इजरायल पुलिस ने बुधवार की सुबह यरूशलम की अल-अक्सा मस्जिद पर छापा मारा. इसके बाद अल-अक़्सा मस्जिद में पटाखों, गोली बारी और चीखपुकार की गूंज सुनाई दी. इजरायल पुलिस के छापे के दौरान फिलस्तीनियों और इजराइली पुलिस के बीच संघर्ष की खबरें भी आईं. इसके बाद पूरे अरब और मुस्लिम देशों से उग्र प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गईं. सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि इस तरह की घटनाएं शांति के प्रयासों को कमजोर करती हैं. मंत्रालय ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों और मानदंडों का उल्लंघन है.
अल-अक़्सा मस्जिद परिसर में फिलस्तीनियों और इजराइली सुरक्षाबलों के बीच हुई ये झड़प इजराइल और हमास के बीच हुए युद्ध के खत्म हो जाने की घोषणा के बाद हुई. दोनों के बीच 11 दिनों तक युद्ध हुआ था. झड़प के दौरान फिलिस्तीनी नमाजियों ने खुद को अल-अक्सा मस्जिद के अंदर बंद कर लिया था. इजरायली पुलिस ने इनको हटाने के लिए बल प्रयोग किया.
फिलस्तीनियों और इजराइल के बीच पहले भी कई संघर्षों की शुरुआत अल-अक़्सा मस्जिद में हुए विवाद से हुई है. जनवरी 2023 में भी ये मस्जिद विवादों में आ चुकी है. बेंजामिन नेतन्याहू के इजरायल के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के महज एक हफ्ते के भीतर ही फिर अल-अक्सा सुर्खियों में आया था.
उस दौरान इजरायल के सुरक्षा मंत्री इतमार बेन गिवीर ने यरूशलम की अल-अक्सा मस्जिद परिसर का दौरा किया था. इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया था. फिलिस्तीन ने इस यात्रा को भड़काऊ बताया था. जबकि सऊदी अरब, जॉर्डन, फिलिस्तीन, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), और पाकिस्तान समेत मुस्लिम देशों ने भी इसका विरोध जताया था.
अल-अक्सा मस्जिद इतनी अहम क्यों?
ये मस्जिद पूर्वी येरुशलम में स्थित है. यहूदी समुदाय के लोग इस मस्जिद को सबसे पवित्र जगह मानते हैं, वहीं इस्लाम धर्म के मानने वाले इसे तीसरा सबसे पवित्र स्थल मानते हैं. अल-अक्सा मस्जिद यहूदियों के लिए 'टेंपल माउंट' और मुसलमानों के लिए 'अल-हराम अल शरीफ' के नाम से मशहूर है. हिब्रू भाषा में इस शहर को येरूशलायीम और अरबी में अल-कुद्स के नाम से जाना जाना जाता है.
तीन धर्मों के लिए पवित्र है येरूशलम
इस्लाम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्म के मानने वाले इस मस्जिद को पवित्र जगह मानते हैं. इस्लाम में अल-अक्शा मस्जिद तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. यहूदी भी अल-अक्सा को टैंपल ऑफ माउंट के नाम से मानते हैं. ये यहूदियों के लिए सबसे पवित्र स्थल है.
टैंपल माउंट का महत्व
टैंपल ऑफ माउंट 35 एकड़ में फैला है. यहीं पर वेस्टन दीवार, द डोम ऑफ द रॉक और अल-अक्सा मस्जिद जैसे धार्मिक स्थल हैं. इन्हीं स्थलों पर हर साल बड़ी संख्या में मुस्लिम, यूहदी और ईसाई धर्म के लोग आते हैं.
मस्जिद के डोम ऑफ द रॉक को यहूदी धर्म में सबसे पवित्र स्थल का दर्जा दिया गया है. पैगंबर मोहम्मद से जुड़े होने की वजह से 'डोम ऑफ द रॉक' को मुसलमान भी पाक जगह मानते हैं.
