म्यांमार में तख्तापलट के बाद एक साल के लिए आपातकाल, भारत समेत दुनियाभर के देश चिंतिंत, जानें आखिर क्या है वजह
म्यांमार के शहर यंगून में जगह-जगह पुलिस तैनात है. वहां की सड़कें खाली हैं और गिने-चुने लोग ही सड़कों पर नजर आ रहे हैं. एयरपोर्ट के रास्ते को बंद कर दिया गया है.
भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में सेना ने तख्ता पलट कर एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया है. म्यांमार की सर्वोच्च नेता आंग सानू सू की, वहां के राष्ट्रपति यू विन म्यिंट को गिरफ्तार कर लिया है. दुनिया भर में इस कदम की आलोचना हो रहा है. लेकिन म्यामांर की सेना अड़ी हुई है और उसका दावा है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए ही उसे ये कदम उठाना पड़ा.
म्यांमार के शहर यंगून में जगह-जगह पुलिस तैनात है. वहां की सड़कें खाली हैं और गिने-चुने लोग ही सड़कों पर नजर आ रहे हैं. एयरपोर्ट के रास्ते को बंद कर दिया गया है. आपातकाल के ऐलान होते ही एटीएम के आगे लाइनें लगी हुई नजर आईं क्योकिं लोगों को डर है कि आने वाले दिनों में कैश का संकट हो सकता है. वहीं कुछ बैंकों ने आशंकाओं के चलते आर्थिक सेवाओं को भी रोक दिया है.
म्यांमार की सड़कों पर सन्नाटा म्यांमार की राजधानी नेपीटाव की सड़कों पर भी सैनिक और पुलिसबल मौजूद हैं. सड़कों पर अगर कोई नजर आ रहा है तो वो हैं सेना समर्थक दलों के सदस्य. जो अपने झंडे लेकर गाड़ियों में आपातकाल का जश्न मना रहे हैं. पूरे शहर में इस तरह की गाड़ियां दौड़ रही हैं. समझा जा रहा है कि इस तरह के प्रदर्शनों के जरिए सेना ये संदेश दिलाना चाहती है कि लोग उसके फैसले के समर्थन में हैं. सेना ने तख्तापलट के बाद पूर्व जनरल और उपराष्ट्रपति मिंट स्वे को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया गया है. संभावित विरोध को कुचलने के लिए सड़कों पर सेना तैनात है और फोन लाइनों और इंटरनेट को बंद कर दिया गया है. अंतर्राष्ट्रीय रेडियो और टीवी प्रसारण बंद कर दिए गए हैं. दुनिया का संपर्क म्यांमार के शहरों से कट गया है जिससे ये कहना मुश्किल हो गया है कि म्यामांर में हो क्या रहा है.
म्यांमार में तख्तापलट को समझने के लिए आपको म्यांमार के सत्ता के सूत्र समझने होंगे. इसमें एक छोर पर हैं नेता आंग सान सू की और दूसरी छोर पर हैं सेना प्रमुख मिन आंग हेल्यांग. आंग सान सू की और उनकी पार्टी लोकतंत्र की झंडाबरदार हैं और ये बात म्यांमार की सेना को रास नहीं आती जो वहां लंबे वक्त तक सत्ता में रही है.
50 साल तक सेना ने संभाली सत्ता
साल 2020 के नवंबर में हुए चुनावों में आंग सान सू की पार्टी म्यामांर नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रेसी ने बड़ी जीत हासिल की. सू की की पार्टी ने 476 में से 396 सीट हासिल की. लेकिन सेना ने आरोप लगाया कि चुनावों में धांधली हुई है. नए चुने गए सांसदों की आज ससंद में बैठक होने वाली थी जिसके ठीक पहले सेना ने तख्ता पलट कर दिया और सत्ता अपने हाथ में ले ली. दिलचस्प ये है कि म्यांमार में 1962 के तख्तापलट के बाद करीब 50 साल सेना ने सत्ता अपने हाथ में रखी. इस दौरान आंग सान सू की ने मिलिट्री सरकार के खिलाफ आंदोलन को नेतृत्व किया और कई साल जेल में बिताए.
लेकिन भारी अंतर्राष्ट्रीय दवाब और घरेलू आंदोलन के कारण 2008 में म्यामांर में संविधान का गठन किया गया. इस संविधान से सेना ने सत्ता अपने हाथ में रखने का जुगाड़ कर लिया था. 25 फीसदी सीटों का कोटा सेना के पास है. सेना प्रमुख ही बड़े मंत्रालयों में अपनी पसंद के मंत्री को नियुक्त करते हैं जैसे रक्षा, गृह जैसे मंत्रालय. सत्ता से बाहर रहकर भी सेना की पकड़ सत्ता से कभी कम नहीं हुई अब सू की लोकप्रियता देख फिर से सत्ता पर कब्जा कर लिया. सेना की योजना है कि अगले साल तक अपनी देखरेख में फिर से चुनाव कराया जाए. माना जा रहा है कि म्यांमार की सेना अपने मुताबिक प्रधानमंत्री को चुनना चाहती है ताकि कठपुतली सरकार के जरिए सत्ता चलाई जा सके.
भारत के लिए चिंता की बात म्यांमार में सेना के तख्तापलट की दुनिया भर में निंदा हो रही है. भारत भी म्यांमार के हालात पर नजर बनाए हुए हैं क्योंकि म्यांमार भारत का पड़ोसी है. दुनिया भर में इसे लोकतंत्र पर झटके की तरह देखा जा रहा है वहीं एक बार फिर आशंका सता रही है कि कहीं एक बार फिर रोहिंग्या संकट बढ़ ना जाए क्योंकि मौजूदा सेना प्रमुख पर रोहिंग्यांओं पर अत्याचार के आरोप लगते रहे हैं.
म्यांमार के घटनाक्रम पर गहरी चिंता के साथ हम नजर बनाए हुए हैं. म्यांमार में लोकतांत्रिक परिवर्तन की प्रक्रिया का भारत हमेशा समर्थक रहा है. हमारा मानना है कि कानून का शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखना चाहिए. वहीं चीन भी म्यांमार के हालात पर नजर बनाए हुए हैं क्योंकि चीन ने भी म्यांमार में बड़ा निवेश किया हुआ है. अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन को भी म्यांमार के हालात के बारे में बता दिया गया है. वहीं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने तख्तापलट की निंदा की है और कहा है कि हिरासत में लिए गए नेताओं को तुरंत छोड़ा जाना चाहिए. कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया ऑस्ट्रेलिया ने भी दी है.
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