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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

दुनिया में युद्ध के घुमड़ रहे बादलों के बीच जापान ने ऐसा क्या किया, अकड़ में रहने वाले चीन को बातचीत करने आना पड़ा?

दोनों देशों के नेताओं ने सहमति जताई है कि एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं बनना चाहिए. सुन ने जापान के सुरक्षा दस्तावेजों का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि ताइवान मुद्दे पर जापान के गलत कदमों से चीन परेशान है.

रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद से पूरी दुनिया में आशंका जताई जा रही है कि जिस तरह सभी देश मंदी का शिकार हो रहे हैं उससे एक बड़ी जंग शुरू हो सकती है. इस बीच एशिया में अपनी धाक की जमाने की कोशिश में लगे चीन को जापान से बड़ा खतरा महसूस होने लगा है. 

यहां तक कि चीन को जापान से बात करनी पड़ गई. दरअसल बीते साल दिसंबर में जापान ने ऐलान किया है कि वह अपने रक्षा बजट बढ़ाने जा रहा है. अगले पांच सालों में ह इसे दोगुना कर देगा ताकि चीन की ओर से किसी भी सैन्य कार्रवाई का सामना किया जा सके. जापान की नई रक्षा नीति के मुताबिक वह लंबी दूरी की मिसाइल खरीदेगा जो की चीन के अंदर कई मुख्य जगहों पर निशाना साध सकेंगी. इसके साथ ही दूसरे अन्य हथियार खरीदेगी ताकि अमेरिकी एयरफोर्स के साथ मिलकर किसी भी स्थिति का सामना किया जा सके.

इसका नतीजा ये हुआ कि चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेडांग जापान की राजधानी टोक्यो पहुंच गए. 22 फरवरी को जापान के विदेश मंत्री यामादा शिगेओ के साथ हुई बैठक की शुरुआत में ही कहा कि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति में बड़ा परिवर्तन हुआ है. देखा जा रहा है कि एकीकृत,संरक्षणवाद और शीत युद्ध की मानसिक दोबारा लौट रही है.

बता दें कि पिछले चार साल में यह ऐसी पहली मुलाकात है जिसका मकसद तनावपूर्ण होते रिश्‍तों को सामान्य करना है. बता दें कि जब दिसंबर में जापान राष्‍ट्रीय सुरक्षा नीति का ऐलान किया था तो चीन ने उसे बड़ी रणनीतिक चुनौती करार दिया था.

मुलाकात के बाद जापान के विदेश मंत्री यामादा शिगेओ ने साफ कहा कि दोनों देशों के संबध चुनौतियों और चिंताओं से घिरे हुए हैं. यामादा ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संवाद जारी रखने पर भी जोर दिया. यामादा ने ये कहा कि दोनों देशों के नेता रचनात्मक और स्थिर द्विपक्षीय संबंध बनाने को लेकर सहमत हुए हैं. 

मीटिंग के बाद जापानी मीडिया ने कहा कि दोनों देश वार्ता को मजबूत करने पर सहमत हुए हैं. चीनी विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि वार्ता पूर्वोत्तर एशिया में भू-राजनीतिक तनाव को कम करने में अहम भूमिका निभा सकती है, लेकिन केवल तभी जब जापान चीन के खिलाफ अपनी रणनीति बदलेगा. 

गौरतलब है कि इसी बीच जापान ने ताइवान को लेकर भी बयान दिए थे. बैठक के बाद भी जापान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि उन्होंने चीन के सामने ताइवान में शांति और स्थिरता के महत्व पर जोर दिया है. बयान में कहा गया है कि दोनों देश जल्द ही अपने वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों के बीच बातचीत करांएगे ताकि आपसी मतभेद और टकराव की वजह से दोनों देशों के विकास में किसी तरह की कोई बाधा ना आए. 

ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सुरक्षा वार्ता में कई समस्याओं का जिक्र किया गया, लेकिन कोई ठोस समाधान अब तक नहीं निकला है. लेकिन केवल यह समझकर कि जापान बातचीत से क्या चाहता है, चीन जापान के साथ अपने मतभेदों को कम जरूर कर सकता है. 

उधर चीन के उप विदेशमंत्री सुन विदोंग ने जवाब में कहा कि दोनों देशों के नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई है कि एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं बनना चाहिए. सुन ने जापान के सुरक्षा दस्तावेजों का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि ताइवान मुद्दे पर जापान के 'गलत कदमों' से चीन परेशान है.

चीन ताइवान मुद्दे पर जापान से स्पष्टीकरण चाहता है. चीन ने कहा कि वह जापान की सैन्‍य तैयारियों से चिंतित है वहीं टोक्‍यो ने अपने देश के आसपास जासूसी गुब्‍बारों के संदिग्‍ध इस्‍तेमाल और चीनी सैन्‍य गतिविधियों के साथ ही उसके रूस के साथ सहयोग पर भी चिंता जताई. 

बैठक में इस बात का भी जिक्र हुआ कि अमेरिका के प्रमुख सहयोगी देश जापान ने दिसंबर में रक्षा खर्च बढ़ोत्तरी का ऐलान किया है. चीन ने कहा कि जापान ने वादा किया था कि 2027 तक रक्षा बजट को कम करेगा. चीन ने जापान से पूर्वी चीन महासागर में विवादित द्वीपों के बारे में भी चर्चा की. सेंकाकू द्वीप टोक्‍यो के नियंत्रण में है लेकिन चीन इस पर दावा करता है और इसे दियाओयू द्वीप कहता है. 

