काठमांडू: नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने रविवार को प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की अनुशंसा पर संसद को भंग कर दिया है. इसी के साथ इस पर्वतीय देश में अगले साल अप्रैल-मई में चुनाव का रास्ता साफ हो गया. बिना किसी पूर्व परामर्श के ओली के निर्णय पर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने आपत्ति जताई और पार्टी के सात कैबिनेट मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया.


राष्ट्रपति ने सरकार की सिफारिश को मंजूरी देने के साथ ही अगले साल 30 अप्रैल और 10 मई को दो चरणों में नए चुनावों की भी घोषणा की.


राष्ट्रपति कार्यालय के एक बयान के अनुसार, राष्ट्रपति ने मंत्रिपरिषद की सिफारिश को अनुच्छेद 76 (1) और (7) और संविधान के 85 के अनुरूप अनुमोदित किया है.


इससे पहले रविवार को, ओली द्वारा बुलाई गई एक आपातकालीन बैठक में, कैबिनेट ने सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर एक गहराते संकट के मद्देनजर संसद को भंग को सिफारिश करने का फैसला किया.


ओली के कदम की निंदा
नेपाल में सभी क्षेत्रों में ओली के कदम की व्यापक रूप से निंदा की गई है. यहां तक की उनकी पार्टी के नेताओं ने भी सदन को समय से दो वर्ष पूर्व भंग करने की सिफारिश करने के कदम का विरोध किया है और इस कदम को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक करार दिया.


संसद में मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने कहा है कि सदन को भंग करने की सिफारिश करने का कैबिनेट का फैसला संविधान के प्रावधानों और भावना के खिलाफ है और वे इसका कड़ा विरोध करेंगे.


दो धड़ों के बीच आंतरिक कलह चरम पर
वर्ष 2017 में निर्वाचित प्रतिनिधि सभा या संसद के निचले सदन में 275 सदस्य हैं.ऊपरी सदन नेशनल एसेंबली है. यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है कि जब सत्तारूढ़ दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में आंतरिक कलह चरम पर पहुंच गई थी. पार्टी के दो धड़ों के बीच महीनों से टकराव जारी है. एक धड़े का नेतृत्व 68 वर्षीय ओली तो वहीं दूसरे धड़े की अगुवाई पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री 'प्रचंड' कर रहे हैं.


सत्तारूढ़ एनसीपी के प्रवक्ता नारायणजी श्रेष्ठ ने ओली के कदम को अलोकतांत्रिक, संविधान विरोधी और निरंकुश बताया. उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष इस मामले पर चर्चा के लिए अपनी स्थायी समिति की बैठक आयोजित करेगा. सत्तारूढ़ एनसीपी के नेता ओली के फैसले पर चर्चा करने के लिए प्रचंड के आवास पर एकत्र हुए. प्रचंड के प्रेस सलाहकार बिष्णु सपकोटा ने कहा कि पार्टी नेताओं ने प्रधानमंत्री ओली के फैसले की वजह से होने वाली समस्याओं के बारे में विचार-विमर्श किया.


13 नवम्बर को एनसीपी की सचिवालय बैठक में पेश अपने 19 पृष्ठ के राजनीतिक दस्तावेज में प्रचंड ने सरकार और पार्टी दोनों को समुचित ढंग से चलाने में विफल रहने के लिए ओली की निंदा की थी और उन पर भ्रष्टाचार का भी आरोप लगाया था. प्रचंड के आरोपों के जवाब में प्रधानमंत्री ओली ने अपना 38 पृष्ठ का एक अलग राजनीतिक दस्तावेज सौंपा था.


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