मलेशिया की शरिया कोर्ट का एक फैसला इन दिनों चर्चा में बना हुआ है. यहां अदालत ने एक महिला को धर्म बदलने की अनुमति देने से इंकार कर दिया. शरिया कोर्ट के खिलाफ सिविल कोर्ट में अपील की गई तो सुनवाई नहीं हुई और अब यह महिला मुस्लिम बनकर रहने के लिए मजबूर है. अपने धर्म के कारण वह प्रेमी से शादी नहीं कर पा रही है. अदालत के फैसले के बाद महिला के वकील का कहना है कि मलेशिया में मुस्लिमों के पास धार्मिक आजादी नहीं है.


कुआलालांपुर की शरिया अदालत ने महिला के इस्लाम छोड़ने पर रोक लगाई है. इस फैसले के खिलाफ महिला ने कई बार सिविल कोर्ट में अपील की, लेकिन हर बार इसे खारिज कर दिया गया. इसके साथ ही कोर्ट ने फिर से अपील लगाने की अनुमति देने से भी इंकार कर दिया. सिविल कोर्ट की तीन जजों ने यह फैसला सुनाया. इस मामले में सुनवाई कर रही पीठ के अध्यक्ष जस्टिस हस्ना हशीन ने कहा कि फिर से अपील करने की याचिका खारिज कर दी गई है.


मलेशिया में धर्म की आजादी नहीं
महिला की वकील फहरी अज्जत ने कहा कि इस फैसले से यह साफ हो चुका है कि शरिया अदालत की अनुमति के बिना इस्लाम छोड़ने का कोई सहारा नहीं है. उन्होंने कहा "मलेशिया में मुसलमान के पास धर्म की आजादी नहीं है." इस मामले में वकील हनीर हम्बली ने कहा कि अगर कोई इस्लाम छोड़ना चाहता है तो उसे शरिया अदालत में जाना पड़ता है. सिविल कोर्ट के पास इस मामले में कोई अधिकार नहीं है.


2018 से चल रहा मामला
इस महिला का कहना है कि वह भले ही मुस्लिम परिवार में पैदा हुई, लेकिन बचपन से उसकी मां ने उसे अपने तरीके से जीने की छूट दी. उसने कभी भी इस्लाम का पालन नहीं किया. साल 2018 में उसने इस्लाम छोड़ बौद्ध धर्म अपनाने के लिए शरिया कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन उसे इसकी अनुमति नहीं मिली. उसे 12 काउसलिंग सेशन में शामिल होने के लिए कहा गया. अगली अपील में भी उससे काउसलिंग कराने के लिए कहा गया. इस फैसले के खिलाफ अपील शरिया कोर्ट और सिविल कोर्ट में खारिज हो चुकी है.

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