चीन और जापान के बीच का सेंकाकू द्वीप मुद्दा क्या है

2020 में जापान की एक स्थानीय परिषद में चीन और ताइवान के साथ विवादित सेंकाकू द्वीपीय क्षेत्र में स्थित कुछ द्वीपों की प्रशासनिक स्थिति बदलने वाले विधेयक को मंजूरी दी गई थी. इस विधेयक के मुताबिक टोक्यो द्वारा नियंत्रित सेनकाकू द्वीप के पास के एक द्वीप 'टोनोशीरो' (Tonoshiro) और ताइवान और जापान में दियोयस (Diaoyus) द्वीप का नाम बदलकर टोनोशीरो सेंकाकू (Tonoshiro Senkaku) कर दिया गया था. 

चीन इस क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता है. तब चीन का कहना था जापान की तरफ से क्षेत्र की प्रशासनिक स्थिति में किया गया बदलाव चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन करता है. साथ ही चीन अपनी संप्रभुता की रक्षा किसी भी तरह से करेगा. तब चीन ने द्वीपों के आसपास के क्षेत्र में ‘जहाजों के बेड़े’ भी भेजे थे. 

दूसरी तरफ ताइवान भी डियाओयू द्वीपीय क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता है. इस तरह द्वीपों की प्रशासनिक स्थिति में किया जाने वाला किसी तरह का बदलाव ताइवान के लिये सामान्य बात नहीं है. 

बता दें कि सेनकाकू विवाद  की जड़ पूर्वी चीन सागर में स्थित आठ निर्जन द्वीप हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 7 वर्ग किलोमीटर है. ये ताइवान के उत्तर-पूर्व, चीनी मुख्य भूमि के पूर्व में और जापान के दक्षिण-पूर्व प्रांत, ओकिनावा के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं.

सेनकाकू/डियाओयू द्वीपों पर साल 1895 में जापान का नियत्रंण हो गया था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस क्षेत्र पर थोड़े समय के लिए अमेरिका ने भी नियंत्रण कर लिया था.  वहीं चीन ने साल 1970 के दशक में इस क्षेत्र पर ऐतिहासिक अधिकारों का हवाला देते हुए सेनकाकू/दियाओयू द्वीपों पर दावा करना शुरू कर दिया.

सितंबर 2012 में जापान के एक निजी मालिक की तरफ से इन द्वीपों को खरीदने का दावा किया गया था जिसकी वजह से तनाव बढ़ गया था. इन क्षेत्रों को लेकर विवाद की दो बड़ी वजहें हैं . पहला इन द्वीपों के करीब तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार का होना इस पूरे क्षेत्र को अहम बनाता है. दूसरा ये द्वीप प्रमुख शिपिंग मार्गों के बहुत पास हैं. 

इन क्षेत्रों को लेकर अमेरिका की क्या भूमिका है

साल 2014 में अमेरिका ने यह साफ किया था जापान की सुरक्षा के लिये की गई 'अमेरिका-जापान सुरक्षा संधि' विवादित द्वीपों को भी कवर करती है.  इसलिए सेनकाकू द्वीप विवाद में अमेरिका भी शामिल हो सकता है. 

ताइवान विवाद पर जापान की राय

चीन-ताइवान संबंध वर्षों से तनावपूर्ण रहे हैं. चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है , जबकि ताइवान खुद को एक आजाद मुल्क मानता है. दूसरी तरफ जापान ताइवान मामले पर चीन की निंदा करता रहता है. पिछले दिनों भी जापान ने ताइवान के नजदीक चीन के जारी सैन्य अभ्यास की निंदा की थी  और इसे 'बड़ी समस्या' बताया था. जापान चीन के आक्रामक रवैये को  क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा मानता आया है. 

चीन और ताइवान के बीच तनावपूर्ण माहौल को साल 1980 में ठीक करने की कोशिश की गई थी. तब चीन ने ‘एक देश, दो प्रणाली’ के रूप में एक सूत्र पेश किया. इसके तहत ताइवान अगर चीन के साथ पुन: एकीकरण की बात पर सहमत होता तो ही उसे स्वायत्तता दी जाएगी. ताइवान ने इस प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया .

हालाँकि ताइवान सरकार ने चीन की यात्रा करने और वहाँ निवेश संबंधी नियमों में ढील जरूर दे दी.  इस दौरान दोनों देशों के बीच अनौपचारिक वार्ता भी हुई. हालाँकि चीन का कहना था कि ताइवान की रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट वार्ता को अवैध रूप से रोक रही है. 

पुरानी है चीन और जापान की दुश्मनी

जापान और चीन के दुश्मनी का रिश्ता 1937 से ही चला आ रहा है. तब जापानी  सैनिकों ने चीन के नानजिंग शहर को अपने कब्जे में ले लिया था, और शहर में कत्लेआम शुरू कर दिया. 1937 में दिसंबर महीने में शुरू ये कत्लेआम 1938 में मार्च महीने तक चला था. जापान ने 1931 में चीन के मंचूरिया में हमला कर दिया. हमले के बाद जापान चीन पर अपनी पकड़ मजबूत बनाता गया . 

जापान के उपप्रधानमंत्री के तौर पर तारो असो 2006 में भारत के दौरे पर आए थे. तब उन्होंने चीन के बारे में कहा था कि ''अतीत के 1500 सालों से भी ज्यादा वक्त से इतिहास का ऐसा कोई किस्सा नहीं है जब हमारे रिश्ते चीन के साथ अच्छे रहे हों. 

हालांकि 1972 में जापानी प्रधानमंत्री काकुई तानका ने चीन के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश की थी.  लेकिन चीन ने इस पर कोई अच्छा रिएक्शन नहीं दिया था. 

 

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