इंटर कोरियन समिट में 11 साल बाद मिलेंगे उत्तर कोरिया के 'किम जोंग' और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति 'मून'
दोनों देशों के राष्ट्रध्यक्षों में कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्थापित करने के लिए शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया है. इस सम्मेलन को 'इंटर कोरियन समिट-2018' का नाम दिया गया है.
नई दिल्ली: 27 अप्रैल यानि शुक्रवार को उत्तर कोरिया का तानाशाह किम जोंग उन दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन से मिलने के लिए दोनों देशों की सीमा पर बने डिमिलिट्राइज़ जोन यानि डीएमजेड आ रहा है. इसी डीएमजेड में बने पनमूनजेओम गांव के 'पीस हाउस' में दोनों देशों के राष्ट्रध्यक्षों में कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्थापित करने के लिए शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया है. इस सम्मेलन को 'इंटर कोरियन समिट-2018' का नाम दिया गया है.
पूरी दुनिया की नजरें इस ऐतिहासिक बैठक पर टिकी हुई हैं. दुनिया की सबसे बड़ी खबर की कवरेज के लिए खुद एबीपी न्यूज भी वहां मौजूद रहेगा और आपको पल पल की जानकारी देगा.
'रॉकेट मैन' के तौर पर जाना जाता है किम जोंग
ये पहला मौका है जब किम जोंग दक्षिण कोरिया से शांति बहाली के लिए तैयार हो गया है. क्योंकि इससे पहले तक उसकी पहचान एक सनकी तानाशाह की थी जो परमाणु हथियारों के परीक्षण और मिसाइल टेस्ट के लिए दुनियाभर में जाना जाता था. यही वजह है कि दुनिया उसे रॉकेट-मैन के तौर पर भी जाने लगी थी. लेकिन पिछले कुछ समय से उसने कोरियाई प्रायद्वीप में शांति कायम करने के दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन के प्रयासों का साथ दिया और इस ऐतिहासिक बैठक के लिए तैयार हो गया. इस शिखर सम्मेलन का मुख्य मुद्दा और उद्देश्य है कोरियाई प्रायद्वीप में परमाणु निरस्त्रीकरण और शांति स्थापित करना.
इस सम्मेलन की नींव तभी रखी गई थी जब फरवरी के महीने में किम जोंग उन की बहन विंटर ओलंपिक्स में हिस्सा लेने के लिए दक्षिण कोरिया आई थी. शुक्रवार को होने वाले इस खास शिखर सम्मेलन से पहले बुधवार को दोनों देशों के राष्ट्रध्यक्षों ने हॉटलाइन पर भी बातचीत की जो हाल ही में दोनों देशों के बीच स्थापित की गई थी.
इस बैठक से पहले किम जोंग ने कोरियाई प्रायद्वीप में अमन कायम करने ओर दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए डिन्यूक्लिराईजेशन यानि निरस्त्रीकरण की घोषणा कर दी है. उसने अपने मिसाइल प्रोग्राम के साथ एक न्यूक्लिर साइट बंद करने का भी ऐलान कर दिया है. तो क्या मान लिया जाए कि अब उत्तर कोरिया और उसका डिक्टेटर किम जोंग उन अब और कोई न्यूक्लियर या फिर कोई लंबी दूरी की मिसाइल का टेस्ट नहीं करेगा.
2017 में कर चुका है इंटर कोन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण
जानकारों की मानें तो भले ही किम जोंग उन ने डिन्यूक्लिराईजेशन की घोषणा कर दी है, लेकिन उसने कहीं भी ये नहीं कहा कि जो परमाणु हथियार उसके जंगी बेड़े में हैं उन्हें वो नष्ट कर देगा. साथ ही उसे अब कोई और लंबी दूरी की मिसाइल टेस्ट करने की कोई खास जरूरत नहीं है क्योंकि उसने नवंबर 2017 में ही करीब 10 हजार किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली इंटर कोन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया था. ये मिसाइल की पहुंच अमेरिका के किसी भी बड़े शहर तक है.
क्या है जूचे मॉडल
यानि किम जोंग उन और उत्तर कोरिया जिस खास 'जूचे' मॉडल के तहत अपने देश को चलाता है वो उसने सैन्य क्षेत्र में पूरा कर लिया है. जूचे का अर्थ है 'आत्मनिर्भरता'. यानि सैन्य ताकत के तौर पर किम जोंग उन किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं है इसलिए अब वो दुनिया के दूसरे देशों के साथ कोई भी समझौता अपनी शर्तों पर करने के लिए तैयार है. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति के बाद किम जोंग उन मई के महीने में अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी मिलने वाला है. इससे पहले उसने अपनी पहली विदेश यात्रा पड़ोसी देश चीन की की थी.
उत्तर कोरिया की स्थिति नहीं है ठीक
लेकिन कुछ जानकारों की मानें तो उत्तर कोरिया की हालत बेहद खराब है. अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. उसकी बड़ी वजह दुनियाभर की पाबंदियां हैं. किम जोंग उन ने देश का सारा खजाना परमाणु हथियार और मिसाइल बनाने में खाली कर दिया है. इसलिए दक्षिण कोरिया और अमेरिका से संबंध सुधारकर वो अपने देश के लोगों के लिए हालात ठीक करना चाहता है.
