाणु हथियारों से नाराजगी जताई है.
इसी नाराजगी में इजरायल नेसीरिया में कथित तौर पर कई हवाई हमले शुरू किए जिसमें कई ईरानी सैन्य सलाहकारों की मौत हो चुकी है. सीरिया में हुए इसी हमले के बाद ईरान ने बदला लेने की ठान ली है.
इजरायल -ईरान युद्ध में सीरिया से क्या कनेक्शन है ?
सीरिया में जंग के हालात साल 2011 से ही बने हुए हैं. सीरिया में बशर अल असद की सरकार है. वहां के लोग सरकार से इस्तीफे की मांग करते हैं. विद्रोही लड़ाकों के बीच चल रहे संघर्ष से इजराइल ने दूरी बनाए रखी है. वहीं ईरान सीरिया की बशर अल असद की हुकूमत का समर्थन करता है. वो विद्रोहियों से सरकार की लड़ाई में बशर अल-असद का मदद कर रहा है.
इजराइल ने कई बार ये दोहराया है कि वो सीरिया में ईरान को सैनिक अड्डे नहीं बनाने देगा. जिनका इस्तेमाल उसके खिलाफ किया जा सकता है. इसलिए सीरिया में जैसे-जैसे ईरान की मौजूदगी बढ़ रही है, वैसे-वैसे ईरानी ठिकानों पर इजराइल के हमले भी तेज होते जा रहे हैं.
एक्शन के लिए तैयार इजराइल
इजराइल के आर्मी रेडियो को दिए इंटरव्यू में एयरफोर्स चीफ ने कहा कि हम ईरान के खिलाफ कार्रवाई के लिए बिल्कुल तैयार हैं. हमारे पास ताकत है और हम हजारों किलोमीटर दूर किसी भी ऑपरेशन को कामयाबी के साथ अंजाम दे सकते हैं.
एक और सवाल के जवाब में इजराइली एयरफोर्स चीफ ने कहा कि हमें बहुत अच्छी तरह पता है कि अकेले हमला कैसे किया जाता है और इसमें कामयाबी कैसे हासिल की जाती है. अच्छा होगा कि अमेरिका इस मिशन में हमारा साथ दे. अगर वो इसमें शामिल नहीं होता है तो भी कोई दिक्कत नहीं है. इजराइल खुद के दम पर ऐसे मिशन कामयाबी के साथ पूरा करने की ताकत रखता है.
इजराइल-ईरान की जंग से भारत पर क्या असर पड़ेगा
29 जनवरी 2021 को दिल्ली के हाई सेक्यूरिटी इलाके वाले राजनयिक क्षेत्र में इजरायली दूतावास के बाहर एक छोटा आईईडी उपकरण फट गया. बम के फटने से 2012 के कार बम विस्फोट की यादें ताजा हो गयी. इस हादसे में भारत में इजरायली रक्षादूत की पत्नी ताल येहोशुआ-कोरेन घायल हो गई थीं. 26 मार्च 2012 को अरब सागर में भारत जा रहे एक इजरायली जहाज को निशाना बनाकर मिसाइल दागी गई थी.
इस हमले के बाद भारतीय पुलिस की जांच में ये पाया गया कि ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स ने हमले की योजना बनाई थी. हालांकि अभी तक सार्वजनिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं की गई है.
लेकिन ये खतरनाक घटनाक्रम इस बात की तरफ जरूर इशारा करते हैं भारत की धरती पर इजरायलियों को ईरान से बड़े सुरक्षा खतरों का सामना करना पड़ेगा. अगर इजराइल ईरान पर हमला करता है तो ये खतरा और भी बड़ा हो सकता है.
ईरानी खुफिया और हिट स्क्वाड ने दुनिया भर में इजरायल, इजरायली सुरक्षा केन्द्रों और यहूदी समुदायों को निशाना बनाया है, लेकिन भारत ने अपनी धरती पर कभी भी इस तरह के हमले की उम्मीद कभी नहीं की थी.