बता दें कि इस धार्मिक स्थल में गैर-मुस्लिमों की प्रार्थना पर पाबंदी है. कुछ खास मौकों पर यहूदी बाहर से प्रार्थना कर सकते हैं उन्हें मस्जिद के अंदर आने की इजाजत नहीं है. इस परिसर का प्रबंधन जॉर्डन के वक्फ की ओर से किया जाता है, जबकि सुरक्षा इंतजामों पर इजराइल का नियंत्रण है. रमजान के महीने में जुमे के दिन इस मस्जिद में बड़ी तादाद में मुसलमान इकट्ठा होते हैं.
मुस्लिम धर्म की आस्था
इतिहास की मानें मुस्लिमों के पैग़म्बर मोहम्मद ने यहीं पर अंतिम सांस ली थी. पैग़म्बर ने यहीं से अपनी स्वर्ग की यात्रा की थी. इसके बाद इस स्थान को मुस्लिमानों का पवित्र स्थल होने का दर्जा मिला. यहीं पर मुस्लिमें की पवित्र “अल-अक्सा” मस्जिद है. इस मस्जिद को मुस्लिम धर्म के मक्का-मदीना के बाद, तीसरा सबसे पवित्र स्थल कहा जाता है. हर साल यहां पर कई लाखों की संख्या में मुस्लिम आते हैं. अल-अक्सा मस्जिद से कुछ दूर ही डोम ऑफ द रॉक्स का पवित्र स्थल है यहीं पवित्र पत्थर भी है. मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद ने यहीं से जन्नत की यात्रा की थी.
अल -अक्सा मस्जिद को किबली मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है, जिसे 8 वीं शताब्दी ईस्वी में बनाया गया था. कुरान में इस बात का जिक्र है कि पैगंबर मुहम्मद मक्का से अल-मस्जिद अल-सरम में येरुशलम की इसी जगह पर गए थे.
मुसलमानों के लिए येरुशलेम पहला किबला था. जैसे की मौजूदा समय में काबा है. कुरान 2: 142-144 के मुताबिक इस्लामी मिशन यानी हिजराह के 16 महीने बाद मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को क़िबला को येरुशलेम से मक्का में बदलने का निर्देश दिया गया था . कुरान के मुताबिक पैगंबर मुहम्मद ने कहा था कि केवल तीन मस्जिदें हैं जहां इबादत करना जरूरी है . ये मस्जिदें (मक्का, सऊदी अरब), (मदीना, सऊदी अरब), और अल-अक्सा (यरूशलेम) की मस्जिद हैं.
पैगंबर ने पिछले नबियों से ईसा मसीह (जीसस) , अब्राहम, मूसा से यहीं पर मुलाकात की थी. इसके बाद वो मक्का मदीना लौट आए.
ईसाई धर्म की आस्था
ईसाइयों के लिए भी ये जगह बहुत पवित्र है. ईसाइयों का मानना है कि यहीं से उनका धर्म पूरी दुनिया में फैला. इस जगह पर उनके भगवान यीशू ने चमत्कार दिखाए थे और लोगों को उपदेश दिए थे. इसी जगह पर यीशू को सूली पर चढ़ाया गया था, जिसके बाद वो फिर से जिंदा हो गए थे और कुछ दिनों तक उन्होंने लोगों को ज्ञान दिया था, जिसके बाद वो स्वर्ग चले गए थे.
ईसाई इलाके में 'द चर्च आफ द होली सेपल्कर' है. ये दुनियाभर के ईसाइयों की आस्था का केंद्र है. ये जिस स्थान पर स्थित है वो ईसा मसीह की कहानी का केंद्रबिंदु है. इसे ही 'हिल ऑफ द केलवेरी' के नाम से जाना जाता है. ईसा मसीह का मकबरा सेपल्कर के भीतर ही है और माना जाता है कि यहीं से वो सूली पर चढ़ाए जाने के बाद अवतरित भी हुए थे.
