दुनियाभर में अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचारों की खबरें आए दिन सुर्खियों में रहती हैं. हालिया मामला चीन से आया है, जहां उइगर मुस्लिमों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ कई तरह की हिंसा की बात सामने आई है. संयुक्त राष्ट्र की तरफ से इसे लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की गई है. जिसमें बताया गया है कि कैसे कमजोर समुदाय पर चीन अपनी तानाशाही दिखा रहा है. हालांकि बात यहां सिर्फ चीन की नहीं करेंगे, आज हम आपको बताएंगे कि दुनिया के तमाम देशों में किन अल्पसंख्यकों का जीना मुहाल है.
चीन में उइगिर मुस्लिमों के साथ बर्बरता
सबसे पहले ताजा मामले यानी चीन की करते हैं. चीन के शिनजियांग में स्थित डेटेंशन सेंटर्स और उनमें रहने वाले उइगर मुस्लिमों को लेकर यूएन ने एक रिपोर्ट जारी की. चीन ने इस रिपोर्ट को रोकने की पूरी कोशिश की, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन में सालों से लोगों को कैद करके रखा गया है, जिनके साथ यौन अपराध और जबरन नसबंदी जैसे काम किए जा रहे हैं. 10 लाख उइगिर मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यकों पर चीन ये अत्याचार कर रहा है. ये पहली बार नहीं है जब चीन पर ऐसे आरोप लगे हों, इससे पहले भी चीन में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बर्बरता के कई मामले सामने आ चुके हैं.
म्यांमार में अल्पसंख्यकों का कत्लेआम
दुनिया ने देखा कि म्यांमार में अल्पसंख्यकों में शामिल रोहिंग्या मुस्लिमों के साथ क्या हुआ. दरअसल म्यामांर में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग बहुसंख्यक हैं. सरकार में भी इन्हीं का दबदबा रहता है. ऐसे में देश में रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ लगातार अत्याचार होते रहे. लेकिन 2017 में जो हुआ उससे सभी की रूह कांप उठी. म्यांमार के रखाइन में सेना को छूट दे दी गई कि वो रोहिंग्या मुस्लिमों को देखते ही गोली मार सकते हैं. इसके बाद बड़ी संख्या में यहां नरसंहार शुरू हो गया. गांव के गांव जला दिए गए और इस समुदाय के लोगों को चुन-चुनकर मारा गया. जान बचाने के लिए रोहिंग्या पड़ोसी मुल्कों की तरफ भागे. बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में रोहिंग्या मुस्लिमों ने शरण ली. आज भी म्यांमार में अल्पसंख्यकों की हालत काफी खराब है.
अल्पसंख्यकों के लिए खतरनाक पाकिस्तान
पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है. पाकिस्तान को अल्पसंख्यकों के लिए एक खतरनाक देश के तौर पर देखा जाता है. क्योंकि यहां इनके खिलाफ अत्याचार काफी आम है. पिछले कुछ वक्त में अल्पसंख्यकों का तेजी से पलायन इसका बड़ा उदाहरण है. आंकड़ों की बात करें तो पाकिस्तान बनने के वक्त यानी 1947 में यहां गैर मुस्लिमों की कुल आबादी करीब 23 फीसदी तक थी, लेकिन आज हालात बिल्कुल बदल चुके है. पाकिस्तान में अब महज 3 से 4 फीसदी अल्पसंख्यक रहते हैं. यही हाल पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश और अफगानिस्तान में भी है. इन देशों को अल्पसंख्यकों के लिए काफी खतरनाक माना जाता है.
पाकिस्तान में हिंदुओं, सिखों और ईसाईयों के खिलाफ हिंसा की कई घटनाएं हो चुकी हैं. ज्यादातर बार इनके धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जाता है. सितंबर 2013 में पेशावर के एक चर्च में अटैक किया गया, जिसमें 83 लोगों की मौत हो गई थी. इसी साल ईसाईयों के करीब 200 घरों को जला दिया गया था. 2016 में भी क्रिश्चियन समुदाय पर एक अटैक हुआ, जिसमें 72 लोगों की जान गई.