दूसरी इजरायल इस समय भारत का बड़ा रणनीतिक और सामरिक साझेदार है. इजरायल में बने रक्षा उपकरण भारतीय सेना इस्तेमाल करती है. अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर भारत-इजरायल एक दूसरे का समर्थन करते रहे हैं. इजरायल के साथ संबंधों को मोदी सरकार ने नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है.
क्या इजराइल के लिए ईरान को नाराज कर सकता है भारत
भारत ने हमेशा से पश्चिम और इजरायल के साथ अपने बढ़ते रणनीतिक संबंधों और ईरान के साथ अपने ऐतिहासिक-सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को संतुलित करने की कोशिश की है. वहीं भारत ने दुनिया भर में शांति बनाए रखने के मकसद से ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ तीन बार मतदान भी किया है. अमेरिका के प्रतिबंधों के बावजूद भारत ईरान से तेल खरीदता रहा है.
भारत को ये पता है कि पश्चिमी देश आतंकवाद पर दोहरे मानदंड अपनाते हैं. इसका उदाहरण पश्चिमी देशों का पाकिस्तान को लेकर सहानुभूति का रवैया और ईरान के प्रति कठोर रवैया भी है.
भारत को ईरान से किस तरह की उम्मीदें हैं
एक इस्लामिक देश होने के नाते भारत ईरान से कश्मीर मुद्दे पर समर्थन की भी उम्मीद रखता है. भारत को ये उम्मीद रही है कि ये देश अपनी प्रतिद्वंद्विता को भारतीय धरती से दूर रखेंगे, लेकिन 2012 के हमले ने इस उम्मीद को खत्म कर दिया.
नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद क्या बदलाव आया
नरेंद्र मोदी के 2014 के चुनाव जीतने के बाद से भारत की पश्चिम एशियाई नीति में आमूल-चूल परिवर्तन आया है. भारत ने अपनी हिचकिचाहट को छोड़ दिया और खुले तौर पर इजरायल को गले लगा लिया. पिछले सात सालों में इजरायल के साथ भारत के रणनीतिक, रक्षा और सांस्कृतिक संबंध तेजी से बढ़े हैं. ईरान को कहीं न कहीं ये बात खटकती रही है.
इसके जवाब में ईरान भारत के प्रति दुश्मनी जता रहा है. ईरान ने कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने और दिल्ली दंगों के बाद मुसलमानों के साथ किए गए बर्ताव के लिए भारत की खुलकर निंदा की थी. वहीं ईरानी शासन ने कश्मीर में पिछले दो दशकों में शिया समुदाय के बीच बड़े पैमाने पर पैठ बनाई है. इसी का नतीजा है कि वहां पर कट्टरवाद और अलगाववाद भी बढ़ा.
ईरान के तीखे रवैये के बावजूद भारत अभी तक ईरान के साथ अपने संबंधों को बिगाड़ना नहीं चाहता है. देश का 10 प्रतिशत तेल आयात ईरान से ही आता है. दूसरी तरफ भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भी है.
लेकिन ईरान भारत में इजरायल के हितों के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है. ईरान की खूफिया ताकतें बहुत मजबूत हैं, जिसका फायदा वो भारत में भी उठा सकता है. शायद यही वजह रही है कि ईरान वाणिज्य दूतावासों से लेकर सांस्कृतिक केंद्रों, हवाई जहाजों और समुद्री मार्गों तक इजरायल पर हमला कर पा रहा है.
इजरायल के साथ भारत के मजबूत संबंधों के साथ ईरान की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है. ऐसे में हमलों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. 2012 के हमले के बाद पूर्व भारतीय विदेश मंत्री कंवल सिब्बल ने घोषणा की थी कि भारत ईरान को संकेत दे रहा था कि इजरायल के साथ अपनी समस्याओं के लिए भारत को युद्ध के मैदान के रूप में इस्तेमाल न करें. लेकिन ईरान के आतंकवाद के खिलाफ भारत ने ठोस प्रतिक्रिया जताई.