इस्लामाबाद: पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जीवनभर चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दिया, यानी अब शरीफ आजीवन कोई सार्वजनिक पद नहीं संभाल पाएंगे. यह ऐतिहासिक फैसला देश की राजनीति की दिशा बदलने वाला है. 'डॉन' ऑनलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायाधीश उमर अता बांदियाल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने एकमत से यह फैसला सुनाया.
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, अदालत ने पिछले साल जुलाई में भ्रष्टाचार के आरोप को लेकर प्रधानमंत्री के तौर पर शरीफ को अयोग्य घोषित कर दिया था, लेकिन उस फैसले में अयोग्यता की अवधि का उल्लेख नहीं किया था. सभी पांचों न्यायाधीशों ने एकमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि जो लोग देश के संविधान के प्रति ईमानदार और सच्चे नहीं हैं, उन्हें जीवन भर के लिए संसद से प्रतिबंधित रखना चाहिए.
सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने इस फैसले को अस्वीकार करते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री को आतंकवाद का सफाया और विकास परियोजनाओं को शुरू करने की सजा मिली है. पीएमएल-एन की सूचना राज्य मंत्री मरयम औरंगजेब ने कहा, "यह फैसला एक मजाक है और पिछले प्रधानमंत्रियों के साथ भी हो चुका है."
शरीफ के अलावा पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता जहांगीर तरीन को भी जीवन भर के लिए अयोग्य घोषित किया गया है. फैसले में कहा गया है कि अनुच्छेद 62 (1) (एफ) के तहत किसी भी सांसद या किसी लोक सेवक की अयोग्यता स्थाई होगी. ऐसा व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता है या संसद का सदस्य नहीं बन सकता है.
गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री शरीफ को अपने चुनावी नामांकन-पत्र में संयुक्त अरब अमीरात में अपने बेटे की कंपनी की आय का जिक्र नहीं करने का दोषी पाते हुए पद से अयोग्य करार दे दिया गया था. इसी तरह तरीन को भी दिसंबर में अपने चुनावी नामांकन-पत्र में एक विदेशी कंपनी और विदेश में संपत्ति होने की जानकारी न देने के लिए पद से अयोग्य घोषित किया गया था. इस फैसले के बाद तरीन ने ट्विटर पर कहा कि जीवनभर अयोग्य रहने का फैसला इस मामले पर लागू नहीं होता है. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने इस फैसले की तारीफ की है.
पीपीपी के नेता खुर्शीद शाह ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला सुनाया है, वह 'संविधान के अनुरूप' है. पीपीपी ने बार-बार शरीफ से कहा था कि राजनेताओं के भाग्य का फैसला संसद को करने दिया जाए, "लेकिन उन्होंने नहीं सुनी और वह शीर्ष अदालत चले गए." पीएमएल-एन के कार्यकर्ताओं ने इस फैसले के बाद शीर्ष अदालत परिसर में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया.