मालदीव की इस मजबूर की वहां के पूर्व राष्ट्रपति और संसदीय स्पीकर मोहम्मद नशीद के बयान से समझा जा सकता है. नशीद ने बढ़ते जा रहे कर्ज के बोझ लेकर चीन पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर हम दादी के जेवर भी बेच देंगे तब भी उसके कर्ज के मुक्ति नहीं पाएंगे. चीन का मालदीव पर कर्ज 3.5 बिलियन डॉलर का है.
इसकी वजह खासकर ये रही कि मालदीव की पिछली सरकार का झुकाव बीजिंग की तरफ था. पिछली सरकार के दौरान मालदीव में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए वहां सरकार और कंपनियों ने बड़े पैमाने पर चीन से ऋण लिए। जानकारों की मानें तो साल 2018 में जब इब्राहीम मोहम्मद सोलिह मालदीव के राष्ट्रपति बने थे उस वक्त उनके सामने पहली चुनौती इसका अंदाजा लेने की थी कि आखिर चीन का कितना कर्ज उनके देश पर है।
मालदीव के सेंट्रल बैंक ने अनुमान लगाया कि चीन का 600 अरब डॉलर का कर्ज मालदीव सरकार पर है। तो वहीं, मालदीव की कंपनियों ने 900 अरब डॉलर के कर्ज चीन से लिए थे। चूंकि इस सारे कर्ज में मालदीव सरकार गारंटर बनी थी, इसलिए अगर ये कंपनियां फेल होती हैं, तो उनके कर्ज भी सरकार को ही चुकाने होंगे। यही मालदीव पर मंडरा रहे कर्ज संकट की वजह है।
कर्ज लौटाने की समयसीमा के बारे में पिछले सितंबर में मालदीव की सरकार ने चीन से बातचीत शुरू कर की थी। लेकिन, तब माले स्थित चीनी राजदूत ने यह कहा था कि चीन ने मालदीव को G-20 कर्ज वापसी पहल के तहत मिलने वाले द्विपक्षीय सरकारी कर्ज को रोक दिया है। लेकिन इसका लाभ मालदीव की कंपनियों को नहीं मिला, जिन्होंने करोड़ों डॉलर के कर्ज ले रखे हैं। इस कारण मालदीव की एक बड़ी कंपनी कर्ज अदायगी के शिड्यूल में पिछड़ गई। उसने 12 करोड़ 70 लाख डॉलर का कर्ज ले रखा था। इस डिफॉल्ट के बाद जुलाई में खबर आई कि चीन के आयात-निर्यात बैंक ने मालदीव की सरकार को एक करोड़ डॉलर का कर्ज तुरंत लौटाने को कहा है।