PFI Ban: केंद्र की मोदी सरकार ने देशभर में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के आतंकी गतिविधियों में सक्रिय होने के सबूत मिलने के बाद बड़ा एक्शन लेते हुए पांच साल के लिए बैन कर दिया. लंबे समय से पीएफआई को बैन करने की मांग की जा रही थी. इसी सिलसिले में पिछले दिनों देशभर मे पीएफआई के कई ठिकानों पर छापेमारी की गई थी, जिसके बाद उसके नेताओं को गिरफ्तार किया गया था. यही नहीं पीएफआई का आधिकारिक ट्विटर हैंडल भी बैन कर दिया गया है. भारत सरकार द्वारा संगठन को प्रतिबंधित किए जाने के बाद ट्विटर ने यह कार्रवाई की.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पीएफआई के साथ ही उससे जुड़े 8 सहयोगी संगठनों को भी देश में बैन कर दिया है. बैन होने वाले 8 संगठनों में एम्पावर इंडिया फाउंडेशन, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन इंडिया, रिहैब फाउंडेशन केरल, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया और नेशनल वीमेन फ्रंट शामिल हैं. वहीं इसके अलावा रिपोर्ट्स की मानें तो पीएफआई का संबंध सिमी जैसे आतंकी संगठन से भी जुड़ चुका है.
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के भारत में बैन को लेकर कई पार्टियों ने तारीफ की तो कई ने इसको लेकर संघ पर भी बैन करने की मांग की, लेकिन पीएफआई पर बैन को लेकर मुस्लिम देशों में नाराजगी है. मुस्लिम देशों के मीडिया ने बैन को लेकर प्रतिक्रिया दी है, जिसमें मोदी सरकार की आलोचना की गई है. आइए देखते हैं किस देश की मीडिया ने बीजेपी सरकार को लेकर क्या कहा है.
पाकिस्तानी अखबार डॉन
पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के बैन पर मिलीजुली प्रतिक्रिया दी है. डॉन ने कहा है कि पीएफआई मोदी सरकार के खिलाफ देश में हो रहे ऐसे प्रदर्शनों को सहयोग करता है, जिसे मुस्लिम भेदभाव के नजरिए से देखते हैं. डॉन ने उदाहरण दिया कि जैसे 2019 में भारत में हुए एंटी सीएए प्रदर्शन और साल 2022 में कर्नाटक में हिजाब को लेकर हुए मुस्लिम महिलाओं के प्रदर्शन को पीएफआई ने सहयोग किया था.
डॉन ने कहा, भारत की कुल 140 करोड़ की आबादी में 13 फीसदी मुसलमान हैं. इसमें में ज्यादातर मोदी सरकार में धर्म के नाम पर नजरअंदाज किए जाने की शिकायत करते हैं.
डॉन ने आगे कहा है, हालांकि मोदी सरकार की पार्टी मुसलमानों के साथ भेदभाव के आरोपों को हमेशा खारिज करती आई है. वहीं मुसलमानों के साथ भेदभाव के मुद्दे पर मोदी सरकार उन आंकड़ों पर बात करती है जिसमें कहा जाता है कि सरकार की योजनाओं का फायदा सभी धर्मों के लोगों को बपाबरी के साथ मिलता है.
अरब न्यूज़ ने क्या कहा
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के बैन को लेकर अरब न्यूज़ ने कहा कि पीएफआई पर बैन के लिए कई कट्टरपंथी हिंदू ग्रुप लंबे समय से मांग कर रहे थे. खबर में आगे कहा गया है कि मोदी सरकार पर 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाली नीतियों को लाने के आरोप लगते रहे हैं. हाल ही में पीएफआई पर कर्नाटक में मुसलमान लड़कियों के हिजाब बैंन को लेकर रैलियों के जरिए हिंसा करवाने का आरोप लगाया गया था.
अल-जजीरा ने क्या कहा
प्रसिद्ध अल-जजीरा ने पीएफआई पर बैन को लेकर कहा है कि भरतीय जनता पार्टी हमेशा मुसलमानों के साथ हो रहे भेदभाव के दावों को खारिज करती आई है. अल-जजीरा ने आगे कहा, आलोचकों का मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली जीत ने गृह मंत्रालय और जांच एजेंसियों तो पावर दी कि वो किसी भी व्यक्ति को आरोपों के आधार पर आतंकी ठहरा सकें.
अल-जजीरा ने आगे कहा है, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया प्रतिबंध यूएपीए कानून के तहत किया गया है. यूएपीए एक्ट भारत सरकार को देश में संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ काम करने वालों पर कार्रवाई करने को लेकर एजेंसियों को ताकत देता है.
पीएफआई के बढ़ने का कारण
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को एक कट्टर विचारधारा वाले संगठन के तौर पर माना जाता है. इसके काम करने का तरीका भी अन्य संगठनों से अलग है. वर्तमान समय में पीएफआई का असर भारत के 16 राज्यों में है, वहीं 15 से भी ज्यादा मुस्लिम संगठन इससे जुड़े हुए हैं, जिनके साथ मिलकर ये काम करता है.
पीएफआई के देशभर में लाखों की संख्या में सदस्य हैं. यही सदस्य संगठन की ताकत हैं. हालांकि पीएफआई दावा करता है कि उसका 23 राज्यों में प्रभाव है. पीएफआई के कार्यकर्ता लगातार असम, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, केरल, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सक्रिय हैं. पीएफआई की संदिग्ध गतिविधियों के कारण इसे कई राज्यों में प्रतिबंधित करने की मांग की जाती है.
27 राजनीतिक हत्याओं में शामिल
पीएफआई पर आरोप है कि जब देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी पर प्रतिबंध (2001) लगा दिया गया तो इसके ज्यादातर नेताओं ने पीएफआई का दामन थाम लिया. पीएफआई शुरुआत से ही विवादों में रहा, उस दौरान भी उसपर सांप्रदायिक दंगे भड़काने और नफरत फैलाने के आरोप लगते रहे हैं.
गौरतलब है कि 2014 में केरल हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने एक हलफनामा दायर किया, जिसके मुताबिक पीएफआई के कार्यकर्ता केरल में 27 राजनीतिक हत्याओं के जिम्मेदार थे. वहीं हलफनामें में यह भी कहा गया है कि यह संगठन केरल में हुई 106 सांप्रदायिक घटनाओं में किसी न किसी रूप में शामिल था.
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