Jews On The Road: इजरायल के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिसके बाद कट्टर यहूदी भड़क गए और सड़कों पर उतरकर फैसले का विरोध कर रहे. इजरायली सुप्रीम कोर्ट ने 25 जून को सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि सेना को अति-रूढ़िवादी लोगों को सैन्य सेवाओं के लिए भर्ती करना शुरू करना चाहिए. इस फैसले का इजरायल में जमकर विरोध हो रहा है.


माना जा रहा है कि यह निर्णय प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के सत्तारूढ़ गठबंधन के पतन का कारण बन सकता है, क्योंकि इजरायल और गाजा में युद्ध जारी है. अदालत ने फैसला सुनाया कि यहूदी सेमिनरी के छात्रों और अन्य भर्ती किए गए लोगों के बीच अंतर करने वाले कानून के अभाव में, इजरायल की अनिवार्य सैन्य सेवा प्रणाली किसी भी अन्य नागरिकों की तरह अति-रूढ़िवादी लोगों पर भी लागू होती है. दरअसल, इजरायल में कट्टर यहूदियों के लिए सेना में सर्विस देना अनिवार्य नहीं है.


सुप्रीम कोर्ट के इस फैसला का किया विरोध


येशिवा में पढ़ने वाले युवकों ने इस फैसले का विरोध किया है और वो सड़कों पर उतर आए. इन लोगों का कहना है कि कोर्ट के इस फैसले से उनके धार्मिक जीवन पर असर पड़ेगा और इसका पालन नहीं कर पाएंगे. इन लोगों का ये भी कहना है कि आध्यात्मिक जीवन और पूजा-पाठ इजरायल की सुरक्षा के लिए जरूरी है. बीबीसी की रिपोर्ट की अगर मानें तो कट्टर यहूदी मानते हैं कि अगर उनके धर्म को बचाए रखना है तो इसके लिए पूजा पाठ जरूरी है और धर्म का पालन करें न कि अन्य सेवाओं में अपना समय गंवाएं.


इजरायल में कट्टर यहूदियों का प्रभाव


इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए ये फैसला मुसीबत खड़ी कर सकता है क्योंकि उनकी सरकार गठबंधन की है और कट्टर यहूदियों वाली पार्टी उनका समर्थन कर रही है. ये पार्टी मौजूदा व्यवस्था में किसी भी बदलाव का विरोध करते हैं. वहीं, इजरायल में कट्टर यहूदियों की संख्या 10 लाख के आसपास है और ये संख्या देश की पूरी जनसंख्या का 12 प्रतिशत है.


कौन होते हैं येशिवा छात्र


येशिवा छात्र टोरा की स्टडी करने वाले लोग होते हैं. ये लोग यहूदी धर्म का कट्टरता से पालन करते हैं. इन लोगों का सेना में सेवा देना अनिवार्य नहीं है. इतना ही नहीं ये ग्रुप हमेशा से बदलाव के खिलाफ रहा है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इन लोगों का प्रदर्शन उग्र हो गया और कई जगहों पर तोड़फोड़ और हिंसा भी की गई.


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