Nepal: नेपाल के राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने नागरिकता कानून में संशोधन वाले विधेयक को मंजूरी दे दी. इस बात की जानकारी राष्ट्रपति के कानूनी सलाहकार बाबूराम कुंवर ने मीडिया को दी. नेपाल में नए नागरिकता कानून में संशोधन की मंजूरी मिलने के बाद विवाद बढ़ गया है. आशंका है कि इस बिल को मंजूरी ,मिलने के बाद चीन भड़क सकता है , ऐसे में चीन और नेपाल के रिश्तों में खटास आ सकती है.
इस कानून में संशोधन को लेकर लंबे समय से चर्चा चल रही थी. काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले नेपाल की पूर्व राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने संसद द्वारा दूसरी बार भेजे जाने के बावजूद इसे मंजूरी नहीं दी थी. हालांकि अब इसे मंजूरी मिल गई है. रिपोर्ट के अनुसार, बिल के पारित होने से उन 400,000 लोगों के लिए नागरिकता का रास्ता साफ हो गया है जो अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित हैं और अपने ही देश में स्टेटलेस हैं.
नए नागरिकता कानून के फायदे
साल 2006 में नेपाल में राजशाही का पतन हुआ, जिसके बाद उसकी शासन प्रणाली में लोकतांत्रिक रूप से परिवर्तन के बाद वर्ष 2015 में एक संविधान लागू हुआ. इसके कारण संविधान लागू होने से पूर्व जन्म लेने वाले सभी नेपाली नागरिकों को प्राकृतिक नागरिकता मिल गई.लेकिन इनके बच्चों को नागरिकता नहीं मिल पाई. हाल के संशोधन के बाद जिन युवाओं को नेपाल की नागरिकता नहीं मिल पाई थी, उन्हें आसानी से अब नेपाल की नागरिकता मिल जाएगी.
भारत को भी होगा लाभ
कहा जाता है कि नेपाल और भारत के बीच बेटी-रोटी का संबंध है. भारत की बेटियों की शादी नेपाल में आम तौर पर होती है. हालांकि उन्हें नेपाल की नागरिकता के लिए सात साल इंतजार करना पड़ता थी. कानून में संशोधन के बाद यह नौबत नहीं आएगी. यह मंजूरी ऐसे समय में दी गई है, जब नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ विदेश यात्रा के लिए भारत आये हुए थे.
चीन संशोधन के पक्ष में क्यों नहीं था
चीन का कहना था कि इससे तिब्बती शरणार्थियों को नेपाली नागरिकता और संपत्ति का अधिकार दे सकता है. ऐसे में तिब्बती लोग भी नेपाल के नागरिक बन जाएंगे. गौरतलब है कि भारत के बाद .सबसे ज्यादा तिब्बती शरणार्थी नेपाल में रहते हैं. इससे पहले पिछले साल 14 जुलाई को इस संशोधन को गतिरोध के बीच संसद में पारित कर दिया गया था. लेकिन तब तत्कालीन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने इस बिल के संशोधन में मंजूरी नहीं दी थी.