नई दिल्ली: पड़ोसी देश नेपाल में आया राजनीतिक संकट फिलहाल थमता दिख रहा है. प्रधानमंत्री के.पी.ओली ने साफ कर दिया है कि वह तत्काल इस्तीफा नहीं देने वाले और संसद का सामना करने के बारे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करेंगे. यह भारत के लिए शुभ संकेत है क्योंकि कूटनीतिक व सामरिक दृष्टि से यह जरुरी है कि वहां राजनीतिक स्थिरता बनी रहे.


चीन ने नेपाल की अंदरुनी राजनीति में दखलदांजी देने की भरपूर कोशिश की है लेकिन ओली के बदले तेवरों से साफ हो गया है कि वे चीन की गोद में नहीं बैठने वाले. उन्होंने भारत को अपना सबसे करीबी सहयोगी बताकर चीन को स्पष्ट संदेश दे दिया है.


वैसे ओली को चीन समर्थक माना जाता रहा है लेकिन हाल ही में उन्होंने चीन के प्रति जिस तरह से अपना रुख बदला है, उसकी बड़ी वजह यह भी बताई जा रही है कि वे अब भारत से नजदीकियां बढ़ाकर पार्टी के नाराज कैडर और वहां की जनता का भरोसा जीतना चाहते हैं.


उल्लेखनीय है कि नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आदेश दिया था कि संसद की भंग की गई प्रतिनिधि सभा को बहाल किया जाये. प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने पिछले साल 20 दिसंबर को संसद की प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया था और इस साल 30 अप्रैल से 10 मई के बीच नए सिरे से चुनाव कराने की घोषणा की थी.


प्रतिनिधि सभा  भंग होते ही चीन सक्रिय हो उठा था और दो दिन बाद ही नेपाल में चीन की राजदूत हाओ यांकी ने राष्ट्रपति भंडारी से मुलाक़ात की थी. राजनीतिक संकट के बीच हुई यह मुलाक़ात काफी चर्चा में रही और भारत के लिए भी यह चिंता का विषय था. क़रीब एक घंटे तक चली इस मुलाक़ात को नेपाल के आंतरिक मामलों में चीन के दख़ल के तौर पर भी देखा गया.


आमतौर पर राजनयिक अधिकारी अपनी पोस्टिंग वाले देश की आंतरिक राजनीति से दूर ही रहते हैं. लेकिन चीन की राजदूत हाओ यांकी पहले भी नेपाल के नेताओं के साथ अपनी मुलाक़ात की वजह से सुर्ख़ियां बटोरती रहीं हैं. हालांकि तब भारत ने नेपाली पीएम के संसद को भंग करने के फैसले को नेपाल का 'आंतरिक मामला' बताया था.


गौरतलब है कि नेपाल की राजनीति में केपी ओली और कमल दहल प्रचंड के बीच की दूरी पिछले कुछ महीनों में ज़्यादा बाहर निकल कर सामने आई है. ओली और प्रचंड के बीच वर्चस्व की लड़ाई है, जिसमें पार्टी पर मज़बूत पकड़ रखने वाले प्रचंड से प्रधानमंत्री ओली को ज़बरदस्त टक्कर मिल रही है.


वैसे ओली के ही कार्यकाल में नेपाल का नया नक्शा जारी किया गया था जिसमें भारत के लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को दिखाया गया था. वहीं, चीन ने हुमला में नेपाल की कई किलोमीटर जमीन पर अपना कब्जा किया हुआ है.


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