नेपाल में मतगणना के शुरुआती रुझान सामने आ गए. इस रुझानों को देखते हुए एक तरफ जहां सत्ताधारी पार्टी के दोबारा सरकार बनाने की संभावना जताई जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ एक ऐसी पार्टी सामने उभर कर आई जिसने नेपाल के बड़े दलों और पुरानी पार्टियों को गंभीर चुनौती दे दी. दरअसल नेपाल के तेज तर्रार पत्रकार के रूप में मशहूर रहे रवि लामिछाने की राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी ने जोरदार मौजूदगी दर्ज करते हुए चौथी बड़ी पार्टी बनने जा रही है. इन सब के बीच दिलचस्प बात ये है कि ये पार्टी केवल पांच महीने पुरानी है.
रवि लामिछाने किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि से नहीं आते बल्कि वह सत्ता के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले एक बेहद चर्चित टीवी होस्ट हैं. जिन्हें अपने तीखे इंटरव्यू के लिए जाना जाता है. वह सबसे पहली बार साल 2013 में चर्चा में आए थे जब उन्होंने सबसे लंबे टॉक शो का विश्व रिकॉर्ड बनाने की कोशिश की थी.
इसके अलावा रवि लामिछाने ने नेपाल की कई बड़े नेताओं और सरकारी अधिकारियों पर स्टिंग ऑपरेशन भी किया है. वह अपने देश के ना सिर्फ चहेते पत्रकार हैं बल्कि वह भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले पत्रकार के रूप में भी मशहूर हैं.
कैसे शुरू हुआ राजनीतिक सफर
किसने सोचा होगा की एक युवा पत्रकार चुनाव से चार महीने पहले एक पार्टी का गठन कर चुनाव में उतरेगा और उसी रफ्तार में जनता के बीच अपनी जगह बनाने में भी कामयाबी पा लेगा. उनकी राजनीति में बिल्कुल किसी फिल्म की कहानी की तरह है.
पत्रकार रवि ने साल 2022 में गैलेक्सी 4 के टीवी के प्रबंध निदेशक के पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया था. ऐलान के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी बनाई और लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी उतार दी. लामिछाने ने चितवन संसदीय सीट पर सत्ताधारी नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार और केंद्र में मंत्री रहे एक पुराने नेता हरा कर अपनी जीत दर्ज कर ली है.
रवि लामिछाने ने मतदान होने के कुछ दिन पहले एक वीडियो जारी कर जनता से जुड़ने की कोशिश की थी. उन्होंने वीडियो में बताया था कि वह प्रांतीय चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े नहीं कर रहे हैं. इसके पीछे का कारण है कि उन्हें मौजूदा प्रांतीय व्यवस्था से हमेशा एतराज रहा है.
पांच महीने में बनाई जगह
पत्रकार रवि लामिछाने के पार्टी की सबसे दिलचस्प बात ये है कि इस पार्टी को चुनाव से केवल पांच महीने पहले बनाया गया था और अब तक राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के पांच और उम्मीदवार जीत दर्ज कर चुके हैं. वहीं चार अन्य उम्मीदवार जीत के मुहाने पर हैं. नेपाल में संसदीय सीटों का आवंटन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर होता है. यही कारण है कि पत्रकार रवि लामिछाने की पार्टी को संसद में और भी कई सीटें मिल सकती हैं और वह इस देश की चौथी या तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है.
एनआईपी ने इन मुद्दों को किया चुनाव में शामिल
पत्रकार रवि लामिछाने की पार्टी ने चुनाव से पहले उन सभी मुद्दों को उठाया जिससे जनता खुद को जोड़ सके. उनके चुनाव प्रचार के दौरान महंगाई के साथ-साथ भ्रष्टाचार के मुद्दे को जमकर उठाया.
एनआईपी ने देश की अर्थव्यवस्था की हालत, बढ़ती बेरोजगारी जैसे तमाम मुद्दे उठाए जिससे नेपाल की जनता परेशान है. नेपाल की अर्थव्यवस्था की बात करें तो वर्तमान में उथल पुथल मची हुई है. कोरोना महामारी के बाद इस देश के पर्यटन उद्योग की भी हालत खराब हो गई.
नए सिद्धांत के लागू होने के बाद दूसरा आम चुनाव
नेपाल में ये चुनाव इस लिहाज से भी बेहद जरूरी है क्योंकि साल 2015 में देश का नया संविधान लागू होने के बाद से यह दूसरा आम चुनाव है. नेपाल की संसद में कुल 275 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 165 सीटों की जरूरत होती है.
इन 165 सीटों के लिए मैदान में कुल 2412 उम्मीदवार हैं. जिनमें से 2187 पुरुष और 225 महिलाएं हैं. बाकी 110 सीटों पर आनुपातिक प्रतिनिधि (प्रोपोर्शनल रीप्रेज़ेंटेशन) व्यवस्था के तहत सदस्यों का चुनाव होगा.
अभी नेपाल में है किसकी सत्ता
वर्तमान में यहां नेपाली कांग्रेस सत्ता में है और शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री हैं. मतगणना के दौरान आ रहे रुझान को देखें तो चुनाव में दो चेहरों के बीच जोरदार टक्कर है. शेरबहादुर देउबा के नेतृत्व में सत्तारुढ़ नेपाली कांग्रेस गठबंधन और मुख्य विपक्षी नेता केपी ओली के बीच मुख्त मुकाबला होता नजर आ रहा है.
देउबा के इस गठबंधन में देउबा की पार्टी नेपाली कांग्रेस, प्रचण्ड की पार्टी माओवादी केंद्र, माधव नेपाल की यूनीफाइड सोशलिस्ट पार्टी, महन्थ ठाकुर की लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी शामिल है. दूसरी तरफ ओली के नेतृत्व में नेपाल कम्यूनिष्ट पार्टी और उपेन्द्र यादव के नेतृत्व वाली जनता समाजवादी पार्टी ने गठबंधन किया है.
बदलती रही है सरकारें
भारत के पड़ोसी देश नेपाल में लोकतंत्र स्थापित होने के 32 सालों में यहां 32 सरकारें रही हैं. यहां साल 1990 में लोकतंत्र की स्थापना हुई थी और साल 2008 में राजशाही को खत्म कर दिया गया था. इस देश में साल 2008 के बाद से अब तक पिछले चौदह सालों में दस सरकारें आईं-गईं हैं. इस देश में बदलते गठबंधनों और सरकारों ने लोगों में राजनीतिक व्यवस्था के प्रति निराशा को जन्म दिया है. इसी के जवाब में इस बार हुए चुनाव के दौरान कई नए चेहरे पुराने राजनेताओं को टक्कर देने के लिए मैदान में उतरे हैं.
नेपाल चुनाव पर क्यों टिकी हैं नजरें
आज के मतगणना के बाद नेपाल में किस पार्टी की जीत होती है उस पर ना सिर्फ भारत की ही बल्कि चीन और अमेरिका की भी नजरें टिकी हुई है. चीन के साथ अपनी बढ़ती प्रतिस्पर्धा को देखते हुए अमेरिका इस देश में अपनी पैठ जमाने और दबदबा बढ़ाने की कोशिश में लगा हुआ है. भारत और चीन के साथ तो नेपाल जुड़ा हुआ है ही लेकिन अमेरिका भी अब इस देश के साथ 50 करोड़ डॉलर के अमेरिका समर्थित मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) में शामिल है.