Hindu community Diwali Celebration in Pakistan: पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की उपाध्यक्ष और पंजाब प्रांत की मुख्यमंत्री मरियम नवाज शरीफ ने हाल ही में लाहौर में आयोजित दिवाली समारोह में हिन्दू समुदाय के सदस्यों से बात करते हुए कहा कि देश में अल्पसंख्यकों, खासकर हिन्दुओं, को कठिन समय का सामना करना पड़ा है, जिसके कारण उन्हें शर्मिंदा होना पड़ा है.
मरियम ने संबोधन में कहा, "पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय ने कई ऐसी घटनाओं का सामना किया है, जो मुझे शर्मिंदगी महसूस कराती हैं. मैं सभी पाकिस्तानियों से अपील करती हूं कि वे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करें, उनका सम्मान करें और उनकी धार्मिक आस्थाओं का आदर करें."
अल्पसंख्यकों के अधिकार की रक्षा करनी चाहिए: मरियम नवाज
उन्होंने कहा कि समाज में सभी वर्गों को एकजुट होकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है और हमें अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए. मरियम नवाज का यह बयान पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के प्रति सहानुभूति और समर्थन का एक महत्वपूर्ण संदेश है, जो समुदाय के बीच एक सकारात्मक बदलाव की आशा जगाता है.
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का क्या है हाल?
पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की कुल आबादी करीब 24 करोड़ है. इसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों की संख्या सिर्फ 87 लाख है. इसमें भी हिंदुओं की कुल आबादी लगभग 53 लाख है. पाकिस्तान में हिंदुओं के दशा को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं. मीडिया रिपोर्टों में अक्सर हिंदुओं के खिलाफ होते अपराध और टारगेट किलिंग भी चिंता के विषय हैं. देश में हिंदुओं की ज्यादातर आबादी गांव में रहती हैं. शहरों से वास्ता न होने की वजह से नौकरी और व्यवसाय में पाकिस्तानी हिंदुओं को कोई मौका नहीं मिलता है.
क्या कहते हैं आंकड़ें?
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन 'माइनॉरिटी राइट्स ग्रुप' ने पाकिस्तान पर हाशिए पर रह रही आबादी को लेकर रिपोर्ट जारी की थी. इसमें कहा गया है कि धार्मिक उत्पीड़न के कारण हर साल 1,200 से लेकर 5,000 हिंदू पाकिस्तान छोड़ देते हैं, जिनमें से ज्यादातर सिंध प्रांत से हैं. सिंध और इलाकों में विविधता और सहिष्णुता की लंबी परंपरा के बावजूद, धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ता हुआ दिखाई देता है, जिससे हिंदू आबादी के प्रति भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा मिलता है.
'माइनॉरिटी राइट्स ग्रुप' कहता है, "पाकिस्तान में हिंदुओं पर हिंसक हमलों के अलावा, हिंदू महिलाओं और लड़कियों का अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन एक बड़ी चुनौती है. हर साल होने वाले जबरन धर्मांतरण की संख्या के बारे में कोई विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि हिंदू महिलाओं और लड़कियों के जबरन धर्मांतरण के लगभग 300 मामले सालाना होते हैं."
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