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Nelson Mandela Birthday: नेल्सन मंडेला 'भारत रत्न' पाने वाले पहले गैर भारतीय, जानिए उनके बारे में 10 बड़ी बातें

Nelson Mandela: मंडेला ने अपने जीवन काल में बहुत से समाज सुधार के काम किए थे. जिनमें दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में रंगभेद (apartheid) के खिलाफ आंदोलन सबसे प्रमुख काम था.

Nelson Mandela Day: आज नेल्सन मंडेला का जन्मदिन (Nelson Mandela Birthday) है. ये वो नाम है जो पूरी दुनिया में किसी परिचय का मोहताज नहीं है. 18 जुलाई साल 1918 को नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela) का जन्म हुआ दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में हुआ था. राजनीतिज्ञ (Politician) के अलावा मंडेला एक सोशल एक्टिविस्ट (Social Activist) थे.  वो महात्मा गांधी की तरह अहिंसावादी समर्थक थे. ऐसा कहा जाता है कि नेल्सन मंडेला और महात्मा गांधी के विचार काफी मिलते-जुलते थे. मंडेला ने गांधी को अपना आदर्श माना था. मंडेला ने अपने जीवन काल में बहुत से समाज सुधार के काम किए थे. जिनमें दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में रंगभेद (apartheid) के खिलाफ आंदोलन सबसे प्रमुख काम था. नेल्सन मंडेला के व्यक्तित्व के बारे में कोई क्या बताएगा उनके किए गए काम ही उनके व्यक्तित्व की गवाही देते हैं. नेल्सन मंडेला को 250 से भी ज्यादा प्रतिष्ठित अवॉर्ड उनके बेहतरीन कामों के लिए दिया गया है. मंडेला पहले गैर भारतीय शख्स हैं जिन्हें 'भारत रत्न' का सम्मान भी दिया गया है.

इसमें दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड नोबेल प्राइज भी शामिल है. साल 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रंगभेद के खिलाफ किए गए मंडेला के संघर्ष को याद करते हुए उनके जन्मदिन को 'मंडेला दिवस' घोषित कर दिया था. जब मंडेला महज 12 वर्ष की तरुणावस्था में थे तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया था. यही वो वजह थी कि वो समय से पहले ही परिपक्व हो गए थे. बचपन में ही पिता के गुजर जाने के बावजूद उन्होंने अपनी स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर ली थी. मंडेला आजीविका की तलाश में साल 1941 में अपना गांव छोड़कर जोहांसबर्ग चले गए जहां उन्होंने एक लॉ फर्म में नौकरी की. मंडेला ने बचपन से ही अश्वेत होने की वजह से रंगभेद देखा था. बड़े होने पर उन्होंने नौकरी के दौरान भी नस्लभेद के कटु अनुभव हुए.आइए आपको मंडेला के जीवन की वो बड़ी घटनाएं जिन्होंने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया. इसके अलावा हम आपको मंडेला के अमूल्य विचारों के बारे में भी आपको बताते हैं. 

जब श्वेत टाइपिस्ट ने मंडेला से शैंपू मंगवाया
मंडेला एक कंपनी में बतौर टाइपिस्ट काम करते थे. इसी कंपनी में एक श्वेत महिला टाइपिस्ट थी एक बार मंडेला से वो टाइपिंग के बारे में कुछ सीख रही थी तभी एक अंग्रेज क्लाइंट वहां आ गया और महिला ने तुरंत ही स्थिति को भांपते हुए मंडेला को पैसे दिए और कहा जाओ मेरे लिए एक शैंपू लेकर आओ. इस घटना के बाद मंडेला को ये बात पूरी तरह से समझ में आ चुकी थी कि दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की जड़ें कितनी गहरी हैं.

वो घटना जिससे मंडेला रंगभेद के खिलाफ प्रेरित हुए
जून 1873 जब महात्मा गांधी एक मुकदमा लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए. श्वेत टीटी ने एक काले आदमी को फर्स्ट क्लास के डिब्बे में देखकर आपत्ति जताई, जब गांधी ने टिकट का हवाला देते हुए थर्ड क्लास में जाने से मना किया तो टीटी ने उनका सामान उठाकर बाहर फेंक दिया और उन्हें भी डिब्बे से बाहर उतार दिया. यही वो समय था जब अंग्रेजों के खिलाफ अश्वेतों को लड़ने के लिए प्रेरित किया था. मंडेला भी इस घटना से अश्वेतों के खिलाफ हो रहे जुल्मों पर आवाज उठाने के लिए प्रेरित हुए थे.

1944 में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के सदस्य बने
मंडेला ने अश्वेतों के खिलाफ हो रहे जुल्मों से निजात पाने की ठान ली थी. साल  1944 में मंडेला अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के सदस्य बने. वो साधारण तरीके से भाषण देते थे उनके भाषणों में न तो कोई जुनून होता था और न ही कोई हिंसात्मक उकसावा फिर भी जनता उनसे बड़ी जल्दी जुड़ जाती थी. धीरे-धीरे मंडेला की लोकप्रियता पार्टी के भीतर और बाहर भी बढ़ने लगी. देखते ही देखते वो पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बन गए. एक अश्वेत की इतनी तेजी से बढ़ती लोकप्रियता तत्कालीन सरकार को रास नहीं आई और आंदोलनों की वजह से उनके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें 5 साल की सजा सुनाई गई.  