शुक्रवार को होने वाली मीटिंग में क्या किम जोंग उन दक्षिण कोरिया में तैनात अमेरिकी सेना को हटाने पर भी जोर देगा, इसपर भी सबकी नजर रहेगी. क्योंकि 1950 के कोरियाई युद्ध के बाद से ही अमेरिकी सेना दक्षिण कोरिया में तैनात है. इस वक्त भी करीब 28 हजार अमेरिकी सेना दक्षिण कोरिया में मौजूद है. इसके अलावा उत्तर कोरिया के परमाणु हमले और मिसाइलों से बचने के लिए अमेरिका ने दक्षिण कोरिया को सामरिक कवच प्रदान कर रखा है.
'डीएमजेड' में होगी मुलाकात
माना जा रहा है कि दोनों कोरियाई देशों के राष्ट्रध्यक्ष जब डीएमजेड में मिलेंगे, जिसे दुनिया का सबसे संवेदनशील बॉर्डर समझा जाता है, तो 1950 के कोरियाई युद्ध को पूरी तरह से खत्म करने के समझौते के मसौदे पर भी बाचतीत करेंगे. क्योंकि करीब तीन साल तक चले कोरियाई युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र के कहने पर दोनों देशों ने युद्धविराम के लिए तो समझौता (आर्मिस्टिस एग्रीमैंट) कर लिया था लेकिन शांति समझौता नहीं किया था. यही वजह है कि दोनों देशों के बीच में पिछले 70 सालों से तनाव बरकरार है और कई बार ऐसे मौके भी आए कि लगने लगा कि दोनों देशों के बीच में जंग की नौबत आ गई है. दोनों देशों के बीच में जंग का साफ मतलब था तीसरा विश्वयुद्ध.
11 साल बाद पहली बार बैठक
1948 में कोरियाई प्रायद्वीप के विभाजन और दोनों देशों के जन्म के बाद ये तीसरा मौका है जब उत्तर और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रध्यक्ष बैठक कर रहे हैं. इससे पहले वर्ष 2000 और 2007 में भी ऐसा सम्मलेन हुआ था लेकिन दोनों ही बार शांति अस्थायी तौर पर ही हो सकी थी. ये दोनों बैठकें उत्तर कोरिया की राजथानी प्योंगयांग में हुईं थीं. लेकिन इस बार किम जोंग उन बैठक के लिए डीएमजेड में आ रहा है और सीमा रेखा के दक्षिण में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति से मुलाकात करेगा. डीएमजेड में दोनों देशों के बीच में एक रेखा खिची गई है.डिमार्केशन लाइन के उत्तर का हिस्सा उत्तर कोरिया के पास है जबकि दक्षिण का क्षेत्र दक्षिण कोरिया का हिस्सा है.
क्या होता है डिमिलेट्राइजड जोन?
साथ ही दुनिया की नजरें इस बात पर भी रहेंगी कि क्या दोनों देश डीएमजेड के इर्दगिर्द तनाव कम करने और सैनिकों की तैनाती को कम करने की दिशा में क्या पहल करते हैं. क्योंकि कोरियाई युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में उत्तरी कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच एक बफर जोन बना दिया गया. इसे डिमिलेट्राइजड जोन कहा जाता है. 250 किलोमीटर लंबे और करीब चार (04) किलोमीटर चौड़े इस जोऩ में दोनों देश अपनी सेनाओं या फिर सैनिकों को तैनात नहीं कर सकते हैं. ये पूरा इलाका यूएन यानि संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत आता है. यहां तक की कोई शहर गांव या बस्ती भी इस पूरे इलाके में नहीं बनाई जा सकती है. जो इक्का-दुक्का गांव थे उन्हें खाली करा दिया गया. अब यहां सिर्फ बिना हथियारों के चंद सैनिक रहते हैं.
मात्र 250 किलोमीटर लंबे बॉर्डर के दोनों तरफ करीब 10 लाख सैनिक हमेशा तैनात हैं. और ये सभी सैनिक हमेशा युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. इसे दुनिया के सबसे किलेबंदी वाला बॉर्डर कहा जाता है. डीएमजेड जिसे थर्टी-ऐट पैरलल (38 Parllel) भी कहा जाता है वहां सैनिकों को तैनात नहीं किया जा सकता है लेकिन इसके इर्दगिर्द इतने सैनिक दुनिया में कहीं नहीं तैनात है. यहां तक की भारत-पाकिस्तान या फिर भारत चीन सीमा पर भी इतनी कम दूरी तक इतनी बड़ी तादाद में सैनिक कहीं नहीं तैनात हैं.
क्या है 38 PARALLEL?
38 PARALLEL दरअसल, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच की सीमा को कहा जाता है. क्योंकि ये सीमा पृथ्वी की भूमध्य-रेखा यानि EQUATORIAL LINE से 38 डिग्री उत्तर की तरफ है. ये सीमा-रेखा दोनों कोरियाई देशों को दो हिस्सों में लगभग बराबर-बराबर बांटती है. इसी रेखा के इंर्दगिर्द ही बफर जोन बनाया गया है, जिसे डिमिलेट्राईज्ड ज़ोन यानि डिएमजेड के नाम से जाना जाता है. इसी डीएमजेड में दोनों देशों के राष्ट्रध्यक्ष बैठक करेंगे.