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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

म्यांमार में तख्तापलट के पीछे क्या है चीन की चाल? बीजिंग को इससे क्या होगा हासिल?

चीन सू की को अपने पक्ष में करना चाहता था. चीन अपने रूके प्रोजेक्टों को बढ़ाना चाहता था. चीन इलाके में बाइडेन से पहले पहुंचना चाहता था. चीन इलाके में अपना दखल बढ़ाना चाहता था.

म्यांमार में वहां की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की को हिरासत में लेकर एक साल के लिए सोमवार को आपातकाल लगाने का ऐलान किया गया. इस तख्तापलट के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि ऐसा क्यों हुआ और क्या इसमें चीन अपने लिए क्या फायदा देख रहा है? चीन की इसके पीछे क्या चाल हो सकती है?

म्यांमार में तख्तापलट के पीछे चीनी साजिश

दरअसल, चीन सू की को अपने पक्ष में करना चाहता था. चीन अपने रूके प्रोजेक्टों को बढ़ाना चाहता था. चीन इलाके में बाइडेन से पहले पहुंचना चाहता था. चीन इलाके में अपना दखल बढ़ाना चाहता था. 11 जनवरी के दौरे में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने म्यांमार को कोरोना वैक्सीन देने वादा किया था. लेकिन वक्त पर वैक्सीन नहीं पहुंचाई. लेकिन म्यांमार में वैक्सीन पहुंची भारत की जो लगनी भी शुरू हो गई. ये म्यांमार की भारत के साथ दोस्ती दिखाती है. इस पूरे इलाके में अमेरिका ने भी अपनी मौजूदगी बढ़ाई है. हिंद-प्रशांत महासागर इलाके में अमेरिका ने  अपने युद्धपोत तैनात किए हुए है.

परेशान चीन ने सीनियर जनरल को बनाया मोहरा

चीन इन सब तरीकों से परेशान था तो उसने वही म्यांमार में सेना को समर्थन देने की तैयार कर ली और जिसका मोहरा बन गए सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग. म्यांमार के सेना प्रमुख...वो शख्स जिनके हाथ में अब सत्ता की कमान है और देश की विधायिका प्रशासन और न्यायपालिका की जिम्मेदारी. कहने के लिए एक कार्यकारी राष्ट्रपति भी हैं लेकिन सारी सत्ता इस वक्त सेनाप्रमुख मिन आंग लाइंग के पास है.

चीन ने कहा- म्यांमार पड़ोसी दोस्त

दुनिया आलोचना कर रही है पर चीन संविधान पर जोर देते-देते जनरल मिन का समर्थन करता नजर आ रहा है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा- म्यांमार चीन का पड़ोसी दोस्त है. हम उम्मीद कर रहे हैं कि म्यांमार में सारे दल अपने विरोधों को संविधान कौ कानूनी दायरे के तहत रहकर हल करेंगे और राजनैतिक और सामाजिक स्थिरता बनाए रखेंगे.

चीन के बयान का मतलब ये है कि वहां आंदोलन ना हो और जो भी फैसला हो वो संविधान के मुताबिक हो. भले ही म्यांमार में पिछले 10 साल से जनता की चुनी हुई सरकार का शासन रहा हो लेकिन वहां सत्ता का नियंत्रण कभी भी सेना के हाथ से छूटा नहीं था. वहां के संविधान ने सेना को ये ताकत दी है...वहां की सरकार कोई कानून ला तो सकती है लेकिन उसे लागू करने का काम सेना का है.

म्यांमार में सेना के पास काफी ताकत

म्यांमार में पुलिस, सशस्त्र बल और प्रशासनिक विभाग का नियंत्रण सेना के पास है. सेना के लिए संसद में 25 फीसदी सीटें रिजर्व रखी गई है. सरकार में रक्षा,गृह और सशस्त्र मामलों के मंत्री की नियुक्ति सेना करती है. सेना प्रमुख को किसी भी संवैधानिक बदलाव को वीटो करने का अधिकार है. देश की 2 बड़ी कंपनियों का स्वामित्व भी सेना के पास है.

यानि देश की चुनी हुई सरकार के पास सीमित अधिकार थे या यूं कहें कि दिखाने की ताकत थी. बिना सेना की मर्जी से वहां के प्रतिनिधि संविधान में कोई बदलाव नहीं कर सकते थे. लेकिन लगातार जनता के बीच आंग सान सू की की बढ़ती लोकप्रियता सैनिक अफसरों को परेशान कर रही थी और चीन को भी. इसलिए दुनिया के विरोध के बाद भी म्यांमार ने तख्तापलट का खतरा उठा लिया. अब म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की बात हो रही है तो साथ ही दूसरा डर पैदा हो गया है.

बाइडेन ने कहा- म्यांमार में हटे प्रतिबंध

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा, “अमेरिका ने म्यांमार से लोकतंत्र स्थापित होने के चलते प्रतिबंध हटाए थे....तख्तापलट के चलते बदले हालात में अब हम इसकी तुरंत समीक्षा करेंगे और इसके बाद कार्रवाई की जाएगी.” बाइडेन प्रशासन के सामने बड़े सवालों में से एक चीन के साथ सैन्य संबंध का सवाल है. सिर्फ पिछले चार साल में नहीं, सिर्फ ट्रंप के काल में नहीं बल्कि 10-15 साल में चीन अमेरिका के साथ दक्षिण पूर्व एशिया में प्रभाव और शक्ति के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहा है.

वहीं जापान के रक्षा विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि म्यांमार की सेना के साथ दुनिया को डिप्लोमेटिक चैनल बंद नहीं करना चाहिए नहीं तो म्यांमार पूरी तरह चीन के शिंकजे में फंस जाएगा. यानी दुनिया भी समझ रही कि तख्तापलट तो म्यांमार है लेकिन चाल चीन की है.

ये भी पढ़ें: म्यांमार में नई नहीं है तख्तापलट की तस्वीर, देश में सैन्य शासन का लंबा रहा है इतिहास

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