शुरुआती दौर में मंडेला को भी हिंसा में था यकीन
जब मंडेला अपनी युवावस्था में थे उस दौरान उनकी भी सोच हिंसात्मक रही थी. वो भी दूसरे क्रांतिकारियों की तरह इस बात में यकीन रखते थे कि जो चीज मांगने से न मिले उसे हथियार का इस्तेमाल कर छीन लिया जाए. जब वो 5 साल की सजा काटकर बाहर आए तो उन्होंनें एक बार फिर हिंसा का मार्ग चुना और इस बार देशव्यापी हड़ताल करवाई जिसके बाद सरकार को मौका मिल गया और इस बार सरकार ने उन्हें राजद्रोह के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई और वो 27 सालों तक जेल में रहे.  

जेल में रहते हुए पढ़ा गांधी और अहिंसावाद
कहते हैं एक इंसान के स्वभाव को बदलने के लिए कुछ समय ही काफी होता है. जब मंडेला 27 साल के बाद जेल से बाहर आए तो वो पूरी तरह से बदल चुके थे. इसके पीछे की वजह ये थी कि उन्होंने जेल में रहने के दौरान अहिंसा और गांधी को लेकर बहुत कुछ पढ़ा और उस पर अमल किया. उन्होंने सीखा कि हिंसा के मुक़ाबले अहिंसावादी विरोध कहीं ज़्यादा प्रभावी होता है. हिंसक विरोध में काबिल लड़ाकों की जरूरत होती है जबकि अहिंसक विरोध में कोई भी आ सकता है चाहे वो बुजुर्ग हो, महिला हो, विकलांग हो या फिर बच्चा हो. महात्मा गांधी के पीछे भी अहिंसावादियों का बड़ा हुजूम चलता था यही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी. 

अहिंसक आंदोलनों से सरकारें भी डरती हैं
मंडेला जेल में रहते हुए गांधी और अहिंसा को पढ़कर ये बात अच्छी तरह से जान चुके थे कि सरकार भी अहिंसक आंदोलनों से डरती है. क्योंकि सरकारों को अहिंसक आंदोलनों को कुचलने का कोई बहाना नहीं मिलता है. अगर वो आंदोलनकारियों का दमन करते हैं तो चौतरफा आलोचना का शिकार होते हैं. इस वजह से मंडेला ने अपना सारा जोर जनता तक अपनी बात और अपने विचारों को पहुंचाने में लगाया. 

मंडेला ने जनता को समझाई अहिंसा की ताकत
मंडेला अब तक ये बात पुरी तरह से समझ चुके थे कि कोई उनके अहिंसक आंदोलन को नहीं कुचल सकता उन्होंने जनता को बताया कि 'अगर दबे-कुचले लोगों ने जन विरोधी सत्ता को उखाड़ फेंकने का संकल्प ले लिया, तो फिर उनके आंदोलन को दुनिया की कोई ताकत नहीं मिटा सकती. जब सरकार शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दे, तो मान लेना चाहिए कि हुक्मरानों को उस आंदोलन की शक्ति समझ में आ गई है.'

मंडेला ने जनता को बताया अहिंसा का सबसे जरूरी मंत्र
मंडेला ने जनता को अहिंसा के बारे में बताया और अहिंसा का सबसे जरूरी मंत्र बताते हुए जनता को अपने समर्थन में लिया. मंडेला ने कहा, आत्म नियंत्रण अहिंसा का सबसे जरूरी मंत्र है. कोई आपको कितना भी उकसाए आपको अपने ऊपर नियंत्रण रखना है. जेल में रहते हुए मंडेला ने अपने ऊपर भी ये नियम लागू किया और कामयाब हुए. मंडेला ने अपने विरोधियों यानि अंग्रेजों को भी समझने की कोशिश शुरू कर दी और अफ्रीकी लोगों के बारे में कई किताबें पढ़ीं. 

जेल से आने के बाद जीता 'गोरों' का भरोसा
नेल्सन मंडेला जब 27 साल बाद फरवरी 1990 में जेल से बाहर आए, तो अश्वेतों ने उनका बड़ा जोरदार स्वागत किया. उनकी रैलियों में ज्यादातर अश्वेत लोगों का जमावड़ा होता था लेकिन वो इस दौरान श्वेत यानि कि गोरे लोगों का भी भरोसा जीतने में कामयाब रहे. उनकी रिहाई के दो साल बाद यानि साल 1992 में दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद संबंधी जनमत संग्रह हुआ. करीब 33 लाख श्वेत वोटरों से पूछा गया कि क्या वे रंगभेद का कानून खत्म करना चाहते हैं. इनमें से 69 फीसदी ने इसे खत्म करने का समर्थन किया. तब तक मंडेला श्वेत लोगों में भी काफी लोकप्रिय हो चुके थे. 

पत्रकार जॉन कार्लिन ने बताया मंडेला कैसे बने इतने महान
साल 1995 जून का महीना और जोहांसबर्ग (johannesburg) के रग्बी स्टेडियम (rugby stadium) में जब नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela) पहुंचे तब हजारों श्वेत पुरुषों और महिलाओं ने उनका जोरदार स्वागत किया और पूरा स्टेडियम 'नेल्सन, नेल्सन' के नारों से गूंज गया. आपको बता दें कि ये वही भीड़ थी जो कभी मंडेला को आतंकवादी मानती थी. नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela) इतने महान कैसे बने? इस बात को ब्रिटिश पत्रकार जॉन कार्लिन (British journalist John Carlin) बताते हैं कि 'मंडेला ने उन लोगों में अच्छाइयां देखीं, जिनके बारे में 100 में से 99 लोगों का कहना था कि वे कभी सुधर नहीं सकते.'

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