डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने एच-1बी वीज़ा प्रणाली को सख्त कर दिया. यूएससीआईएस ने 31 मार्च को साफ किया था कि एच-1बी वीज़ा के तहत योग्य कंप्यूटर प्रोग्रामर को यह सिद्ध करने की जरूरत है कि उनका बिज़ेनस स्पेशल है. इसके लिए सिर्फ कंप्यूटर डिग्री पर्याप्त नहीं होगा. डेमोक्रेट लोफग्रेन ने अमेरिकी संसद में एक निजी सदस्य बिल भी पेश किया था, जिसके तहत एच1-बी वीज़ाधारक के लिए अधिकतम वेतन मौजूदा 60,000 डॉलर से बढ़ाकर 130,000 डॉलर करने का प्रस्ताव है. डेविस एंड एसोसिएट्स एलएलसी के ग्लोबल चेयरमैन मार्क डेविस ने बताया कि अगर यह बिल पास हो गया तो इससे आईटी कंपनियों को सबसे ज़्यादा फायदा होगा और उनके ग्राहकों को काम के लिए सबसे ज़्यादा भुगतान करना होगा.
डेवियस एंड एसोसिएट्स के भारत और दक्षिणपूर्व एशिया क्षेत्र के अध्यक्ष अभिनव लोहिया के मुताबिक, भारतीय कंपनियों को अमेरिकी प्रतिभाओं की खोज करनी होगी या फिर अपने कामगारों को अमेरिका भेजने के लिए एल1बी और एल1 वीज़ा जैसे विकल्पों की खोज करनी होगी. एल1 वीज़ा एक विदेशी कामगार को अमेरिका में मैनेजमेंट, एक्जिक्यूटिव या स्पेशलिस्ट कैटगरी में अस्थाई तौर पर ट्रांसफर करता है.
लोहिया ने बताया कि एल1 वीज़ा से बहुत सारी अमेरिकी कंपनियों को स्थानीय कंपनी के साथ काम करने में मदद मिल सकती है. लोहिया के मुताबिक, एच-1बी और एल1 वीज़ा कर्मचारियों के लिए है. यदि आपके पास पर्याप्त पैसा है तो आप ईबी5 वीज़ा के लिए आवेदन कर सकते हैं. आवेदक को ईबी5 वीज़ा के लिए लक्षित रोजगार क्षेत्र (टीईए) में 500,000 डॉलर और गैर टीईए क्षेत्र में 1,00,000 डॉलर का निवेश करने की जरूरत है.
हाल के दिनों में ईबी5 वीज़ा के लिए आवेदन करने वाले भारतीय आवेदकों की संख्या में तेज इजाफा हुआ है. लोहिया इसके लिए कई कारण बताते हैं, जिसमें एक तथ्य यह है कि अमेरिका में कारोबार के विस्तार के लिए अधिक अवसर हैं. डेवियस के मुताबिक, ईबी5 आवेदकों के लिए पूंजी होना बहुत आवश्यक है और अमेरिका में स्नातक की पढ़ाई के बाद रोजगार करने के इच्छुक छात्रों के लिए यह एकमात्र विकल्प भी है. लोहिया ने कहा कि ईबी5 और एल1 ए वीज़ा से अमेरिका में स्थाई तौर पर रहा जा सकता है और जल्द ही अमेरिकी नागरिकता भी मिल सकती है.