पाकिस्तान में हर पांच में से एक जोड़ा प्राकृतिक तरीके से बच्चा पैदा करने में सक्षम नहीं है. बच्चे पैदा करने की क्षमता से महरूम होने को बांझपन कहा जाता है. बांझपन से पीड़ित लोगों में तकनीक ने उदासी को भुलाने का अवसर दे दिया है. बांझ लोगों के बीच इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) इलाज काफी लोकप्रिय हो रहा है लेकिन पाकिस्तान को पहली बार आईवीएफ से परिचय कराने वाले डॉक्टर राशिद लतीफ का सफर आसान नहीं था.


उनकी सख्त आलोचना हुई और काफी बुरा-भला कहा गया. यहां तक कि दस मौलवियों ने मोर्चा संभालते हुए 'हराम' और 'अमेरिकी साजिश' तक बता डाला. डॉक्टर राशिद लतीफ ने बांझपन को दूर करने के लिए 1984 में पाकिस्तान के पहले आईवीएफ सेंटर 'लाइफ' की स्थापना लाहौर में की. आज पाकिस्तान में हर साल हजारों बच्चे आईवीएफ़ तकनीक की मदद से पैदा हो रहे हैं, लेकिन जब उन्होंने पाकिस्तान में तकनीक को लाने की सोचा, उस समय पूरी दुनिया में संसाधन और जागरुकता का अभाव था.


पाकिस्तान में टेस्ट ट्यूब बेबी की हकीकत


पांच साल तक लगातार कड़ी मेहनत के बाद 1989 में पाकिस्तान के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का सपना हकीकत में बदला. जन्म के लिए 6 जुलाई 1989 का दिन चुना गया. उस दिन खास इंतजाम किए गए थे और उसी दिन पांच डिलीवरी कराई गई. डॉक्टर बताते हैं, "अगले दिन पाकिस्तान के पहले टेस्ट ट्यूब की खबर मीडिया की सुर्खियां बनीं. बच्चे के पिता मेरे पास आए और कहा कि खबर पढ़ने के बाद उनके पिता ने पूछा कि ये हराम काम तुमने तो नहीं किया?


IVF के बारे में क्या कहता है इस्लाम?


ब्रिटेन 1978 में टेस्ट ट्यूब बेबी से जन्म करानेवाला दुनिया का पहला देश बना. उसके बाद इस्लाम के नजरिये से बहस छिड़ गई कि क्या ये हराम है या हलाल. 1980 में मिस्र की अल अजहर यूनिवर्सिटी ने एक फतवा जारी किया. फतवे के मुताबिक, आईवीएफ में इस्तेमाल किए गए एग्स पत्नी और स्पर्म पति के होने पर तकनीक से पैदा होनेवाला बच्चा जायज और शरीअत के मुताबिक होगा. मौलानाओं के बीच व्यक्तिगत आपत्तियां और राय अलग-अलग बन रहीं. मगर इसके बावजूद अल अजहर के फतवे पर 2015 तक आईवीएफ के संबंध में कोई बड़ा विवाद नहीं खड़ा हुआ.  2015 में मामले ने उस वक्त नया रुख अपनाया जब आईवीएफ़ से पैदा हुए बच्चे की कस्टडी मामले पर एक जोड़े ने फेडरल शरिया कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.


2017 में केस का फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि आईवीएफ पाकिस्तानी कानून और शरिया के अनुसार तभी सही माना जायेगा जब इसमें इस्तेमाल किये गए एग और गर्भाशय दोनों पत्नी के हों और स्पर्म पति का हो. शरिया कोर्ट ने डोनेशन के एग्स और स्पर्म से पैदा हुए बच्चे को नाजायज स्वीकार किया. साथ ही सरोगेसी को भी गैरकानूनी घोषित कर दिया था. हालांकि, ईरान और लेबनान में, डोनेट किए गए एग से पैदा होने वाले बच्चे को वैध माना गया है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज के मुताबिक, पाकिस्तान के 22 प्रतिशत जोड़ो में बांझपन की समस्या देखी गई है. जिसका मतलब है कि पांच जोड़ों में से एक जोड़ा प्राकृतिक तरीके से बच्चा नहीं कर सकता, और इसके लिए मदद की दरकार है.


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