नई दिल्ली: शांति के लिये नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मलाला युसूफजई ने कहा है कि तालिबान के हमले के उपरांत तकरीबन छह साल पहले उनके देश छोड़ने के बाद से पाकिस्तान में बदलाव आया है. वहां पहले से कहीं अधिक शांति है, लेकिन काफी काम किया जाना बाकी है. मलाला ने देश छोड़ने के बाद दुनिया के विभिन्न हिस्सों की और शरणार्थी शिविरों की यात्रा की है. उन्होंने अपने जीवन की उस समय की यादों का इस्तेमाल दुनियाभर के 6.85 करोड़ शरणार्थियों और विस्थापित लोगों के साथ जुड़ने के लिये किया है.
अब वह उन्हें देखने, उनकी मदद करने और उनकी कहानी को साझा करने के लिये एक पुस्तक के साथ आई हैं. पुस्तक 'वी आर डिसप्लेस्ड: माई जर्नी एंड स्टोरीज फ्रॉम रिफ्यूजी गर्ल्स एराउन्ड द वर्ल्ड' में मलाला घर के लिये तरसने के दौरान न सिर्फ नये जीवन के साथ सामंजस्य बिठाने की अपनी कहानी को बयां करती हैं बल्कि वह कुछ लड़कियों की निजी कहानियों को भी साझा करती हैं, जिनसे वह विभिन्न सफर के दौरान मिलीं और जिन्होंने अपने समुदाय, रिश्तेदारों आदि को खो दिया.
मलाला उस वक्त सिर्फ 15 साल की थीं जब तालिबान ने नौ अक्टूबर 2012 को लड़कियों की शिक्षा और शांति के लिये आवाज उठाने के लिये उन्हें गोली मार दी थी. इस हमले में वह बुरी तरह जख्मी हो गई थीं और उन्हें इलाज के लिये ब्रिटेन में बर्मिंघम ले जाया गया था. हमले के बाद 31 मार्च 2018 को पहली बार पाकिस्तान में स्वात घाटी में अपने घर लौटीं.
पुस्तक में उन्होंने लिखा है, ''मेरे देश छोड़ने के बाद से पाकिस्तान में बदलाव आया है. जनसंख्या वृद्धि की वजह से कुछ क्षेत्रों में भीड़ बढ़ी है. स्वात में 2012 की तुलना में अधिक मकान और लोग हैं. लेकिन अधिक शांति भी है.'' इस पुस्तक का प्रकाशन वीडेनफेल्ड एंड निकोलसन हैचेट इंडिया ने किया है. उन्होंने लिखा है कि वह पहाड़ी की तरफ खड़ी हुईं और पर्वतों की तरफ देखा जहां कभी तालिबान ने अपने लड़ाकों को रखा था. उन्होंने कहा, 'अब वहां सिर्फ पेड़ और हरे खेत हैं.'
हालांकि, 2014 में कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली मलाला ने लिखा है, ''बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ उनके संघर्ष के लिये और सभी बच्चों की शिक्षा के अधिकार के लिये उनके देश में काफी कुछ किया जाना बाकी है.''
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मलाला ने कहा, ''यद्यपि मैं वहां नहीं रहती हूं, लेकिन वह अब भी मेरा देश है. यह मेरी सोच से कभी दूर नहीं है. मेरा सपना है कि 12 साल तक के सभी पाकिस्तानी बच्चों को मुफ्त, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और हमारे देश के बेहतर भविष्य का निर्माण करने के लिये काम कर रही हूं.''
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