एक महीने से भी कम वक्त में दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्रिक देश में चुनाव होने वाले हैं. वो देश जो सुपर पावर है, जहां की फ्री स्पीच और लोकतंत्र की मिसाल दुनियाभर में दी जाती है. अमेरिका में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनने के लिए 5 नवंबर 2024 को वोटिंग है. क्या आपको पता है अब तक साल 2024 में आधी दुनिया में चुनाव हो चुके हैं. ऐसे में अब जब दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र वाले देश में चुनाव है तो जरा नजर डाल लेते हैं उन देशों पर जहां इस साल चुनाव हुए और उनकी खूब चर्चा हुई. कैसी है वहां की लोकत्रातिक व्यवस्था..क्या चुनाव निष्पक्ष हो रहे हैं और लोकतंत्र जीवित है?


इस साल कितने देशों में हुए चुनाव 


इस साल अब तक दुनिया के 67 देश जिनकी कुल आबादी 3.4 बिलियन है वहां राष्ट्रीय स्तर के चुनाव, आसान भाषा में समझें तो लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. साल के खत्म होने से पहले अलग-अलग देशों में कुल 440 मिलियन लोग अभी और चुनाव में भाग लेंगे.


अमेरिकन थिंक टैंक फ्रीडम हाउस के मुताबिक इस साल दुनियाभर में वोट करने वाले हर तीन व्यक्ति में से एक ऐसे देश में रहता है जहां पिछले पांच सालों में निष्पक्षता से चुनाव कराने के स्तर में भारी गिरावट आई है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या चुनाव में वोटर्स को प्रभावित किया जा रहा है.


क्या दुनियाभर में आज हो रहे हैं निष्पक्ष चुनाव


दुनियाभर के चुनावी एक्सपर्ट इस बात को लेकर चिंता जताते हैं कि आज मिसइनफॉर्मेशन या फेक न्यूज़ के साथ ही AI वोटरों को प्रभावित या भ्रमित करने के लिए इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन कैविन कैसिस जमोरा ने द इकोनॉमिस्ट से बात करते हुए बताया कि ऐसा नहीं है. वो इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस के साथ काम करते हैं. ये संगठन दुनिया भर में लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं को मजबूत करने के लिए काम करती है.


कैविन कैसिस जमोरा ने कहा, '' आप देखेंगे कि ताइवान में इस साल चुनाव हुए और लोगों ने चीन के डराने धमकाने के बाद भी विलियम लाई ते को राष्ट्रपति चुना. वहीं 20 ऑक्टूबर को  यूरोप के देश माल्दोवा में राष्ट्रपति चुनाव है. इस बीच उसे लगातार रूस से धमकियां मिल रही हैं लेकिन वहां चुनाव हो रहे हैं. तो ऐसा कहना कि वोटर्स को प्रभावित किया जा रहा है पूरी तरह से सही नहीं है.


ब्रिटेन में जनता नाराज तो बदल दी सरकार


जनता के हाथ में वोटिंग पावर है वो जिसे चाहे सत्ता की कुर्सी पर बिठा दे और जिसे चाहे उतार दे. ऐसा ही इस साल कई लोकतांत्रिक देशों में देखने को मिला. उदाहरण के लिए ब्रिटेन का चुनाव लेते हैं. विपक्ष की लेबर पार्टी 1997 के बाद सबसे ज्यादा सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनीं. 650 सीटों वाली ब्रिटेन की संसद में लेबर पार्टी ने 412 सीटें जीती जो बहुमत के आंकड़े 326 से कहीं ज़्यादा है. लेबर पार्टी के नेता किएर स्टार्मर ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बन गए और ऋषि सुनक की विदाई हो गई.


ऐसे में यह कहना भी पूरी तरह से उचित नहीं कि जनता अपने वास्तविक मुद्दों को भूल गई है और उसे प्रभावित कर वोट करवाया जा सकता है. ब्रिटेन की जनता सुनक के आर्थिक नीतियों से नाराज थी और चुनाव परिणाम ने उसकी गवाही दे दी.


पर क्या चुनाव होना ही किसी देश के लिए स्वतंत्रता की गैरंटी


केवल चुनाव कराने का मतलब यह नहीं है कि लोकतंत्रित व्यवस्था स्थापित है और प्रक्रिया स्वतंत्र या निष्पक्ष है. इसको समझने के लिए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का उदाहरण ले लेते हैं. उन्होंने जनवरी में लगातार चौथी बार जीत दर्ज की. फिर राजनीतिक असंतोष के कारण देशभर में विरोध हुआ और मुख्य विपक्षी पार्टी द्वारा चुनाव का बहिष्कार किया गया. इसके बाद जो अराजकता फैली उसके कारण प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भारत में शरण लेना पड़ा. 


पड़ोसी देश पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन होते ही देश से सबसे प्रचलित पीएम इमरान खान को जेल हो गई. अब तक वो जेल में बंद हैं. ऐसे कई देशों के उदाहरण हैं.


अमेरिका के चुनाव पर सबकी नजर


अमेरिका के चुनाव पर पूरी दुनिया की नजर है. एक तरफ पूर्व प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप हैं तो दूसरी तरफ कमला हैरिस, दोनों के बीच मुकाबला काफी टफ लग रहा है.  दुनिया भर के देशों को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले और उसके लिए जंग तक लड़ने वाले अमेरिका का लोकतंत्र कितना मजबूत है इसकी परीक्षा इस बार होनी है. मध्य पूर्वी देशों में चल रहे युद्ध के कारण अमेरिकी चुनाव का महत्व बढ़ गया है. पूरी दुनिया इस बात को लेकर सोच में पड़ी है कि खुद को 'दुनिया का बॉस' कहने वाली अमेरिका का अगला प्रेसिडेंट कैसे इजराइल-हमास जंग को रोकेगा और दुनिया में शांति स्थापित करेगा.