नई दिल्ली: अश्वेतों के अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे सामाजिक कार्यकर्ता मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने एक सपना देखा था. ये सपना था उस दिन का था जिस दिन अमेरिका में काले-गोरों के बीच कोई भेद नहीं रह जाएगा. लेकिन मार्टिन लूथर की हत्या कर दी गई और उनकी हत्या के 52 सालों के बाद भी उनका ये सपना अधूरा है. उनके अमेरिका में अभी भी काले गोरे का भेद है.
46 साल के जॉर्ज फ्लॉयड भी एक अफ्रीकन अमेरिकन थे. हैरानी की बात ये है कि जॉर्ज फ्लॉयड पर आरोप सिर्फ ये था कि उन्होंने एक स्टोर में 20 डॉलर का नकली नोट दिया था. अब ये नकली नोट कहीं से भी आ सकता है. लेकिन नकली नोट देने के एक आरोपी को पुलिस हथकड़ी लगाए, जमीन पर गिराए और उसके बाद पूरे 8 मिनट 46 सेकेंड तक पुलिसवाला उसकी गर्दन को अपने घुटनों से दबाए रखे. जॉर्ज फ्लॉयड चिल्लाता रहा और कहता रहा कि वो सांस नहीं ले पा रहा है. लेकिन पुलिसवाले को कोई फर्क नहीं पड़ा और वो मर गया.
आज से करीब 57 साल पहले 28 अगस्त, 1963 को अपने एक भाषण में मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था, ''मेरा एक सपना है, मेरे 4 छोटे बच्चे एक दिन एक ऐसे देश में जिएंगे, जहां उनकी चमड़ी के रंग से नहीं बल्कि उन्हें उनके चरित्र की वजह से परखा जाएगा. मेरा आज ये सपना है. जब हम आजादी का संगीत बजाने की इजाजत देंगे, जब ये संगीत हर शहर, हर गांव, हर राज्य में बजने देंगे, जब सब ईश्वर के बच्चे,काले, गोरे, यहूदी, प्रोटेस्टैंट, कैथोलिक, एकसाथ हाथ मिला लेंगे, और पुराना धार्मिक गीत गाएंगे, आखिरकार हम आजाद हैं, हम आजाद हैं.''
मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका में जो सपना देखा था वो सपना आज भी अधूरा है. वे अश्वेतों को समान अधिकार दिलाने के लिए लड़े और अपनी जान गंवाई. अश्वेतों को अधिकार तो मिल गए लेकिन गोरों के दिलों में कालों की नफरत अभी तक दूर नहीं हुई है. इसी नफरत की आग में अमेरिका जल रहा है.
ये घटना 25 मई को शुरू हुई जब 25 मई 2020 को 46 साल के अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड को एक गोरे पुलिसवाले ने मार डाला. आरोप है कि जॉर्ज फ्लॉयड ने स्टोर वाले को 20 डॉलर का एक नकली नोट दिया था. पुलिस को कॉल किया गया. बाद में पुलिस ने क्रूरता दिखाई और अस्पताल पहुंचने से पहले ही जॉर्ज फ्लॉयड की मौत हो गई.
जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद अमेरिका में एक बार फिर से काले और गोरें के बीच मतभेदों की बहस तेज है लेकिन ये सच है कि अमेरिका में कालों के साथ हमेशा भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया जा रहा है. इसी भेदभाव की वजह से कैसियस क्ले को मुहम्मद अली बनना पड़ा था.
अमेरिका के ओलंपिक गोल्ड विनर बॉक्स मुहम्मद अली ने एक बार कहा था, ''मैं हमेशा अपनी मां से पूछता था कि मां सबकुछ सफेद क्यों है? मैं पूछता था कि जीसस गोरे क्यों हैं, जिनकी नीली आंखे हैं. सारे एंजल्स गोरे क्यों हैं? मुझे हमेशा ये हैरानी होती है कि मिस अमेरिका व्हाइट क्यों होती है, अमेरिका में खूबसूरत ब्राउन वीमेन भी होती हैं, लेकिन मिस अमेरिका हमेशा व्हाइट होती है. मिस्टर वर्ल्ड भी व्हाइट होता है. मिस यूनिवर्स भी हमेशा व्हाइट होती है. व्हाइट हाउस सिगार क्यों कहते हैं, किंग व्हाइट, व्हाइट क्लाउट टिश्यू पेपर क्यों कहते हैं. सबकुछ सफेद होता है, और एंजेल का फूड केक व्हाइट होता है और शैतान का फूडकेक चॉकलेट केक होता है और राष्ट्रपति व्हाइट हाउस में रहते हैं. जो खराब होता है, उसे ब्लैक कहते हैं. काली बिल्ली को बैड लक माना जाता है. अगर मैं आपको धमकी देता हूं, तो मैं ब्लैकमेल करता हूं, इसे व्हाइट मेल क्यों नहीं कहते.''
ऐसा कोई अश्वेत नहीं जिसका 'अपारथाइड' शब्द से नाता न हो. 1948 में दक्षिण अफ्रिका में बने इस कानून का मतलब अलगाव और अलहदापन है. 1948 से 1994 तक अश्वेत एक अलग इलाके में सीमित थे. कानून तो ख़त्म हो गया लेकिन अलगाव नहीं खत्म हुआ. ह्युमन हिस्ट्री कहती है कि मानव सभ्यता की शुरूआत अफ्रिका से हुई. अगर सफेद प्रभु को प्यारा है तो पहला इंसान कालों के देश में क्यों आया, इन सवालों का जवाब रंग भेद करने वालों के पास नहीं होगा.
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