पेरिस: फ्रांस की राजधानी पेरिस समेत देश भर में भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. पेरिस में तो ये विरोध प्रदर्शन दंगों में बदल गए हैं. इससे निपटना राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. इस प्रदर्शनों के केंद्र में 'यलो जैकेट्स' नाम का समूह है और रहने-खाने के अलावा तेल की कीमतों में हुई भारी बढ़ोतरी इन प्रदर्शनों की बड़ी वजह है.


17 नवंबर को देश भर में अलग अलग जगहों पर करीब तीन लाख लोग जुटे और सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया. इनमें सबसे प्रमुखता से ड्राइवर्स नज़र आ रहे थे जिन्होंने पीले रंगे की चमकीली जैकेट पहन रखी थी. ये जैकेट वो लोग इस्तेमाल कर रहे हैं जो यलो जैकेट मूवमेंट से जुड़े हैं. इसी मुहिम के तहत फ्रांस में देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.


इस साल की शुरुआत में मैक्रों ने तेल की कीमतों पर टैक्स काफी ज़्यादा बढ़ा दिया था. इसकी वजह से आम लोगों के जनजीवन पर काफी असर पड़ा है क्योंकि इसकी वजह से रहने खाने से लेकर तमाम चीज़ों की कीमतों में भारी उछाल आया है. यहीं से लोगों को जुटाने की जो ऑनलाइन मुहिम शुरू हुई वो थमने का नाम नहीं ले रही है.


पिछले शनिवार को तब इन विरोध प्रदर्शनों की इंतेहा हो गई जब प्रदर्शनकारियों ने शहर के सबसे अमीर इलाकों में हिंसा फैलानी शुरू कर दी. लोगों के गुस्सा का आलम ऐसा था कि उन्होंने दुनिया भर में मशहूर यहां की कई ऐतिहिसाक धरोहरों तक को नहीं बख्शा. हैरत की बात ये रही कि दंगा पुलिस की आंसू गैस से लेकर स्टन ग्रेनेड जैसे तमाम हथियार इनको रत्ती भर भी नहीं डिगा पाए.


वहीं, सोमवार को यलो जैकेट्स से जुड़े प्रदर्शनकारियों ने कई हाईवे को पूरी तरह से बंद कर दिया जिससे चीज़ें अपनी जगह पर नहीं पहुंच सकीं. इन प्रदर्शनों पर विपक्ष का कहना है कि लोगों के ग़ुस्से को समझने में सरकार पूरी तरह से फेल रही है. इन प्रदर्शनों में अब तक तीन लोगों की मौत हुई है, 260 लोग घायल हुए हैं और 400 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.


कौन है यलो वेस्ट
इस मुहिम से जुड़े ज़्यादातर लोग मध्यम वर्ग के कामकाजी लोग बताए जा रहे हैं. लेकिन ये भी कहा जा रहे है कि इनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जो इन प्रदर्शनों को हवा दे रहे हैं. इसमें हर उम्र के लोग शामिल हैं जो देश के छोटे शहरों से आते हैं. तीन हफ्तों के विरोध प्रदर्शन के बावजूद इनका कोई नेता नहीं है. हां, इनके आठ प्रवक्ता ज़रूर हैं लेकिन वो भी आधिकारिक नहीं है. किसी नेता के नहीं होने की वजह से सरकार को इस मुहिम से निपटने में नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. इस मुहिम को मुख्य तौर पर सोशल मीडिया के सहारे चलाया जा रहा है.


क्या इससे मैक्रों को नुकसान होगा
इनवेस्टमेंट बैंकिंग से राजनीति में आए मैक्रों अचनक से राष्ट्रपति बन गए. अर्थव्यवस्था के क्षेत्र से होन की वजह से उनसे उम्मीद थी कि वो फ्रांस की अर्थव्यवस्था को और मज़बूत बनाएंगे. लेकिन क्लीन एनर्जी के नाम पर उन्होंने तेल की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी की और हवाला दिया कि इससे मिलने वाले पैसों से वो क्लीन एनर्जी को बढ़ावा देंगे. मैक्रों का प्रण है कि चाहे जो जाए लेकिन वो अपनी इस नीति को नहीं छोड़ेंगे और प्रदर्शनकारियों को उन्होंने ये कह कर ख़ारिज कर दिया कि वो सिर्फ तबाही मचाना चाहते हैं.


एक रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों से मैंक्रों बिल्कुल भी डरे हुए नहीं हैं. वहीं, वो लेबर लॉ और रेलवे कर्मचारियों की पेंशन से जुड़े बड़े बदलाव करने से भी नहीं हिचक रहे हैं. लेकिन उनके लिए ये मुहिम अलग तरह का चैलेंज हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि इस मुहिम का कोई नेता, पार्टी या संस्था नहीं है. इसी रिपोर्ट में एक समाज वैज्ञानिक का कहना है कि "एक ऐसी मुहिम जिसका कोई नेता नहीं है, मैक्रों के लिए बेहद ख़तरनाक हो सकता है क्योंकि जब तक फ्रांस का विपक्ष लेफ्ट और राइट में बंटा है तब तक उनकी सत्ता को कई ख़तरा नहीं है और फ्रांस की क्रांति के बाद पहली बार कुछ वैसा ही रूप ले रहा यलो जैकेट मूवमेंट उनके ऊपर एक बड़ा राजनीतिक सवाल खड़ा करता है."


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