Japan sterilisation : जापान के सु्प्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट ने जबरन नसबंदी कानून को असंवैधानिक करार दिया. कोर्ट ने फैसला सुनाया कि 1948 से 1996 के बीच हजारों लोगों की जबरन नसबंदी करने की अनुमति देने वाला कानून असंवैधानिक है. साथ ही सरकार को उचित मुआवजे  का आदेश दिया. जापान की मीडिया ने इसकी पुष्टि की है. शीर्ष अदालत ने यह भी निर्णय दिया कि मुआवजे के लिए दावा करने वालों पर 20 साल की समयसीमा नहीं लगाई जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सभी पीड़ितों के लिए बड़ी जीत है. स्थानीय मीडिया के अनुसार, इस कानून के तहत 1948 से 1996 के बीच करीब 25 हजार लोगों की नसबंदी की गई थी. यह कानून शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के संतान न पैदा करने के लिए बनाया गया था. संतानों में किसी प्रकार की शारीरिक कमी को रोकने के लिए ऐसा किया गया. वकीलों ने इसे जापान में सबसे बड़ा मानवाधिकार उल्लंघन बताया.


1948 में लागू हुआ था कानून
जापान की सरकार ने माना कि 1948 से 1996 के बीच लागू जबरन नसबंदी कानून के तहत 16,500 लोगों की जबरदस्ती नसबंदी की गई थी. एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, इनके अलावा अन्य 8,500 लोगों की नसबंदी उनकी सहमति से की गई, 1953 के एक सरकारी नोटिस में कहा गया था कि ऑपरेशन के लिए धोखे से नसबंदी भी की जा सकती है. 1980 और 1990 के दशक में जापान में नसबंदी की संख्या धीमी हो गई थी, जिसके बाद 1996 में इस कानून को समाप्त कर दिया गया था. 2018 में यह फिर चर्चा में आ गया, क्योंकि 60 वर्षीय एक महिला ने सरकार पर इसी तरह की एक प्रक्रिया को लेकर केस दायर किया. इसमें उसने बताया था कि जब वह 15  वर्ष की थी, तब उसे इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ा था. इसके बाद इसी तरह के कई मुकदमे दर्ज किए गए. 


सरकार ने माफी मांग दिया था मुआवजा
हालांकि, बाद में सरकार ने इसको लेकर माफी मांगी थी और प्रत्येक पीड़ित को 3.2 मिलियन येन (20,000 डॉलर) दिए थे. पीड़ितों का कहना है कि उनकी पीड़ा की गंभीरता के लिए यह राशि बहुत कम है, इसलिए उन्होंने अदालत में लड़ाई लड़ने का फैसला किया. अब मामले में कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि 1948 का यह कानून असंवैधानिक था. बुधवार को आया फैसला 39 में से 11 वादियों के लिए था, जिन्होंने पांच निचली अदालतों में मुकदमे लड़े. अभी अन्य वादियों के मुकदमे लंबित हैं. इनमें से कई वादी व्हीलचेयर पर बैठे थे. उन्होंने अदालत का शुक्रिया अदा किया. तोक्यो में 81 वर्षीय वादी साबुरो किता ने कहा कि मैं अपनी खुशी बयां नहीं कर सकता और मैं यह अकेले कभी नहीं कर पाता. किता ने बताया कि उनकी 1957 में 14 साल की उम्र में नसबंदी कर दी गई थी, जब वह एक अनाथालय में रहते थे. उन्होंने कई साल पहले अपनी पत्नी की मौत से कुछ समय पहले ही अपने इस राज से पर्दा उठाया था. उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी वजह से कभी बच्चे न होने पाने का खेद है.