तुर्की में राष्ट्रवाद के नाम पर अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न
तुर्की में तेजी से राष्ट्रवाद की जो लहर चलाई जा रही है, उससे देखने में आया है कि गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ तेजी से नफरत बढ़ी है. कमाल पाशा के दौर में तुर्की की एक अलग ही पहचान थी, यहां सभी धर्मों का सम्मान होता था. लेकिन अब तेजी से हालात बदल रहे हैं. यहां विपक्षी नेता लगातार आरोप लगाते आए हैं कि तुर्की को एक इस्लामी रिपब्लिक बनाने की कोशिश हो रही है. यहां पिछले कुछ दशकों में अल्पसंख्यकों खासतौर पर क्रिश्चियन लोगों की संख्या तेजी से घटी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक यहां राष्ट्रवाद के नाम पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ कई तरह के झूठ और अफवाहें फैलाई जा रही हैं.
श्रीलंका में एंटी क्रिश्चियन मूवमेंट?
श्रीलंका में रहने वाले तमाम समुदायों में से सबसे कम संख्या ईसाइयों की है. यहां करीब 7 फीसदी ईसाई रहते हैं. बौद्ध लोगों की संख्या यहां सबसे ज्यादा है. श्रीलंका में ईसाई समुदाय पर अत्याचारों की घटनाएं तो आम नहीं थीं, लेकिन 2019 में जब चर्चों में ब्लास्ट हुए तो इसे सीधे एंटी क्रिश्चियन मूवमेंट से जोड़ा गया. ईस्टर पर हुए बम धमाकों में करीब 290 क्रिश्चियन लोगों की मौत हो गई थी. इस हमले के बाद कहा गया कि बौद्ध कट्टरपंथियों की तरफ से इस अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा की जा रही है.
भारत में भी लगते रहे हैं आरोप
अगर भारत की बात करें तो यहां भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार के आरोप लगते आए हैं. भारत में हर धर्म के लोग रहते हैं. जिनमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, क्रिश्चियन और मुस्लिम शामिल हैं. भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश के तौर पर जाना जाता है, लेकिन पिछले कुछ सालों से कुछ कट्टरपंथी संगठनों ने इसे धूमिल करने का काम किया है. देश में धर्म के नाम पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा बढ़ी है. फिर गो तस्करी के नाम पर हुई लिंचिंग हो या फिर धर्मांतरण विरोधी अभियान के तहत होने वाली हिंसा... देश में पिछले कुछ सालों में ऐसे कई मामले देखे गए. जिनकी चर्चा विदेशों में भी हुई.
क्यों हाशिए पर अल्पसंख्यक?
कुल मिलाकर दुनिया के तमाम देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक किसी न किसी तरह से प्रताड़ित किए जाते हैं. सबसे खास बात ये है कि ऐसे समुदायों के खिलाफ होने वाली बर्बरता को बहुसंख्यक लोग स्वीकार भी कर लेते हैं. एक तरह की सोच बनाई गई है कि अगर अल्पसंख्यकों के साथ कुछ हुआ है तो वो उतना बड़ा अपराध नहीं है. इन देशों के राजनेता भी ऐसे मामलों को वोट बैंक की नजर से ही देखते आए हैं. ऐसे मामले तभी सामने आते हैं जब यूएन जैसी कोई बड़ी संस्था या संगठन इस पर रिपोर्ट जारी करते हैं. ऐसी तमाम रिपोर्ट्स पर कुछ दिनों तक चर्चा होती है और फिर हमेशा की तरह लोग इसे भूल जाते हैं. शायद यही कारण है कि दुनिया में अल्पसंख्यकों की हालत सुधरने की बजाय लगातार बिगड़ती जा रही है.
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