अंतरिक्ष की गहराइयों से आया पृथ्वी पर सिग्नल, एलियंस ने भेजा मैसेज या कुछ और है मामला? यहां जानिए
Space News: नासा ने अंतरिक्ष में ढेर सारे मिशन लॉन्च किए हुए हैं, जिनके जरिए ब्रह्मांण की स्टडी की जा रही है. कई सारे मिशन एलियंस की तलाश के लिए भी चल रहे हैं.
NASA News: दुनियाभर में स्पेस एजेंसियां एलियंस की तलाश में दिन-रात जुटी हुई हैं. लेकिन कामयाबी अभी तक किसी को नहीं मिल पाई है. हालांकि, इस बीच अंतरिक्ष की गहराइयों से पृथ्वी पर एक मैसेज आया है. कुछ लोगों ने इस मैसेज को एलियंस का संदेश बताया है. हालांकि, सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है, क्योंकि ये मैसेज हमें मंगल ग्रह पर बसने में मदद करने वाला है. अंतरिक्ष से पृथ्वी पर भेजे गए इस मैसेज का संबंध अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा से है.
दरअसल, नासा ने इस साल अक्टूबर में साइक मिशन को लॉन्च किया. इसके जरिए मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच चक्कर लगा रहे एक ऐसे एस्टेरॉयड तक जाया जा रहा है, जो धातुओं से भरा हुआ है. लॉन्चिंग के एक महीने के भीतर इस मिशन ने बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए लेजर कम्युनिकेशन का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है. लेजर कम्युनिकेशन को संचार के सबसे अडवांस्ड तरीकों में से एक माना जा रहा है, जिसके जरिए दूर-दराज के ग्रहों पर संपर्क किया जा सकेगा.
नासा की टेस्टिंग का हिस्सा था सिग्नल
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के साइक मिशन के जरिए 'डीप स्पेस ऑप्टिकल कम्युनिकेशन' (DSOC) टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन किया गया. इस टेक प्रदर्शनी के जरिए अमेरिकी स्पेस एजेंसी के हाई-बैंडविथ लेजर कम्युनिकेशन के सबसे दूर तक भेजे गए सिग्नल की टेस्टिंग की गई. DSOC के जरिए नियर-इंफ्रारेड लेजर के सहारे पृथ्वी पर डेटा भेजा गया और उसे हासिल किया गया. इस डाटा को साइक मिशन के जरिए अंतरिक्ष में भेजे गए उपकरणों की मदद से भेजा गया.
साइक मिशन में इस्तेमाल हो रहे उपकरणों में लगे लेजर ने बेहतर ढंग से मैसेज भेजने का काम किया. अभी नासा अपने स्पेसक्राफ्ट से संपर्क करने के लिए रेडियो वेव सिस्टम का इस्तेमाल करता है. हालांकि, लेजर कम्युनिकेशन के जरिए डाटा को 10 से लेकर 100 गुना ज्यादा रफ्तार से भेजा जा सकता है. नासा के वैज्ञानिकों ने इस सफलता को 'फर्स्ट लाइट' बताया है. साइक मिशन ने डाटा को पृथ्वी से 1.6 करोड़ किलोमीटर की दूरी से भेजा है.
क्यों लेजर कम्युनिकेशन बहुत जरूरी है?
दरअसल, अगर इंसानों को पृथ्वी के अलावा दूसरे ग्रह पर बसना है, तो उन्हें ऑक्सीजन और पानी के साथ-साथ कम्युनिकेशन भी बेहतर व्यवस्था करनी होगी. कम्युनिकेशन सिस्टम ऐसा होना चाहिए, जिसके जरिए पृथ्वी से आसानी से संपर्क किया जा सके. अभी पृथ्वी के अलावा मंगल ग्रह पर बसने की तैयारी हो रही है. वर्तमान लाल ग्रह से पृथ्वी पर किसी मैसेज को आने में 5 से 20 मिनट लगते हैं. ऐसे में लेजर कम्युनिकेशन से मैसेज चुटकियों में भेजे जा सकेंगे.
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