पाकिस्तान: उमरकोट में आधुनिक युग के 'शाहजहां' से मिलिए, पत्नी की याद में बनवाया 'ताजमहल'
पाकिस्तान के उमरकोट में अब्दुर रसूल की पहचान आधुनिक युग के शाहजहां की बन गई है. उनके प्रेम की शानदार निशानी को लोग दूर-दूर से देखने आ रहे हैं. उमरकोट मुगल शहंशाह अकबर का जन्म स्थान है. लेकिन 400 साल बाद एक बार फिर चर्चा में आ गया है.
आगरा का ताजमहल स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है. पत्नी मुमताज महल की याद में शाहजहां का तोहफा शायरों, कवियों, डायरेक्टर, प्रेमियों, सैलानियों और लेखकों के लिए प्रेरणास्रोत है. लेकिन 400 साल बाद एक और शाहजहां ने कुछ ऐसा कर दिखाया कि उनकी चर्चा होने लगी.
आधुनिक युग के शाहजहां ने बनवाया नया ताजमहल
आधुनिक युग के शाहजहां ने पत्नी से बेपनाह प्यार को जाहिर करने के लिए नया 'ताज महल' खड़ा कर दिया. पाकिस्तान के उमरकोट में अब्दुर रसूल पिल्ली ने दिवंगत पत्नी मरियम की याद में ताजमहल से मिलता-जुलता मकबरा बनवाया है. मुहब्बत की शानदार निशानी देखने के लिए लोग दूर-दूर से आ रहे हैं और स्मारक को अपनी यादों में बसा रहे हैं.
उमरकोट सिंध प्रांत का एक शहर है और उसका अपना शानदार इतिहास है क्योंकि ये मुगल शहंशाह अकबर का जन्म स्थान है. अब्दुर रसूल पहली बार 1980 में भारत आए थे. अपने भारतीय दोस्त की मदद से उन्होंने ताज महल का भ्रमण किया. जमुना नदी किनारे खड़ी दुनिया की सबसे मशहूर सफेद संगमरमर की इमारत ने रसूल पर जादुई असर डाला. वतन वापसी के बाद उनके सपने में भी ताजमहल दिखाई देने लगा.
पाकिस्तान के उमरकोट में है मरियम का मकबरा
अब्दुल रसूल की शादी 18 साल की उम्र में 40 वर्षीय महिला से हुई थी. दोनों की उम्र में काफी अंतर होने के बावजूद मोहब्बत के फूल खिलते रहे. 2015 का साल दोनों की जिंदगी में तूफान बनकर आया. अब्दुर रसूल की पत्नी मरियम एक दिन अचानक बेहोश हो गईं. अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों ने स्ट्रोक की बात बताई. इस दौरान बीमार पत्नी के पास पति हर वक्त साए की तरह खड़े रहे. उनकी तीमारदारी में किसी तरह की कमी नहीं आने दी. एक दिन जागने पर पता चला कि पत्नी दुनिया को छोड़कर जा चुकी हैं.
पत्नी की मौत के बाद पति को बरसों पुराना सपना याद आया. उन्होंने पत्नी की याद में एक शानदार इमारत बनाने का इरादा किया. 20 फीट ऊंचा और 18 फीट चौड़ा छोटा ताजमहल बनवाने के लिए कोशश शुरू कर दी. लेकिन अब्दुर रसूल को मजदूरों की फौज नहीं बल्कि मस्जिद बनानेवाला मिस्त्री का साथ मिला. उन्होंने स्मृति में इमारत का नक्शा तैयार कर जमीन पर लकीरें उकेरी, दिन भर हाथ में ताजमहल की तस्वीर थामे मजदूरों के साथ खड़े होकर काम करवाते.
इस दौरान उन्हें इमारत बनाने के फैसले पर काफी आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने किसी की न सुनी. उनकी मोहब्बत का नायाब नमूना मात्र छह महीने में बनकर तैयार हो गया. मिस्त्री ने इमारत पर निर्माण का खर्च 12 लाख रुपये बताया. ताजमहल जैसी मिलती जुलती इमारत बनने के बाद अब्दुर रसूल का ज्यादातर वक्त पुरानी यादों में गुजरता है. उन्हें घर से ज्यादा सुकून 'मुमताज महल' मरियम की कब्र पर मिलता है.