16 अक्टूबर 2020 को फ्रांस के पेरिस में शार्ली एब्दो में छपे पैगंबर मोहम्मद के एक कार्टून को छात्रों को दिखाने पर एक टीचर का सिर धड़ से कलम कर दिया गया था. इस घटना के बाद एक बार फिर शार्ली एब्दो  चर्चा में आ गई है. शार्ली एब्दो फ्रांस में एक बेहद चर्चित साप्ताहिक व्यंग्य मैगजीन है. इस मैगजीन में कार्टून, रिपोर्ट्स, वाद विवाद और मनोरंजक कटाक्ष इत्यादि पब्लिश किए जाते रहते हैं.


हमेशा विवादों मे रही है पत्रिका


शार्ली एब्दो हमेशा से खुद को एक धर्मनिरपेक्ष, नास्तिक, लेफ्ट समर्थक, संशयवादी और नस्लभेदी विरोधई होने का दावा करती रही है. इसके साथ यह पत्रिका राजनीति, धर्म और संस्कृति से जुड़े कई अहम मुद्दों पर भी बहस और कमेंट्स को बढ़ावा देती रही है. यह पत्रिका पैगंबर मुहम्मद और इस्लाम से जुड़े कार्टून्स छापने के कारण हमेशा से विवादों में रही है.


2015 में हुआ था आतंकी हमला


पांच साल पहले 2015 में पैगंबर मुहम्मद के कार्टून छापने पर इस मैगजीन पर आतंकी हमला भी हुआ था जिसमे 12 लोग मौत के घाट उतार दिए गए थे.  साल 2011 में भी एक आतंकी हमला हुआ था. इन घटनाओं ने दुनिया को तीन हिस्सों में बांट दिया था. एक हिस्सा हमले का पक्षधर था जिसका कहना था कि मैगजीन ने कार्टून्स छापकर गुनाह किया है और उसे सजा मिलनी ही चाहिए. वहीं दूसरे हिस्से का कहना था कि मैगजीन का कार्टून छापना और हमला दोनो ही सरासर गलत हैं. तीसरे हिस्से का मानना है कि मैगजीन के पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है इसलिए उस पर हुआ आतंकी हमला बेहद उन्मादी और भयावह है.


1970 के दशक में हुई थी पत्रिका की शुरूआत


यह पत्रिका साल 1970 में शुरू हुई थी. उस दौरान इस मासिक पत्रिका का नाम हारा किरी एब्दो रखा गया था, जिसे पूर्व राष्ट्रपति चार्ल्स दी गॉल की मौत के बाद मजाक उड़ाने के आरोप में बैन कर दिया गया था. इसके बाद 1981 में इस मैगजीन को  बंद कर दिया गया लेकिन 1991 में यह मैगजीन फिर चालू कर दी गई. फ्रेंच के शब्द एब्दो का अर्थ है साप्ताहिक. बाद में लोकप्रिय कार्टून सीरीज ‘पीनट’ के कैरेक्टर शार्ली ब्राउन के नाम पर इस मैगजीन का नाम शार्ली एब्दो रख दिया गया.  हर बुधवार को पब्लिश होने वाली शार्ली एब्दो साप्ताहिक पत्रिका के वर्तमान प्रमुख संपादक गेरार्ड बियार्ड हैं.


फिर कार्टून छापने पर हुआ विवाद


बहरहाल एक बार फिर ये पत्रिका लगातार पैगंबर मोहम्मद के कार्टून छापकर विवादों में है. दरअसल जनवरी 2015 में पत्रिका पर हुए आतंकी हमले को लेकर पेरिस में कुछ महीने पहले ही सुनवाई होनी थी लेकिन कोरोना के कारण ट्रायल शुरू होने में देरी हुई. वहीं ट्रायल की शुरूआत को एक ऐतिहासिक घटना के रूप में दर्ज करने के उद्देश्य से पत्रिका द्वारा दोबारा उन कार्टून्स को छापा गया था जिसने वजह से आतंकी हमला हुआ था. लेकिन इस बार फिर कार्टून छपते ही विवाद खड़ा हो गया


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