यहूदी धर्म की आस्था
दूसरी तरफ यहूदी अल-अक्सा में मौजूद टेम्पल माउंट को सबसे पवित्र स्थल मानते हैं. यहूदियों का मानना है कि राजा सुलैमान ने 3,000 साल पहले वहां पहला मंदिर बनाया था. राजा सुलैमान का जिक्र बाइबिल में भी है. 70 ईस्वी में रोमनों के बीच जंग हुई .जंग में दोनों ने एक-दूसरे के मंदिरों को तोड़ दिया.
येरुशलेम पर कौन से देश का हक है ?
1948 में इजरायल देश बना. इसके बाद येरुशलेम को दो हिस्सों में बांट दिया गया. एक हिस्से पर इजराइल का कब्जा हुआ करता था, जबकि दूसरे हिस्से को जॉर्डन ने अपने कब्जे में ले लिया. 1967 में इजरायल ने येरुशलेम पर कब्जा कर लिया, और अल-अक्सा मस्जिद के साथ पूर्वी येरुशलेम के बाकी हिस्सों और वेस्ट बैंक के आसपास के हिस्सों पर भी कब्जा कर लिया. वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलेम में बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी निवासी हैं.
यही वजह है कि फिलिस्तीनी इसे अपना फिलिस्तीन देश मानते हैं. इतना ही नहीं दुनिया के कुल 135 देश भी फिलिस्तीन को एक देश मानते हैं. वहीं गाजा, हमास एक इस्लामवादी कट्टरपंथी पार्टी द्वारा नियंत्रित है.
वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में हमास एक इस्लामी आंदोलन के बाद पनपा है. हमास ऐतिहासिक फिलिस्तीन में एक स्वतंत्र इस्लामी राज्य की स्थापना की मांग करता है. 1987 में अस्तित्व में आए हमास ने इसरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के लिए फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) के धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण का विरोध किया और फिलिस्तीन के किसी भी हिस्से को सौंपने की कोशिशों को खरिज करता आया है.
इसरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष में अल-अक्सा कितना अहम?
अल-अक्सा परिसर लंबे समय से येरुशलेम में संप्रभुता और धार्मिक मामलों का एक संवेदनशील हिस्सा रहा है. दुनिया के नक्शे में येरुशलेम इजराइल और फिलिस्तीन देश के पास स्थित है. इजराइल और फिलिस्तीन देश येरूशलेम को अपने-अपने देश की राजधानी बनाना चाहते हैं. दुनिया के दूसरे देश इन दोनों ही देशों के इस दावे को नहीं मानते हैं.
क्षेत्र को नियंत्रित करने वाली लंबे समय से चली आ रही "यथास्थिति" व्यवस्था को लेकर विवाद है. इजरायल का ये कहना है कि परिसर में गैर-मुस्लिम जा सकते हैं, लेकिन केवल मुसलमानों को ही मस्जिद परिसर में पूजा करने की अनुमति है.
कुछ मामलों में यहूदी धर्म के मानने वाले लोग नियमों की अवहेलना करते हुए परिसर के बाहर या भीतर पूजा करते हैं जिसे लेकर तनाव पैदा होता है. वहीं मस्जिद परिसर में मुस्लिम उपासक इसरायल के प्रतिबंधों का विरोध करते हैं जिससे हिंसा पैदा होती है. 2021 में हुई झड़प इसी का नतीजा थी जो पूरे 10 दिन तक चली थी.
येरुशलेम में सिकंदर भी कर चुका है राज
येरुशलेम पर कई शासकों ने राज किया है. इन्हीं शासकों में से एक शासक सिकंदर भी था. सिकंदर ने इस शहर को युद्ध में जीता था. येरुशलेम पर ऑटोमन साम्राज्य का भी शासन रहा है. इस साम्राज्य की स्थापना तुर्कों ने की थी.